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01 अप्रैल 2012

मेरे आलेख , आपकी टिप्पणियाँ और यह पॉडकास्ट

19 टिप्‍पणियां:

जीवन और साहित्य एक दूसरे के पर्याय हैं . जिस तरह जीवन की कोई सीमा नहीं , उसी तरह साहित्य को भी किसी सीमा में बांधना असंभव सा प्रतीत होता है . सीमा तो शरीरों की है . लेकिन भाव तो शाश्वत है , भाव मानव जीवन की अमूल्य पूंजी है और इसे अभिव्यक्त करने के माध्यम भी कई है . शब्द अपने आप में निर्जीव होता, लेकिन अर्थ उसे जीवन देता है और  एक मधुर आवाज उस शब्द को अमर करती है . मधुर आवाज और शब्द का अद्भुत संगम ही हमें आनंद की पराकाष्ठा तक ले जाता है, और हम भाव विभोर हो जाते हैं . इन्हीं शब्दों और आवाज के अद्भुत संगम ने संगीत जैसी कला को जन्म दिया और आज हम चाहे जैसी परिस्थिति में हो संगीत हमारे जीवन का अहम् हिस्सा है . पिछले दिनों मैंने सार्थक ब्लॉगिंग के कुछ पहलूओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया था . जिसे चार पोस्टों में मैंने आपसे सांझा किया . आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं भी मुझे प्राप्त हुई और आदरणीय अर्चना जी ने तो मुझे हतप्रभ कर दिया . इन चारों पोस्टों को स्वर देकर .....! तो आइये पहले अवगत करवाते हैं, आपकी चुनिन्दा प्रतिक्रियाओं से.......!

सार्थक ब्लॉगिंग की ओर  इस श्रृंखला के पहले भाग से लेकर अंतिम भाग तक आप सबकी प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई जिनमें से कुछ यहाँ शामिल कर रहा हूँ  ......! 
चला बिहारी ब्लॉगर बनने सलिल वर्मा जी ने कहा … केवल राम जी, बड़ी वृहत जानकारी आपने प्रस्तुत की है.. एक ज्ञानवर्धक श्रृंखला!!  गिरधारी खंकरियाल जी का कहना है …गहन अध्ययन के बाद किया गया विवेचन . कुछ जगहों पर वर्तिका का संपादन छुट गया है. उपेन्द्र नाथ बहुत ही अच्छी प्रस्तुति. ... आज के समय में ब्लागिंग की सार्थकता से इंकार नहीं किया जा सकता है. अपनी बात कहने का ये महत्वपूर्ण साधन है. मनोज कुमार जी इस आलेख को ब्लॉगिंग का अच्छा नमूना बता रहे हैं  यह आलेख सार्थक ब्लॉगिंग का अच्छा नमूना है। SKT ने कहा… सुंदर विवेचन ! सृष्टि, मानव सृष्टि पर आपकी दृष्टि के हम कायल हुए! 

दूसरे भाग पर आपकी टिप्पणियाँ कुछ इस तरह प्राप्त हुई .......!
vidya सार्थक लेख...टिप्पणियां पाने से खुशी तो मिलती है...मानव स्वभाव है...मगर हम स्वयं आपने आलोचक बने तो रचनात्मकता निश्चित ही बनी रहेगी.. डा. अरुणा कपूर. जी ने महत्वपूर्ण बात कही :  मात्र सृजन को ही धर्म मान कर चलने वाले लेखक आज के जमाने में मिलने मुश्किल है...सृजन के पीछे कोई न कोई उद्देश्य जरुर होता ही है!...देखना यह है कि उद्देश्य लेखक को किसी भी तरह का लाभ पहुंचाने के बावजूद भी पाठक गण को भी लाभकारक सिद्ध हो!...बहुत सुन्दर विषय!...धन्यवाद! shikha varshney जी ने इस बात पर ध्यान दिलाते हुए कहा " आपके सृजन का पहला और अंतिम पुरस्कार आपके वह प्रशंसक हैं जिन्हें आपसे व्यक्तिगत रूप से कोई लेना देना नहीं लेकिन फिर भी वह आपके लिए दिल में सम्मान रखते हैं ."  मेरे ख़याल से यही मुख्य बात है.टिप्पणियों पर बहस बहुत हो चुकी है.वह सार्थक लेखन की गारंटी नहीं - सहमत.परन्तु लेखन के लिए हौसलाफजाई का माध्यम अवश्य ही हैं.अंत में - ब्लॉग्गिंग को ब्लॉग्गिंग ही रहने दो .....:) कुल मिलाकर बहुत अच्छा विश्लेषण और सार्थक लेखन. Rahul Singh जी की बात बहुत गौर करने वाली है : अवधारणा और विवरणमूलक चर्चा के साथ बिंदुवार और भी स्‍पष्‍ट किया जाना आवश्‍यक है. दूसरे शब्‍दों में ब्‍लागिंग और ब्‍लागेतर लेखन में क्‍या कोई खास, साफ और ठोस फर्क बताया जा सकता है. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद  ब्लागिंग तो रचनाकार को विधा और शैली चुनने के साथ साथ मकसद का विस्तार भी देताहै। यह तो क्षितिज है :) रचना दीक्षित जी की चिंता बाजिब है  : यदि विकासकाल में ही उसके कायदे निर्धारित हो जाएँ तो विकास सही दिशा में होता है . अन्यथा दिशाहीन विकास रचनात्मकता खो बैठता है और कुछ समय पश्चात ही निरर्थक लगने लगता है. संजय @ मो सम कौन ? जी कह रहे हैं  : मैनेजमेंट की शुरुआती पढ़ाई में एक चैप्टर एफ़िशियेंटऔर इफ़ैक्टिवपर हुआ करता था, वैसा ही कुछ सफ़लऔर सार्थकके बारे में समझा जा सकता है। प्राथमिकताएं सबकी अपनी अपनी होती हैं। अच्छा लगा पढ़ना। पी.एस .भाकुनी : बेशक टिप्पणियां किसी भी रचना को आयाम देते हैं किन्तु सिर्फ टिप्पणियों की संख्या के आधार पर रचना का मुल्यांकन नहीं किया जा सकता है.....सुंदर प्रस्तुति...! anju(anu) choudhary इस बात से सहमत होती हुई कहती हैं कि " मात्र और मात्र सार्थक सृजन ,चर्चा के लिए सृजन या पुरस्कार के लिए सृजन ? या फिर सृजन ही मेरा धर्म है . जैसे कहा जाता है कि कला - कला के लिए , कला जीवन के लिए "  . .... इन सब से हट कर बस एक ही बात ...सृजन ...कभी नहीं रुकता...उसे सबके सामने आना ही हैं...किसी का पहले या किसी का बाद में ...बिना किसी उम्मीद के ...बिना किसी इच्छा के .....! 

तीसरे भाग पर आपकी प्रतिक्रियाएं ऐसी रहीं ........! 
दर्शन कौर 'दर्शी' जी को तो हमारी बात समझ ही नहीं आई .....हा..हा..हा..!  लेकिन फिर भी ऐसे अपनी बात कही ...केवल,... मुझे कुछ समझ आया कुछ नहीं ..पर जो समझ आया वो ईमानदारी से लिखा प्रतीत होता हैं ....एक बार नहीं अपितु कई बार पढ़ चुकी हूँ ...टिपण्णी लिखने में भी सहज नहीं हो पाती हूँ ..पर फिर भी हमेशा तुम्हारे ब्लॉग पर आती हूँ कई बार टिपण्णी नहीं लिख पाती हूँ ओके या बहुत अच्छा ,बढियां कहकर तुम्हारे मेहनती लेख के साथ इन्साफ करना ठीक नहीं लगता ...तुम इसी तरह लिखते रहो ..धन्यवाद ! संध्या शर्मा जी ने लिखा  ब्लॉगिंग के लिए आवश्यक विभिन्न पहलूओं  पर आपके विचार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. और इस विधा को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है... " निसंदेह आप आने वाली पीढ़ियों के लिए नए आयाम स्थापित कर रहे हैं , और सृजन को एक नया क्षितिज प्रदान कर रहे हैं " उपयोगी जानकारी से भरे इस आलेख के लिए बहुत-बहुत आभार ...! सुबीर रावत जी तो सोच में पड़ गए : आपकी पोस्ट बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है. इतने गंभीर विषय लेकर आप चलते हैं कि इसको पढने के लिए तन्हा होना बहुत जरूरी हो जाता है, और फिर दुबारा पढ़कर ही कुछ पल्ले पड़ता है. सचमुच आपकी इस तन्मयता का कायल हूँ. अब ब्लॉगिंग  जैसे नए व नीरस विषय को उठाकर आपने एक सार्थक बहस छेड़ ही है. आभार !! ब्लॉ.ललित शर्मा का अंदाज काबिल -ए- तारीफ है  कल ही एक मित्र ने चर्चा के दौरान कहा कि - केवल राम जो लिखता है वह समझ नहीं आता, क्या लिख गया और मेरी भी समझ नहीं आता कि क्या कमेंट लिखुं।---------- मेरी भी आज यही स्थिति है क्योंकि………………आज होली है। इसलिए इसी से काम चलाएं, "हम आपकी लेखनी के कायल हैं, इतना अच्छा आप कैसे लिख लेते हैं?" :):) हरकीरत ' हीर' जी ने हमारी बात को ही हथियार बना लिया और कहा " जब हम तथ्यपूर्ण विषय जैसे इतिहास आदि पर लिख रहे हों तो और भी सजग रहने की आवश्यकता होती है , क्योँकि यहाँ हमें तथ्य को सही ढंग से प्रस्तुत करना है और तथ्य को प्रस्तुत करने के लिए हमें तर्क की आवश्यकता होती है , राजनीति जैसे विषयों पर लिखने के लिए हमें सापेक्ष दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है और सच को सच की तरह प्रस्तुत करना टेढ़ी खीर हो सकता है . लेकिन ब्लॉगिंग जिसे हम अभिव्यक्ति की नयी क्रांति कहते हैं उसके स्वभाव के अनुकूल अगर हम काम करते हैं तो निश्चित रूप से हम इसकी स्वायतता को बरकरार रख पायेंगे और विचारों की स्पष्टता इसके स्वभाव को और ज्यादा प्रभावी बनाएगी . विचारों की स्पष्टता के कारण लेखन में एक अजीब आकर्षण पैदा होता है और वही आकर्षण पाठक को बार - बार उस विषय को पढने को मजबूर करता है " lgta hai bloging par kitaab likhi ja rahi hai ....agrim shubhkamnayein .....:)) वाणी गीत जी के विचार भी महत्वपूर्ण हैं …ब्लॉगिंग में मौलिक अभिव्यक्ति की सहजता बहुत मायने रखती है , वैसे तो पाठक वर्ग पर निर्भर करता है वह क्या पढना चाहता है !अच्छी प्रस्तुति !

अब हम  चौथे भाग तक पहुँच गए .....! काजल कुमार Kajal Kumar जी भाषा पर बात करते हुए कहते हैं : यहां बहुत से लोगों के अपने अपने एजेंडें हैं. जहां तक भाषा की बात है जिसके थाली में जितना है, जीम कर चला जाता हैडॉ॰ मोनिका शर्मा ने कहायही पूरी श्रृंखला सभी के लिए उपयोगी रही है .... सार्थक चिंतन प्रस्तुत करती पोस्ट....प्रवीण पाण्डेय ने कहासबके लिये बार बार पठनीय..Amrita Tanmay ने कहा… ब्लॉगिंग के अद्भुत संसार के नायाब हीरे की कलम से निकली.. अनमोल आलेख..अरुण चन्द्र रॉय जी ने सुझाब देते हुए कहा बढ़िया चर्चा केवल जी. थोड़े उदहारण के साथ चर्चा करेंगे तो अच्छा रहेगा.......! इन सब प्रतिक्रियाओं के साथ इस पॉडकास्ट को सुनना अपने आप में एक नया अनुभव रहेगा .....किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .......! 

                                              

12 अक्टूबर 2011

जीवन और जन्मदिन

65 टिप्‍पणियां:
जीवन एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है. साँसों का यह सफ़र इंसान को किस पड़ाव तक ले जाए यह निश्चित नहीं है. जब तक साँसें चल रही है जीवन है, सांसें रुकी की नहीं जीवन समाप्त समझो. लेकिन साँसों के रुकने से जीवन समाप्त नहीं होता हमें यह बात समझ लेनी चाहिए. हालाँकि इस जीवन के बारे में यह कहा जाता है कि "पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात / देखते ही छुप जायेगा ज्यों तारा प्रभात". किसी हद तक तो यह बात सही भी लगती है. लेकिन जब गहरे में उतरकर देखते हैं तो यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि जीवन की तो सीमा है, लेकिन जीव की नहीं. जीव की यात्रा अनन्त है और जीवन की सीमित. जीव परमात्मा का अंश है, तो जीवन प्रकृति का. यह बात भी गौर करने योग्य है कि प्रकृति परमात्मा की छाया है और हम भी प्रकृति का एक अंश, यह भी सही है कि जिन तत्वों से जीवन का निर्माण हुआ है, जीवन की समाप्ति पर वह तत्व अपने-अपने मूल में मिल जाते हैं और फिर नव निर्माण होता है. यह प्रक्रिया अनवरत चल रही है सृष्टि के प्रारम्भ से, और चलती रहेगी अनंत काल तक. बस जीवन के प्रति अगर यही समझ बनी रहती है तो जीवन का सफर सुखदायी और आनंदमय बना रहता है, और हम साँसों के इस सफर को तय करते हैं पूरी संजीदगी के साथ. 
 
आज जब मैंने जीवन के 29 वर्षों का सफर  तय कर लिया तो बहुत सी बातों के विषयों में सोचा और
आकलन किया खुद का, और खुद के कर्मों का बस यही कि जीवन जिस दिशा में जा रहा है और जिस गति से जा रहा है, अगर वही दिशा  और गति  बनी रहे तो भी कहीं न कहीं जीवन की सार्थकता सिद्ध हो जाए. लेकिन इसके लिए मुझे बहुत संभल कर चलना है. क्योँकि इस संसार में खुद को पाक-साफ रखना बहुत कठिन कार्य है, लेकिन फिर भी कोशिश तो की जा सकती है और बस यही  प्रयास अनवरत जारी रहता है. हालाँकि यह मानवीय स्वभाव है कि वह कभी भी एक सी चीजों पर केन्द्रित नहीं रहता और उसे रहना भी नहीं चाहिए. मन की चंचलता और बुद्धि की तार्किकता उसे जीवन भर संघर्षरत रखती है और मानव अपनी उपलब्धियों से खुद को गर्वित महसूस करता है. लेकिन यह बात हमेशा मेरे जहन में रहती है कि "क्षणिकता" से "वास्तविकता" की और बढ़ा जाए, अन्धकार से प्रकाश  की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, भौतिकता से अध्यात्म की ओर  अगर यह सब हो जाता  है तो निश्चित रूप से जीवन मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ जाएगा ओर जीवन का लक्ष्य सिद्ध हो जायेगा. लेकिन यह होगा तब ही जब हमारा-आपका सहयोग और प्रेम परस्पर बना रहेगा. 

आज मन बहुत द्रवित है. सोचा अपने जीवन के हर पहलु को तो बहुत सी बातें नजर आयीं. ब्लॉगजगत का दिया हुआ प्यार और सम्मान मेरी आखों में आंसू ले आया. जब मैंने ब्लॉगिंग की दुनिया में प्रवेश किया था तो एक सामान्य पाठक के रूप में और आज भी खुद को ब्लॉगिंग के विस्तृत पटल पर एक सामान्य पाठक ही मानता हूँ. आज जो भी कुछ कर पाता हूँ यह सब आपके प्रेम और सहयोग का ही परिणाम है. आपकी प्रेरणादायी टिप्पणियाँ ही नहीं बल्कि समय -समय पर व्यक्तिगत रूप दिए गए आपके सुझाब भी मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं. इसके अलावा आपका अपनापन तो मेरे लिए खुदा की सौगात से कम नहीं. इसलिए आज नतमस्तक हूँ आप सबके सामने. कल जब पोस्ट लिख रहा था तो कुछ नाम मेरे जहन में उभर आये थे. लेकिन जब पूरी सूची देखी तो लगा कि इतने सारे नामों के लिए तो एक अलग से पोस्ट लिखनी पड़ेगी और फिर सोचा कि ब्लॉग जगत ने जो कुछ मुझे दिया है उसके लिए धन्यवाद कहना, एक औपचारिकता को निभाने जैसा होगा.

हालाँकि सूचना और तकनीक के इस दौर में आभासी रिश्तों की बात की जाती है और इसे एक तरह से आभासी दुनिया कहा जाता है. लेकिन मैंने जहाँ तक अनुभव किया मुझे काफी हद तक ऐसा प्रतीत नहीं हुआ. जिस भी व्यक्ति से बात हुई सबने सहयोग और प्रेम की ही बात की. माध्यम कोई भी रहा हो (टेलीफोन, फेसबुक, ऑरकुट, मेल) आदि. लेकिन मैंने सबको सहयोग देते हुए पाया. इसलिए खुद को बहुत खुशनसीब समझ रहा हूँ. अब तो लगता है कि जीवन का सफर एक नए दौर की तरफ चल पड़ा और यह दौर और यह रिश्ते मुझे जरुर कोई नया मुकाम देंगे. इसी आशा के साथ....! अब आप सब तो यही कहेंगे न ........ !
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आज की इस पोस्ट का पॉडकास्ट ब्लॉग जगत की चर्चित पॉडकास्टर आदरणीय अर्चना जी के सौजन्य से आप मेरी आवाज में सुन सकते हैं ...आदरणीय अर्चना जी ने मेरे मन की भावनाओं को समझते हुए आपकी नजर यह पोस्ट पेश की ...आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा ...!
                                  

04 जुलाई 2011

सुर और साहित्य

55 टिप्‍पणियां:
जब भी मुझे कहीं अकेले में बैठने का अवसर मिलता है तो मैं महसूस  हूँ कि इस सृष्टि के कण - कण में संगीत है. इसमें सुर समाया है . लेकिन हम उस संगीत को अनुभव नहीं कर पाते . आज हम भौतिकता में इतने रम चुके हैं कि हमारे पास कहाँ वक्त है उस संगीत को सुनने, का अनुभव करने का , और दूसरी तरफ हमारी जीवन  शैली इस तरह की  बन चुकी है कि हम कहाँ ध्यान देते हैं कि इस अखंड ब्रह्माण्ड की रचना में संगीत का अपना महत्व है . "बिंग बैंग" सिद्धांत  की यह मान्यता है कि इस सृष्टि का निर्माण जब हुआ था तब भयंकर विस्फोट हुआ था . अगर विस्फोट हुआ तो ध्वनि तो निकली होगी ना और वही ध्वनि इस सृष्टि के निर्माण का आधार है और उस ध्वनि के कुछ अंशों को हम शब्दबद्ध कर संगीत के माध्यम से संगीतमय बनाकर उसका आनंद लेते हैं . यह बात भी कितनी रोचक है कि संगीत की विपुल राशि इन्हीं अक्षरों में समाहित है . सरगम यानि सा  , रे , , , , , नि , इन सात अक्षरों में संगीत समाहित है .

इस विषय पर कभी गंभीरता से बात करूँगा ...लेकिन आज आप मेरी पोस्ट "अक्षर साधना" को हिंदी  ब्लॉग जगत की चर्चित पॉडकास्टर आदरणीय अर्चना चावजी की कर्णप्रिय आवाज में सुनें . आदरणीय अर्चना जी से जब मैंने इस पोस्ट का पॉडकास्ट  तैयार करने  के लिए प्रार्थना की तो उन्होंने "मेरे मन की"  इस प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस पोस्ट को अपनी मधुर आवाज देकर मुझे कृतार्थ कर दिया . उनकी आवाज का कायल मैं ही नहीं बल्कि पूरा ब्लॉग जगत है . आवाज ही  नहीं बल्कि शब्दों को पढने का उनका अंदाज और वाक्य में शब्दानुरूप उतार - चढ़ाव का भी पूरा ध्यान जो उनकी इस विधा और विशेषज्ञता को सिद्ध करता है ...तो लीजिये प्रस्तुत है अक्षर साधना अब आदरणीय अर्चना चावजी जी कर्णप्रिय आवाज  में ....आप उनके प्रोत्साहन के लिए उनके ब्लॉग मेरे मन की  पर भी टिप्पणी कर सकते हैं .....!

14 अप्रैल 2011

कबूतरों को उड़ाने से क्या?

82 टिप्‍पणियां:
अक्सर जब किसी समारोह में जाना होता है तो वहां पर शान्ति के प्रतीक कबूतरों को उडाया जाता है और कामना की जाती है कि कबूतरों के उड़ने से शान्ति सम्भव हो पायेगी। बहुत बार मैंने सोचा कि आखिर क्या वजह है कि इनसान शान्ति के लिए कबूतरों को उडाता हैजबकि वर्तमान वातावरण को निर्मित करने में इनसान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। अगर कहीं अशान्ति है तो वो इनसान के जहन में है  और वह शान्ति की  तलाश बाहर करता है. जबकि बाहरी वातावरण से उसका  कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध  नहीं है...जहाँ तक मैंने पढ़ा है कि ‘शान्तितुल्यं तपो न अस्ति, न संतोषात परम सुखं’ (शान्ति के बराबर कोई तप नहीं हैऔर संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं हैइससे यह बात समझ में आई कि शान्ति सबसे बड़ा तप है और संतोष सबसे बड़ा सुख है. लेकिन किस तरहयह विचार करना आवशयक है कि शान्ति सबसे बड़ा तप कैसे है?  और संतोष सबसे बड़ा सुख कैसे? जहां तक मुझे लगता है शान्ति और  सन्तोष का एक दूसरे के साथ अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
वास्तविकता में शान्ति किसे कहते हैं?  संतोष क्या है? यह हम समझ नहीं पाए। मैं हमेशा देखता-सोचता हूँ कि इनसान अपनी नियति का निर्धारण खुद करता है। वह अपने लिए रास्ते और मन्जिलें खुद निर्धारित करता है किसी का कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध इन चीजों से नहीं होता और उसके हर निर्णय का प्रभाव उसे प्रभावित करता है। लेकिन व्यक्ति के जीवन का हर पहलु सिर्फ व्यक्ति के जीवन को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि उसका प्रभाव दूसरे व्यक्तियों के जीवन पर भी पड़ता हैसमाज में रहने वाला व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति ही नहीं होता, बल्कि वह समाज की एक ‘ईकाई’ होता है. उसके प्रत्येक अच्छे और बुरे कर्म का प्रभाव समाज पर पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने हर निर्णय को सामाजिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ले और इससे एक तो उसे लाभ होगा और दूसरे जो निर्णय उसने लिए हैं उनका लाभ किसी दूसरे व्यक्ति को भी मिलेगा। इस तरह से हम जिम्मेवार नागरिक बनते हुए दूसरों के मनों में शान्ति और सकून का वातावरण पैदा कर सकते हैं।
हर व्यक्ति का किसी दूसरे व्यक्ति से किसी न किसी तरह का नाता होता है चाहे वह नाता सकारात्मक हो या नकारात्मक। दोनों का अपना प्रभाव है जहाँ सकारात्मक प्रभाव हमें किसी के करीब ले जाता है तो वहीँ नकारात्मक प्रभाव हमें किसी व्यक्ति से दूर करता है। यह प्रभाव  सिर्फ व्यक्ति तक ही सीमित नहीं होता बल्कि इसका प्रभाव व्यापक होता है और कई बार तो यह  नकारात्मक प्रभाव का इतना प्रभावी होता है कि हम किसी समुदाय और समाज से वास्तविकता को जाने बगैर  नफरत करना शुरू कर देते हैंऔर काफी हद तक हम यह देख भी रहें हैं। यहाँ पर जो झगडे हैं सब हमारी नासमझी के कारण हैंहमने इनसान को  हिन्दू, मुसलमान, सिक्खइसाई और भी न जाने कितनी तरह सेकितने भागों में बांटा है और इसी बंटबारे के कारण आज धरती पर बसने वाले  प्राणी एक दुसरे से नफरत करते हैं। सामाजिक स्तर पर भी हम देखें तो हम कई भागों में विभाजित हैं। एक समुदाय का दुसरे समुदाय से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है तो फिर ऐसे हालात में हम एक दूसरे के खिलाफ नफरत के बीज बोते हैं  और जिस सुन्दर सी धरती पर हम ‘अमन और चैन’ से रह सकते हैं, वहां पर हम कभी भी अमन और चैन से नहीं रहेइतिहास इस बात का गवाह है।
आज जब वैश्वीकरण के दौर की बात की जा रही है विश्व को एक गाँव  माना जा रहा है, लेकिन यह बात सिर्फ कहने तक ही सीमित है वास्तविकता इससे कोसों दूर है। आज हर तरफ त्राहि-त्राहि है। जितना हमने भौतिक और तकनीकी विकास किया है, उसके कारण हमारे पास साधन तो जरुर बढ़ें हैहम भौतिक रूप से सशक्त जरुर हुए हैं। लेकिन मानसिक और आत्मिक रूप से हम कमजोर हुए हैं।  किसी को किसी से कुछ  लेना देना नहीं है सब अपने स्वार्थ के पीछे भाग रहे हैं।  आये दिन हम जो कुछ भी देखते हैं क्या किसी गाँव में इस तरह की घटनाएँ बर्दाश्त की जा सकती हैं? नहीं, गाँव तो वह होता है जहाँ मानवीय संवेदनाएं और भावनाएं एक दूसरे के साथ जुडी होती हैं और व्यक्तियों का एक दूसरे के साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह का सम्बन्ध होता है। लेकिन जो वातावरण आज निर्मित हुआ है इसके लिए कौन  जिम्मेवार हैकिसी शेर ने  तो नहीं कहा कि तुम बंट जाओ अलग-अलग जातोंमजहबोंधर्मोंसमुदायों और ना जाने कितने रूपों में और फिर करो एक दूसरे का कत्ल और फैला दो इस सुन्दर सी धरती पर अशान्ति तब मैं तुम्हें कबूतर दूंगा शान्ति का पैगाम देने के लिए, क्योँकि मैं जंगल का राजा हूँ और इनसान को शान्ति के लिए यह सहायता मेरी तरफ से हा..हा...हा..! शायद ऐसा नहीं है। आज जिस तरह हम अस्त्र-शस्त्रों का विकास कर रहे हैं क्या वह शान्ति के सूचक हैं? नहीं! आज किसी देश और वहां के लोगों की उत्कृष्टता का पैमाना ही बदल गया है। हम अगर किसी देश का मूल्यांकन  करते हैं तो सिर्फ भौतिक रूप सेक्या  कभी कोई सर्वेक्षण आया कि इस देश के लोगों में इतनी मानवता और प्रेम की  भावनाएं हैंयहाँ पर इतने मानवीय मूल्यों को तरजीह दी जाती है, और भी कई मानवीय पहलू हैं जिन पर गम्भीरता से विचार किया जा सकता है और फिर उन्हें अपनाया जा सकता है।  लेकिन हम इन सारे प्रयासों से पीछे हटते जा रहे हैं और वास्तविकता को नजरअंदाज करते हुए आभासी बनते जा रहे हैं और इसी लिए हम शान्ति की तलाश भी कबूतरों द्वारा कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कब तक चलता रहेगा?
आओ ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर  हर तरफ सकून और चैन होअमन हो, प्यार होभाईचारा होकिसी तरह की कोई दीवार न हो सब एक दूसरे से मिल सकें बिना किसी भेदभाव केधरती सबकी है यहाँ कोई  सीमा न हो सब रह पायें ख़ुशी  से,  इस साँसों के सफ़र में साथ-साथ और सिर्फ हाथ से  हाथ ही न मिलें बल्कि दिल से दिल भी मिलने चाहिए। तभी तो शान्ति सम्भव हो पाएगी। फिर तो इस जीवन को जीने का आनन्द ही अलग होगा और जब हम इस संसार से रुखसत होंगे तो हमें अपने किसी कर्म पर कोई पछतावा नहीं होगा। बस शान्ति के लिए प्रयास करना है तो अपने मन में उठने वाले हर उस नकारात्मक भाव को समाप्त करना है जो मानवता के लिए सुखदायी नहीं है। हमें तप और त्याग की भावनाएं दिलों में लिए हुए अपने जीवन सफ़र को तय करना है। शांति स्वतः ही आएगी उसके लिए किसी आभासी कार्य की जरुरत नहीं, बल्कि वास्तविक प्रयास की आवशयकता है और फिर यह कायनातयह खुदा का कुनबाजो बहुत सुन्दर है इसमें बसने वाला हर इनसान खुदा का रूप हैइन्हीं भावनाओं को दिल में बसाये हुए हम इस सृष्टि के कण-कण में खुदा को देख सकेंगे,  महसूस कर सकेंगे। अगर शान्त रहेंगे तो...!
मैं तहे दिल से आदरणीय अर्चना चावजी  का धन्यवाद करते हुए यह बात आप सबसे साँझा कर रहा हूँ कि इस पोस्ट की पॉडकास्ट सम्मानीय गिरीश बिल्लोरे जी के ब्लॉग ‘मिसफिट: सीधीबात पर और इसी ब्लॉग पर अर्चना चावजी की कर्णप्रिय आवाज में सुन सकते हैंआपकी सार्थक प्रतिक्रियाओं का इन्तजार रहेगाविनीत....केवल राम