कॉलेज से पास आउट होने के
बाद मैं कभी उस कॉलेज में नहीं गया जहाँ मैंने जिन्दगी के तीन महत्वपूर्ण वर्ष
बहुत कुछ सीखने में गुजारे थे. मेरा कॉलेज एक नदी के किनारे स्थित था. कॉलेज के
बाहर एक बड़ा मैदान था. मैदान तथा कॉलेज दोनों ऐतिहासिक थे. कभी-कभी मुझे कॉलेज की
भव्यता तथा नक्काशी पर सोचने का मौका मिलता तो मैं सहज ही उस अदृश्य सत्ता के प्रति
आस्थाबोध से समर्पित हो जाता. मेरा सोचना सिर्फ सोचना होता! परन्तु मेरे जहन में
कई प्रश्न जरुर पैदा करता. कभी-कभी तो मेरा मन एक कल्पना लोक तक जा पहुँचता. मैं
सब बर्दाश्त कर लेता.....बस यही संतोष था.
कॉलेज से पूर्व जब मैं स्कूल में पढता था तो यहाँ आकर स्कूल की यादें रह रहकर जब भी मेरे जहन में उमड़ती तो
मैं रोमांचित हो जाता. मेरे स्कूल का भवन बहुत ही दयनीय हालत में था लेकिन कॉलेज
एकदम भव्य, सुन्दर तथा व्यवस्थित. मेरे गाँव के लोग
बहुत भोले-भाले मेहनती न्यायप्रिय तथा ईमान्दार थे. वहां का वातावरण तथा आबोहवा इस
वातावरण से भिन्न थी. जहां मेरे गाँव में हर किसी को एक
दुसरे की चिंता रहती थी, वहीँ पर मेरे कॉलेज में किसी का किसी से कोई भावनात्मक
रिश्ता नहीं था. सबको अपनी-अपनी पड़ी होती यहाँ पर हर
किसी को अपने काम से मतलब होता. बेबजह वक़्त बर्बाद करने
की प्रवृति किसी में नहीं थी. मेरे कॉलेज के प्राध्यापकों के पास डिग्रियां, उपाधियाँ और उपलब्धियां सब कुछ था. हर कोई अपने उपर गर्व करता था, हर कोई खुद को दुसरे से श्रेष्ठ समझता.
खैर!! मुझे इन बातों से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन
इन सबसे मेरा वास्ता पड़ता था तो एक उत्सुकता सी बनी रहती इन सबसे बात करने की और
इनसे कुछ सीखने की. मुझे कॉलेज की हर चीज अच्छी लगती प्राध्यापक, व्यवस्था और छात्र.
सबसे अच्छे मुझे मेरे दोस्त लगते जिनमें संजीव और
शालिनी को मैं बहुत पसंद करता. मेरे दोस्तों की और मेरी एक अलग पहचान थी. मैं उन
सबसे भिन्न प्रवृति का था. लेकिन दोस्त तो आखिर दोस्त ही हैं ना. संजीव और शालिनी
से मेरी खूब बनती थी. दोनों का बात करने का लहजा तथा ज्ञान का स्तर काफी ऊँचा था.
संजीव हमेशा कल्पनापूर्ण बातें करता तथा भविष्य के लिए नयी योजनायें बनाने की
इच्छा उसकी होती. वह व्यक्तिगत, सामाजिक तथा राजनीतिक
सुधार तथा बदलाव की बातें हमेशा किया करता था. शालिनी
एक शान्त स्वभाव की लड़की थी. प्यार से बात करना
और सलीके से पेश आना उसकी खूबी थी. ऐसे लगता था कि वह काफी सुलझी हुई हो, परन्तु
मैंने कभी उसे जानने की कोशिश ही नहीं की.
संजीव से जब भी मिलना
होता मैं हमेशा उससे कुछ सामयिक मुद्दों पर बात करता. मेरी इच्छा हमेशा नए-नए विषयों पर चर्चा करने की होती. एक दिन मैंने और संजीव ने समाज की विसंगतियों पर चर्चा करना शुरू कर दिया. परत दर परत
हम कई पहलुओं को खोलते गए. मैं आध्यात्मिक प्रवृति का व्यक्ति हूँ, इसलिए मैं
प्रत्येक वस्तु को बहुत बड़े नजरिये और समग्र
परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयास करता और संजीव भौतिकवादी दृष्टिकोण लेकर हमेशा
अपने मत की स्थापना में बड़े से बड़ा तर्क देता.
पर अंततः वह मेरी कई बातों से सहमति जताता. इसका मुझे भी संतोष था.
मुझे इतिहास का ज्यादा
ज्ञान नहीं परन्तु दर्शन पर
मेरी अच्छी पकड़ है. इसलिए हम दोनों जब किसी घटना पर
विचार करते तो वह घटना का इतिहास-दर्शन हो जाता. संजीव किसी भी घटित घटना के
कारणों तथा उसके किसी ऐतिहासिक पक्ष को खोजने की कोशिश जरुर करता. आज की बहस में
हमने कई मुद्दों पर चर्चा की लेकिन शहर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा प्रताड़ित ‘रामदीन’ द्वारा की गयी आत्महत्या की चर्चा पर हम जयादा केन्द्रित रहे.
खैर समय यूँ बीतता गया और
हम अपने लक्ष्यों की तरफ बढ़ते रहे अब वह समय नजदीक था जब हमें इस कॉलेज से विदा लेनी थी. जब हम एक दूसरे से
जुदाई के बारे में सोचते तो आँखें भर आती. लेकिन जब हम किसी से भी मिलते हैं तो
जिन्दगी के किसी मोड़ पर बिछुड़ना स्वाभाविक है. जीवन का यह क्रम है इसलिए ज्यादा
दुःख नहीं होता. अब वह दिन हमारे सामने था जब हमें कॉलेज से विदा किया गया, मैं
संजीव और शालिनी एक दूसरे के आसपास ही बैठे थे और सारा समय हमने इन तीन वर्षों में
बिताये हर एक क्षण को याद किया और भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा की. हम
तीनो का लक्ष्य स्पष्ट था. हम तीनो एक दूसरे के प्रेरणास्रोत थे लेकिन आगे की पढाई
के लिए शायद ही अब साथ रह पाते. कोशिश थी कि एक दुसरे
से सम्पर्क बनाये रखा जाए लेकिन वक़्त की मार के साथ यह भी सम्भव नहीं हो पाया.
संजीव और शालिनी से कभी
कोई सम्पर्क नहीं हुआ कॉलेज से पास आउट होने के बाद. मैंने कुछ सपने सजाये थे,
उन्हें पूरा करने में लगा रहा कई वर्ष और काफी हद तक मुझे सफलता भी मिली. जब भी
संजीव और शालिनी के बारे में सोचता तो ऑंखें भर आती.
मैंने उन्हें अपनी हर सफलता पर बहुत याद किया और हमेशा सोचा काश! आज वह मेरे साथ
होते तो मेरी उपलब्धियों पर उन्हें मुझसे ज्यादा ख़ुशी होती.
जीवन आगे बढ़ता गया. मुझे
पता है धरती गोल है तो कहीं न कहीं किसी न किसी मोड़ पर कुछ न कुछ घटित होता है,
जो आपको अचम्भित कर देता है. अब जब मैं कुछ समय पहले अपने कॉलेज के आसपास वाली
गलियों में घूम रहा था तो अचानक मुझे संजीव दिख गया. वह मेरे सामने था और मैं उसके. लेकिन वह मुझे पहचान नहीं पाया. मैं जब
कॉलेज में पढता था तो बहुत साधारण तरीके से रहता था. लेकिन अब थोडा बदलाब मुझ में
भी आ चुका था हर एक चीज को लेकर. संजीव थोड़ी देर किसी अपरिचित की तरह मुझे देखता
रहा, लेकिन मैंने जब उसे उसके नाम के साथ पुकारा तो वह सोच में पड़ गया. मैंने ज्यादा
देर किये बिना उसे गले से लगा लिया, वह और भी हतप्रभ! फिर मैंने उसे अपना नाम
बताया और वह रो पड़ा.
देखने वाले सब देखते रहे
मैं और संजीव ख़ुशी के आंसुओं से भीग गए. हालाँकि संजीव का घर उस शहर में
नहीं था. फिर भी हम दोनों ने साथ रहने का मन बना लिया. संजीव ने शालिनी के बारे
में बताया मैंने बिना देर किये उससे मिलने की इच्छा जाहिर की. शालिनी से सम्पर्क साधा
गया. बात संजीव ने की, कि आज आपके यहाँ आ रहा हूँ. जब
हम वहां पहुंचे तो मुझे देखकर शालिनी एकदम पहचान गयी और गले लग गयी. दो दिन तक मैं संजीव और शालिनी एक साथ रहे. खूब
सारी बातें की और एक दूसरे के बारे में जाना.
जीवन भी क्या है? एक यक्ष प्रश्न. लेकिन हमें हमेशा संजीदा रहना
चाहिए, जीवन में मानवीय भावनाओं के प्रति. हमारी
जिन्दगी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आने वाला हर एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है.
बस हम उसकी कदर कर पायें. यह जिन्दगी कितनी है यह किसी को पता नहीं. लेकिन जितने
लम्हें हम जियें जीवन को खूबसूरती प्रदान करते हुए जियें.