16 अगस्त 2012

अधूरी क्रान्ति....पूरा स्वप्न...2

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भ्रष्टाचार को मिटाने की आस लिए जनता की आँखों की चमक बढ़ रही है ...अब तो सब सही होकर ही रहेगा ....इतने में फिर दृश्य बदल जाता है ....! गतांक से आगे  
एक तरफ भ्रष्टाचार पर बात हो रही थी और लोग हैं कि फिर इसी का सहारा ले रहे हैं. भीड़ बढ़ रही है लेकिन वहां जो भी व्यक्ति हैं सबके सब अपने स्वार्थों से जुड़े हुए हैं. किसी को देश कि चिन्ता नहीं है. सबका अपना-अपना नज़रिया है इस क्रान्ति के पीछेकोई व्यक्तिगत प्रभाव से आया है तो किसी को घूमने की फुर्सत मिल गयी हो जैसेकोई इस आन्दोलन में शामिल होकर अपना रुतवा कायम करना चाहता हो जैसे. यहाँ जितने लोग हैं बेशक उनका मंच एक है लेकिन मंतव्य सबके अलग-अलग हैं. मैंने बड़ी गहराई से देखा कि जो लोग मंच पर आसीन हैं जो भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए अनशन पर बैठे हैं वह भी कहीं न कहीं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं. कहीं न कहीं पर उनके जहन में भी देशभक्त होने का भाव है . गौरव से उनकी गाथा लिखी जाए यह सोच भी वह रखते हैं . इतिहास को बदलने की मादा रखते हैं और जब वह मुंह खोलते हैं तो ऐसा लगता है कि सकारात्मक बातें इन्हें करनी ही नहीं आती और लोग हैं कि इनकी बातों पर ताली पीटते हैं और इनका उत्साह बढाते हैं. बस यही संतोष इनके मन मैं है और 121 करोड़ की आबादी वाले इस देश के दस-पंद्रह हजार व्यक्ति इनके साथ हो लिए तो उसे यह बड़ी सफलता मान रहे हैं और उस भीड़ को देखा तो वहां कोई भी सच्चा देशभक्त नजर नहीं आया. मैं बड़ा असमंजस की स्थिति में हूँमंच जैसे रंगमंच हो गया हो. जहाँ एक ही पात्र आता है लेकिन हर बार उसकी भाषा बदल जाती है और और उसका अभिनय भी......मैंने देखा कुछ लोग मेरी चुप्पी को भांप जाते हैं और उनकी नजरें मुझ पर टिक जाती हैं. मैं थोडा सा खुद सँभालने की कोशिश करता हूँ.  लेकिन उन्हें लगता है कि मैं कोई जासूस हूँ. एक पूर्ण भारतीय को वह शक की नजर से देखते हैं. हा..हा..हा..!
इतने में एक नया नजारा मेरी आँखों के सामने आता है. सामने से भीड़ आ रही है और सारा पंडाल नारों से गूंज रहा है. भारत माता की जय...वन्दे मातरम्एक संत देश बचाने निकला है...ऐसे नारे लग ही रहे थे कि...एकव्यक्ति आता है वह कहता है ...एक संत देश चबाने निकला है ....बस फिर क्या थाभ्रष्टाचार पर भाषण देनेवालों को किसी को गाली देना भ्रष्टाचार नहीं लगता. वह देश को गाली देते हैंदेश की जनता के प्रतिनिधियों को गाली देते हैंदेश के लोगों की खिल्ली उड़ाते हैं. उन्हें उनका चुनाव गलत लगता है. जो व्यवस्था आज है वह किसी भी तरीके से सही नहीं हैपता नहीं कौन सी व्यवस्था लाना चाहते हैं. बातें बड़ी-बड़ी करते हैं और संभवतः बात करना मूर्खों के लिए आसान होता हैऔर जिम्मेवार बात करने से पहले सोचता है और जब वह कोई निर्णयलेता है तो उसे निभाने की पूरी क्षमता रखता है. लेकिन मैं इस व्यक्ति को देखकर हैरान हूँ. मैदान छोड़कर भागना कोई इनसे सीखे....आज तो भगवे वस्त्र धारण किये हैं लेकिन वेश बदलना इन्हें अच्छे से आता है. आखिर संत जो ठहरे यहाँ संतों की शक्ति में बड़ा विश्वास किया है. सच को सच साबित करने के लिए हमारे देश के संतों ने जलते हुए तवे पर भी परीक्षा दीदीवारों में भी चिनवा दिया तो कोई परवाह नहीं की लेकिन अपने लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटे.
लेकिन यह संत ऐसे हैं कि समय आने पर इन्हें तलवार उठानी चाहिए थीक्योँकि गुरु गोबिंद सिंह जी ने यही किया था, इन्होंने एक नया सिद्धान्त प्रतिपादित किया....जब सांस खतरे में हो तो तलवार नहीं-सलवार उठा लोऔर फिर भाग जाओ मैदान छोड़ करलक्ष्य गया भाड़ में बस खुद का बचाव कर लो और फिर कह दो कि हमें मारने की साजिश रची गयी थी और हम हैं कि बच निकले...जो लोग देशभक्तों की बातें करते नहीं थकते उनके आदर्शों की चर्चा करते नहीं थकते वह आज इस तरह से भाग निकले ....समझ नहीं आया ..जिन्होंने देश से सच्चा प्रेम किया उन्होंने अपने कर्मों द्वारा ऐसे सिद्धान्त प्रतिपादित किये कि आज हम उनका अनुसरण करते हैंउन्होंने सिद्धान्तों की चर्चा नहीं की लेकिन जीवन ऐसा जिया कि हर कर्म सिद्धान्त बन गया. मैं ऐसा विश्लेषण कर ही रहा हूँ और आगे बढ़ रहा हूँ.....! मैं कभी वर्तमान को देख रहा हूँ तो कभी भूत को याद कर रहा हूँ ...ऐसे लग रहा है कि मैं दो नावों में सवार हो गया हूँ और भूतकाल की नाव मुझे ज्यादा गौरवान्वित कर रही है और इतने में मैं उस भीड़ से उठ खड़ा होता हूँ. सब मेरी तरफ देखते हैं. मैं मंच पर जाने की कोशिश करता हूँ लेकिन मुझे रोक दिया जाता है. मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहीँ छिन जाती हैजिस मंच से हर प्रकार की स्वतंत्रता की बात की जा रही है.
इतने में फिर दृश्य बदल जाता है..........एक सूनापन....मेरे सामने है. मैं सोच रहा हूँ अब क्या किया जाए....मैं खुद असमंजस की स्थिति में हूँ...सारे देश की जनता गुमराह है. बुद्धिजीवी अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैंनेताओं का अपना नज़रिया है. प्रशासनिक अधिकारी अपना दिमाग लगा रहे हैं उन्हें अभी भी अपनी लाभ हानि नजर आ रही है. पत्रकार असमंजस में हैकिसे खबर बनाएं. क्या कहेंक्या लिखें...इधर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अपनी टीआरपी की भी चिन्ता है. सब अपना-अपना लाभ सोच रहे हैंसब अपना एक सुरक्षित किनारा तलाश रहे हैं जहां यह चैन से भी रह सकें और तमाशा भी कर सकेंयह बात मेरी समझ से बाहर है. मेरी बुद्धि मुझे झिनझोड़ती है और फिर मुझसे सवाल करती है??? कब तक तुम इस तरह तमाशा देखते रहोगेआखिर जब तुम सब सच-सच जानते हो तो क्योँ झिझक रहे होसच को जनता के सामने ला दो. मैं अपने अंतर्मन की आवाज को सुनता हूँ और जहां मैं खड़ा हूँ वहीँ से सामने वाली जनता को पुकारता हूँ.....भारत माता की जय.....सब मेरे जय घोष में शामिल होते हैं.....मैं मंच पर बैठे लोगों से आहवान करता हूँ कि मुझे थोडा सा वक़्त दिया जाये एक आम नागरिक होने के नाते ताकि मैं अपनी भावनाएं जो विशुद्ध रूप से देश प्रेम के कारण मेरे जहन में उठ रहीं हैं उन्हें आप सबके साथ सांझा कर सकूँ.....फिर मैं जनता को संबोधित करता हूँ.....! लेकिन मेरा संबोधन अलगे अंक में ...!

07 अगस्त 2012

अधूरी क्रान्ति....पूरा स्वप्न...1

32 टिप्‍पणियां:
रात को अपने सब काम निपटाने के बाद मन किया थोडा सा नेट पर देखा जाये क्या चल रहा है, इसलिए जीमेल खोल दिया, यहाँ कोई नहीं दिखाई दिया, ठीक है फेसबुक की तरफ बढ़ते हैं. यहाँ कुछ अपडेट्स हैं चलो पढ़ते हैं, लाइक करते हैं, टिप्पणी करने से मुझे गुरेज है. फिर चलो नींद आ रही है सो जाता हूँ. सोने से पहले मुझे आदत है कुछ पढने की, किताब पढ़ लेता हूँ और खासकर कोई अध्यात्म की किताब, आज ना जाने मन क्योँ कह रहा है जल्दी सोया जाए. ठीक है सो लेते हैं. लाईट बंद करके हम सो गए. अब असली माजरा शुरू होता है. मैं अब होश में नहीं हूँ नींद ने पूरी तरह से मुझे जकड लिया है शांत चित होकर सोया हूँ नींद भी अच्छी आ रही है. रात के 11 बजकर 45 मिनट पर सोया हूँ, इसलिए अगला दिन शुरू होने में 15 मिनट हैं ठीक है सो लेता हूँ. यूं मुझे सपने देखने की आदत नहीं है, और जब भी सपने देखता हूँ बंद आँखों से नहीं बल्कि खुली आँखों से….आज ना तो मेरी आँखें पूरी तरह से बंद हैं ना ही खुली.......मेरी आँखों में एक प्रश्नचिन्ह है??? लेकिन फिर भी खुद को संभाले हुए हूँ और पूरी तत्परता से सोने की तैयारी कर रहा हूँ....हा..हा..हा..सोने के लिए भी किसी को क्या तैयारी करनी पड़ती है? मैं भी क्या कमाल हूँ......!
अब धीरे-धीरे स्वप्न आगे बढ़ता है. मैं तैयार होकर घर से निकला हूँ. आज ऑफिस में कार्यक्रम है जल्दी जाना है, जरा अच्छे बनके जाना है. ब्रांडेड कपडे और जूते पहने हैं, घडी भी विदेशी कम्पनी की है एकदम मस्त लग रहा हूँ. अचानक दृश्य बदलता है. अपनी गाड़ी में हूँ कहीं से आवाज आ रही है देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है...मैं मन ही मन सोचता हूँ यह कौन सी नयी बात है यह तो आजकल हर कोई कहता है. हम गाड़ी की रेस बढाते हैं आगे बढ़ते हैं. फिर थोड़ी दूर जाकर जाम लगा है लोग उस रैली के लिए आ रहे हैं और बड़ा उत्साह है. हर किसी के मन में जज्बा है...हर कोई कह रहा है अब तो मरकर ही दम लेंगे मैं फिर हँसता हूँ, ‘अरे मर कर कौन है जो दम लेता है, और जो दम लेता है उसे मरा हुआ नहीं कहते’....मुझे हंसी आती है लोगों की बातों पर कितने भोले हैं बेचारे बात करने से पहले सोचते तक नहीं. चलो क्या कहा जाए...मैं मशगूल हूँ उनकी बातों पर चिंतन में और मुझे ऑफिस की याद आती है. हाय!!!!!!! हाय!!!!!!!!!!!!!!! अब क्या होगा? फिर उधेड़बुन है....!
इतने में फिर दृश्य बदलता है कहीं से आवाज आती है आज पूरे शहर के लोग यहाँ हैं और आप में से हर कोई जानता है कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ रह है...सब तालियाँ बजाते हैं, अपने घर और शहर की बेइज्जती  करते हुए उनके चेहरे पर जो ख़ुशी छलक रही थी उसका कोई अनुमान नहीं.... मैं आगे बढ़ता हूँ. मंच की तरफ देखता हूँ तो एक सुन्दर सा मंच सजा है 10-12 लोग बैठे हैं सबकी निगाहें मंच की और हैं इतने में एक व्यक्ति खड़ा होता है और मंच से लोगों को संबोधित करना शुरू करता है. ‘आप सभी आज यहाँ आये हैं देश की समस्याओं पर चिंतन करने के लिए...आपको पता है देश में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है, सब तालियाँ बजाते हैं. भाषणकर्ता के चेहरे पर ख़ुशी छा जाती है, वह और जोश से बोलना शुरू करता है. इस देश की संसद में बैठे लोग भ्रष्ट हैं, सब के सब चोर हैं इन लोगों ने देश को बेचने की योजना बना रखी है और आये दिन यह इस देश को बेच रहे हैं विदेशियों के हाथों और खुद भी इस देश को लूटने के लिए तैयार बैठे हैं. वह सीधे  संवाद की मुद्रा में लोगों से प्रश्न करता है......क्या आपको पता है अगर हमारा यह कानून पास हो जाए तो देश के आधे से ज्यादा मंत्री जेल में होंगे, फिर तालियाँ....फिर वह नाम गिनना शुरू करता है...10-15 नाम जब तक नहीं लिए जाते सांस ही नहीं लेता है....वाह क्या बात है....इधर भाषणकर्ता भाषण देने में मशगूल है ...अचानक वह अपने सामने  देखता है और उसका जोश कम हो जाता है??? सबके चेहरे पर मायूसी छा गयी...अरे क्या हुआ किसी की समझ में नहीं आ रहा था ‘उसने भाषण देना इसलिए बंद कर दिया क्योँकि ना तो वहां पर्याप्त भीड़ थी और न ही कोई कैमरा उसकी इन बातों को रिकॉर्ड कर रहा था, वहां न कोई माइक था और न ही कैमरे की फ्लैश बार बार चमक रही थी....चलो ठीक है. बोलने वाला अपना भाषण संक्षिप्त कर देता है. फिर एक मंत्रणा होती है. देश से भ्रष्टाचार मिटाना है, इसलिए अब हम सामूहिक अनशन करेंगे, और यह दूसरी अगस्त क्रांति होगी....लोग भीड़ में कह रहे हैं...जी नहीं यह तीसरी अगस्त क्रांति होगी...क्योँकि आपकी इस बेलगाम टीम के वरिष्ठ सदस्य ने  पिछले वर्ष 2 बार अनशन किया था आप उनके योगदान को क्योँ भूल रहे हैं...जी नहीं मेरा मतलब यह नहीं था....फिर सन्नाटा...अब अनशन शुरू होता है...अच्छा खासा मंच सजता है..नारे लगते हैं...और लोग आगे बढ़ते हैं...!!!!!!
इतने में एक आदमी आता है और वह पूछता है अरे भाई ‘अगर आपका यह कानून पास हो गया तो में भी जेल में हूँगा’ अच्छा कोई बात नहीं हम उस मांग को हटा देते हैं और मुझे हंसी आती है. हमारा मकसद तो देश की एक विशेष पार्टी का विरोध करना है. इसलिए हम कानून का मुखौटा पहनकर, अनशन को हथियार बनाकर लोगों की भीड़ जुटाकर अपना मतलब सिद्ध कर रहे हैं. कल हमें भी वहीँ जाने की इच्छा है जहाँ यह सब चोर बैठे हैं. सामने से वह व्यक्ति प्रश्न करता है. आप भी वहां पहुँच कर ऐसे ही हो जाओगे....नेता कहता है..तब का तब देखा जाएगा...आम आदमी का ध्यान उधर नहीं है...पर्दे के पीछे एक नया खेल खेला जा रहा है.....भ्रष्टाचार को मिटाने की आस लिए जनता की आँखों की चमक बढ़ रही है...अब तो सब सही होकर ही रहेगा ....इतने में फिर दृश्य बदल जाता है ....! बाकी दृश्य अगले अंकमें..!!!