कुछ को दोस्त , कुछ को दुश्मन बनाना अच्छा लगता है
मुझे तो रिश्ता -ए-इंसानियत निभाना अच्छा लगता है ।
सिर्फ लफ्जों से वयां न हो , कि अच्छे हैं हम
मुझे सोच में , कर्म का कमाना अच्छा लगता है ।
मुझे तो रिश्ता -ए-इंसानियत निभाना अच्छा लगता है ।
सिर्फ लफ्जों से वयां न हो , कि अच्छे हैं हम
मुझे सोच में , कर्म का कमाना अच्छा लगता है ।
दुनियां में दर्द -ए -दहशत फेलाने वाले हैं हर मोड़ पर
मुझे प्यार कि एक दुनिया बसाना अच्छा लगता है ।
तू खुद से बेखबर है , कि तू अंश "खुदा" का है
मुझे इंसान को "भगवान" समझना अच्छा लगता है ।
आज मंजिल -ए-महफूज का सहारा बन जाते हैं सब
मुझे तो गिरतों को उठाना अच्छा लगता है ।
राज -ए- हकीकत का क्या कहूँ , किस तरह
बस तन्हाई में गुनगुनाना अच्छा लगता है ।
दुनिया की शान -ए -शोकत की नहीं परवाह मुझे
"केवल" इंसानियत के लिए मिट जाना अच्छा लगता है ।