राह चलते
जीवन के सफ़र में
मंजिल को तय करते
मिले मुझे लोग कई
अपनी-अपनी विशेषता से भरपूर
जिनमें अक्स देखा मैंने
अपनी भावनाओं का, अपने
विचारों का
समर्थन का-विरोध का
प्रेम का-नफरत का, अच्छे
और बुरे का भी
जितने नज़ारे हैं,
इस जहान में-उस जहन में
जितने अनुभव हैं, दुनिया
में
एक-एक कर सब समेटे हैं मैंने
अपनी आँखों से-अपने मन से-अपने हृदय से
लेकिन इन सबसे परे पाया है मैंने
‘माँ’ की ममता को.
माँ का होना ही मेरा होना है
यूं माँ-माँ होती है, अक्सर लोग कहते हैं
लेकिन जितना मैंने पाया है
माँ को समझना आसान नहीं,
उसके अहसासों को शब्दों में बांधना
कल्पनाओं और वास्तविकता को समझना
सामान्य बुद्धि का काम नहीं
नहीं होती है वह जुदा
अपने अक्स से
नहीं होता कोई अन्तर, उसके मन-वचन और कर्म में
वह संजीदा है हर हाल में हर किसी के लिए
उसकी ममता में नहीं भेद अपने-पराये के लिए
समदृष्टि और समभाव की प्रतिमूर्ति है
माँ मेरे लिए.
सोचता हूँ कभी तनहाई में
क्या कुछ किया मैंने अपनी माँ के लिए?
यूं एक दिन उस चर्चा में, मैं भी शामिल हुआ था
जहाँ बखान कर रहे थे, अजीज मेरे
अपनी माँ की खुशियों के लिए किये गए
प्रयासों का,
वह मूल्य आंक रहे थे माँ की ख़ुशी का
भौतिक वस्तुओं से, अपनी
उपलब्धियों से, अपनी शान भरी जिन्दगी से
लेकिन........
उनकी.... माँ उनसे दूर है
वह अकेले जीने को मजबूर है
बेटे उसे भेजते हैं चंद पैसे
उसका भी उन्हें गरूर है.
यूं माँ के प्रति फर्ज निभाना
काम मुश्किल है.
मैंने जब भी माँ के बारे में सोचा
मेरी कल्पना हमेशा बोनी साबित हुई
और कर्म अपंग हो गया
माँ के हर अहसास का मैं कर्जदार हो गया
जिन चीजों को मैंने समझा कि माँ की इसमें ख़ुशी है
तो मेरा यह अनुमान भी हमेशा आधारहीन साबित हुआ.
माँ बस माँ है
उसकी कोई व्याख्या नहीं
बजूद मेरा कुछ भी नहीं है
उसके सिवा
मैंने खुद को जब गहरे से विश्लेषित किया
तो पाया कि
माँ की बेहतर अभिव्यक्ति हूँ मैं
इस जहान में सबसे बेहतर रचनाकार है माँ
एक अद्भुत शिल्पकार है माँ
जो कष्ट सहनकर बनाती है एक जीवन
इस दुनिया के लिए
वह अर्पित कर देती है अपने कलेजे के टुकड़े को
देश की बेहतरी के लिए.
माँ ही जीवन है मेरा, उसकी ही छाया हूँ मैं
मेरी आँखों में रोशनी बेशक हो,
लेकिन दृष्टि माँ ने ही दी है मुझे
जुबान है मुँह में मेरे
भाषा और मिठास, माँ
ने दी है मुझे
क्या अच्छा है, क्या
बुरा
क्या सच है, क्या
झूठ
क्या प्रेम है, क्या
नफरत
इस सबकी पहचान दी है माँ ने मुझे
मेरे जीवन के सफ़र में
हर अहसास की साक्षी है माँ
मैंने जब-जब भी सोचा अपने बजूद के बारे में
तो हर बार यही पाया कि
मैं कहीं नहीं हूँ, कुछ
भी नहीं
सिर्फ माँ की अभिव्यक्ति हूँ मैं
ठीक कवि की कविता की तरह
शिल्पकार की मूर्ति की तरह
चित्रकार की कूची से अभिव्यंजित
एक बड़े फलक पर उकेरे चित्र की तरह
सृजन हूँ में माँ का,
उसी से बजूद है मेरा
उसी की अभिव्यक्ति हूँ मैं