गतांक से आगे आत्मानुशासन जीवन की अनिवार्यता है. जो व्यक्ति
इसे अपना लेता है वह अपने लिए और दूसरों के लिए प्रेरणा और ख़ुशी का कारण बनता है.
जीवन का यह अनुभूत सत्य है जब हम आत्मानुशासन को साथ लेकर चलते हैं तो बहुत सी
बुराइयों से बचे रह सकते हैं और अपने परिवार और समाज को एक नयी दिशा दे सकते हैं.
आज के दौर में सबसे बड़ी कमी आत्मानुशासन की दिखती है, जिस कारण सारी की सारी व्यवस्थाएं चरमरा गयी है. व्यक्ति का चमक-दमक की
और बढ़ना, भौतिक लालसाओं की पूर्ति के लिए अपना सब कुछ दांव
लगा देना ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनके कारण हम आज ऐसे मोड़ पर पहुँच चुके हैं जहाँ
असुरक्षा है, बेकारी है, संवेदनहीनता
है और अन्धानुकरण है. ऐसे माहौल में हम ऐसी अपेक्षाएं लिए बैठे हैं जहाँ हम अपने
लिए सब कुछ सहज और सुलभ चाहते हैं, लेकिन दुसरे के लिए नहीं
और इसी कारण एक ऐसा माहौल बन गया है जहाँ कोई भी सुरक्षित नहीं और आने वाले दिनों
में यह सब कुछ और बढेगा, क्योँकि अब विकल्पहीन दुनिया की बात
की जा रही है और संभवतः हम अब विकल्पों पर विचार भी नहीं करना चाहते, क्योँकि आधुनिक और उत्तर आधुनिक होने की होड़ में हम अपना सब कुछ गवांते जा
रहे हैं और निश्चित रूप से यह सबके अस्तित्व को मिटाने के लिए पर्याप्त है.
आज हर तरफ नारी को लेकर बहस का
माहौल है और कुल मिलाकर स्थिति बहस के बाद भी निरर्थक है. आज बड़ा मुद्दा यह है कि
जिस नारी को हम प्रेरणा, आशा, त्याग, प्रेम आदि मूल्यों के लिए जानते थे आज नारी
के जहन से वह सब कुछ ख़त्म हो गया है. समाज निर्माण हो या सृष्टि निर्माण दोनों में
नारी की भूमिका कम नहीं है. लेकिन शयद नारी के लिए यह समझ से परे है, अगर मैं यह कहूँ कि आज जिस मौड़ पर हम खड़े हैं वहां तक पहुँचने में नारी की
भूमिका कम नहीं है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. आज सब कुछ फैशन बन गया है और हम
बदलाव के नाम पर इसे करते हैं लेकिन उसके क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं यह हम
नहीं सोचते. बस यहीं से बात बिगड़ जाती है और अंततः हमें वह सब कुछ मिलता है जिसकी
हमने कल्पना भी नहीं की होती और आज यही सब कुछ हो रहा है. जहाँ तक नारी को देह
समझने का सवाल है अगर यह बात मान भी ली जाये कि पुरुष उसे मात्र देह समझता है तो
नारी भी हमेशा उसे यही समझाने का प्रयास करती है
कि वह देह ही है. ऐसे अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं. बीते वर्षों में तो
स्थिति और भयावह हुई है और आने वालों वर्षों में यह और भी दर्दनाक होगी यह किसी से
छुपा नहीं है, लेकिन हम हैं कि चीजों को बहुत सतही तौर से ले
रहे हैं.
आज नारी बीडी से लेकर बिस्तर
तक हर जगह नजर आती है. कैसे नजर आती है यह तो आपसे भी छुपा
नहीं. जितनी भी कलात्मक दुनिया है वहां अगर हम देखें तो उन सब चीजों का उद्देश्य दुनिया के मनोरंजन के साथ-साथ एक सार्थक सन्देश देना है ताकि देश और दुनिया में बसने वाले लोग उन सबसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सही ढंग से जी पायें. लेकिन आप खुद ही देखिये कोई भी ऐसा माध्यम नहीं है जहाँ पर नारी अपने देह का प्रदर्शन ना करती हो. स्थिति तो यहाँ तक पहुँच चुकी है कि उसने देह को एक माध्यम बना लिया है अपने आगे बढ़ने का जिसे हम दूसरे शब्दों में सफलता भी कहते हैं. आज फिल्म और विज्ञापन की ही अगर हम बात करें तो क्या स्थिति है. बस पैसा दो और कुछ भी करवा लो?? सभ्यता और संस्कृति की बात सोचना तो बहुत दूर, हम अपनी अस्मिता को ही दांव पर लगा रहे हैं और सिर्फ धन अर्जन को ही सफलता का पर्याय मान रहे हैं. ऐसी स्थिति में जीवन मूल्य तो बदले ही हैं और जब सब कुछ परिवर्तन की राह पर अग्रसर है तो फिर हम क्योँ एक ही आँख से देखते हैं, जब कोई अप्रिय घटना होती है.
नहीं. जितनी भी कलात्मक दुनिया है वहां अगर हम देखें तो उन सब चीजों का उद्देश्य दुनिया के मनोरंजन के साथ-साथ एक सार्थक सन्देश देना है ताकि देश और दुनिया में बसने वाले लोग उन सबसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सही ढंग से जी पायें. लेकिन आप खुद ही देखिये कोई भी ऐसा माध्यम नहीं है जहाँ पर नारी अपने देह का प्रदर्शन ना करती हो. स्थिति तो यहाँ तक पहुँच चुकी है कि उसने देह को एक माध्यम बना लिया है अपने आगे बढ़ने का जिसे हम दूसरे शब्दों में सफलता भी कहते हैं. आज फिल्म और विज्ञापन की ही अगर हम बात करें तो क्या स्थिति है. बस पैसा दो और कुछ भी करवा लो?? सभ्यता और संस्कृति की बात सोचना तो बहुत दूर, हम अपनी अस्मिता को ही दांव पर लगा रहे हैं और सिर्फ धन अर्जन को ही सफलता का पर्याय मान रहे हैं. ऐसी स्थिति में जीवन मूल्य तो बदले ही हैं और जब सब कुछ परिवर्तन की राह पर अग्रसर है तो फिर हम क्योँ एक ही आँख से देखते हैं, जब कोई अप्रिय घटना होती है.
व्यक्ति की सोच का पहला परिचय
उसका पहनावा होता है, हम किसी व्यक्ति को
दूर से ही देखकर उसके पहनावे से उसका प्रथम परिचय ले सकते हैं और जैसा उसका पहनावा
होगा उसके प्रति वैसी सोच बना सकते हैं. लेकिन आज देखता हूँ तो व्यक्ति में इसी चीज
के प्रति संवेदनशीलता नहीं है. हमने कपडे का आविष्कार किया शरीर को ढंकने के लिए
लेकिन आज हम फिर उस आदिम युग की तरफ बढ़ रहे हैं, एक तरफ
पहनावा और दूसरी तरफ कामुक अदाएं माहौल कुछ ऐसा की व्यक्ति कुछ सोच ही नहीं पाता,
किसी हद तक तो मानसिकता की बात स्वीकारी जा सकती है लेकिन शत
प्रतिशत ऐसा भी नहीं है. मानसिकता बनी है तो उसके भी कारण रहे होंगे और वह निश्चित
रूप से ही होते हैं. हमें उन कारणों पर गहनता से विचार करने की जरुरत है और फिर
कोई सार्थक निर्णय लिया जा सकता है.
सही मायनों में हम अगर दुनिया
को भविष्य में सुंदर और खुशहाल रूप में देखना चाहते हैं तो हम सबकी यह जिम्मेवारी
है की हम सबसे पहले अपने जीवन मूल्यों का निर्धारण करें फिर समाज की वर्तमान
प्रवृतियों का विश्लेष्ण करें और फिर कोई सार्थक निर्णय लें. अगर हम ऐसे माहौल के
निर्माण के लिए जिम्मेवार हैं तो हम एक सौहार्दपूर्ण माहौल भी अख्तियार कर सकते
हैं और यह आज के युग की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी, वर्ना
आने वाली पीढियां किस गर्त की तरफ जायेंगी यह तो सोच कर ही डर लगता है. जैसे आज हम
इतिहास से प्रश्न करते हैं आने वाली पीढियां हमसे भी वाही प्रश्न करेंगी. इसलिए
सही मायनों में मान्विस्य मूल्य स्थापित करने हैं तो किसी कानून के बजाए हम
आत्मनिरीक्षण को ज्यादा पहल दें. हर चीज के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलूओं
को देखें, कहीं पर विरोध करने का अवसर मिले तो उसके पीछे के
कारणों को समझने की कोशिश जरुर करें . तभी एक बेहतर समाज की परिकल्पना की जा सकती
है और नारी को देह नहीं, देवी स्वीकार किया जा सकता है. अगर
नारी भी ऐसा माहौल तैयार करने में सहयोग करे तो....बाकी आपकी इच्छा ???