गतांक से आगे ..........!

आज भी जब इंसान को इंसान की तरफ तलवार, गोला बारूद , और भी ना जाने क्या -क्या लिए देखता हूँ तो आँखें चुंधिया जाती हैं . कोई धर्म को लेकर लड़ रहा है तो कोई जाति को लेकर , किसी का राम बड़ा है, तो किसी का अल्लाह , किसी को मस्जिद चाहिए तो, किसी को मंदिर . ना जाने कितनी बिडम्बनाएँ आज हमारे सामने हैं , और फिर भी हम आजादी की बात करते हैं . हमने कभी "आजादी" शब्द को विचारा ही नहीं, कि क्या सच में हम आजाद हैं ? अगर थोडा सा भी विचार किया होता तो आज ना तो कश्मीर का मुद्दा होता और ना अयोध्या का . लेकिन हमने क्या किया , "जीवन क्या जिया , बहुत - बहुत ज्यादा लिया , दिया बहुत बहुत कम , मर गया देश , अरे जीवित रह गए तुम" ( मुक्तिबोध ) . हमारा जीवित रहना और देश का मरना कहाँ की आजादी है , किस तरह की आजादी है . जबकि इस आजादी को प्राप्त करने के लिए हमारे देश के लाखों वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी . क्या सच में हम उनकी कुर्बानियों की कद्र कर पाए . किसी भी हालत में नहीं , अगर की होती तो आज हमारे सामने यह स्थितियां पैदा नहीं होती .हम आजादी का जश्न मनाते हैं बस एक औपचारिकता को निभाते हैं .

आजादी शब्द पर गहराई से विचार करें तो आजादी का मतलब है "बंधन रहित होना" अब यहाँ बंधन कितनी तरह के हैं . हमें किन बन्धनों से आजाद होने की जरुरत है . यह विचारना जरुरी है . जब तक हम यह नहीं विचार पाएंगे आजादी के सही मायने नहीं समझ पायेंगे . जब हमारे सामने कोई बंधन ही नहीं है तो फिर कहाँ की विसंगतियां हैं और कौन सी बिडम्बनाएँ , फिर तो हमारे सामने एक उन्मुक्त आकाश है जहाँ हम विचर सकते हैं अपनी मस्ती में, कर सकते हैं सभी के हितों का ख्याल, लगता है सामने वाला भी अपना ही प्रतिरूप , अगर यह आभास होता है तो फिर तो आजादी है , फिर तो जीवन को नैसर्गिक रूप से जिया जा रहा है , जैसा हमें खुदा ने बख्शा था वैसे ही जीवन हम जी रहे हैं और पूरी कायनात के लिए हम वरदान साबित हो रहे हैं . लेकिन ऐसा दिखता नहीं , बस यही अफ़सोस है और यही दुःख !!

जीवन में सबसे पहले हमें आजाद होने की जरुरत है , अगर यह नहीं हो पाता तो फिर वही बात " भोजन, भोग , निद्रा, भय यह सब पशु पुरख सामान " तो फिर हमारी हालत पशु से अलग नहीं है . अगर हम कहीं अलग हैं तो हमारी समझ के कारण और अगर हममें यह समझ है तो फिर तो हम आजाद हैं . ना हमें कोई हिन्दू नजर आता है , ना कोई मुसलमान , ना कोई सिक्ख है , ना कोई ईसाई, ना कोई देश है , ना कोई सरहद है , ना कोई दीवार है , ना कोई भ्रम . बस अगर है तो एक ऐसा उदात दृष्टिकोण जहाँ पर सब अपने नजर आते हैं . " एक पिता एक्स के हम बारक " फिर कहाँ भिन्नताएं हैं . और यह सच में जीवन में आजादी है , जीवन को जीने का आनंद ही अलग है . थोडा सा समय मनुष्य रूप में हमें इस धरती पर रहने को मिला है और इस समय का हम पूरा सदुपयोग कर रहे हैं . मतलब हम आजाद है , हर पल , हमारे लिए कोई एक दिन आजादी का नहीं बल्कि हर पल आजादी है .

अब हमें आजादी से मुक्ति की और बढ़ना है . हमारे धर्म ग्रंथों में मुक्ति को जीवन का साध्य माना गया है . और ज्ञान को मुक्ति तक पहुँचने का साधन ....ज्ञान को समझ कहा गया है और समझ भीतर की वस्तु है , ह्रदय का प्रकाश है . हमारे धर्म ग्रंथों में जो जीवन के चार वर्ग ( धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष ) निर्धारित किये गए हैं , उनमें से मोक्ष भी एक है . हमें जीवन रहते इसे प्राप्त करना है, अब हमें शरीरों से के बंधन से मुक्त होना है . "मानुष जन्म आखिरी पौड़ी , तिलक गया ते बारी गयी" यानि मनुष्य जन्म आखिरी जन्म है, अगर इस जन्म में हम अपनी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज पाए तो फिर जीवन व्यर्थ चला गया , फिर हमें चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़ना पड़ेगा . और फिर वही हालत . हम मोक्ष या मुक्ति के मामले में काल्पनिक बने रहते हैं , कि जीवन के बाद कहीं मोक्ष है लेकिन वास्तविकता इससे कहीं दूर है . वास्तविकता में मोक्ष या मुक्ति आत्मा से परमात्मा से मिलन है , आत्मा जब परमात्मा से मिल जायेगी तो मुक्ति संभव है . दुसरे शब्दों में हम इसे बैकुंठ भी कहते हैं , और बैकुंठ का मतलब है जहाँ कोई कुंठा नहीं , जहाँ कोई चिंता नहीं बस आनंद ही आनंद है . और यही आजादी भी है . काश हम जीवन को नैसर्गिक रूप से जीते , आत्मिक स्तर से सोचते आजादी मनाते , मुक्ति पाते ....और सही मायनों में इंसान कहलाते ...!!!