09 अगस्त 2011

चिंतन : मौलिकता , सार्थकता


जीवन और साहित्य एक दूसरे  के पर्याय हैं . जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जिसे साहित्य में स्थान नहीं दिया गया हो , दूसरे  शब्दों में यह भी  ही कह सकते हैं कि जीवन ही साहित्य है और साहित्य ही जीवन . यहाँ "साहित्य" शब्द को व्यापक अर्थों में ग्रहण करने की जरूरत है , साहित्य मतलब ...सभी का हित , जब हम सभी के हित को सामने रखकर किसी लक्ष्य की तरह बढ़ते  हैं तो उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमारे पास एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस होती है . जितना -जितना हमारा दृष्टिकोण व्यापक होगा उतनी हमारी  सफलता सुनिश्चित हो जाती है . इस व्यापक दृष्टिकोण  को बनाये रखने के लिए हमें सतत चिंतन की महती आवश्यकता होती है . चिंतन से हमारा अभिप्राय किसी लक्ष्य के उस पक्ष से है  जहाँ हम अपने मंतव्य को हासिल करने के लिए उस विचार के हर पक्ष पर गहराई से चिंतन  करते हैं जिससे  हमारा  लक्ष्य सिद्ध होता है .
लेकिन जहाँ तक चिंतन की बात है वह एक व्यापक परिभाषा की अपेक्षा रखता है और उसमें समाहित होने वाली चीजें जीवन का सार हैं . हम यह भी कह सकते हैं कि जड़ और चेतन , आत्मा और परमात्मा , सीमित और असीमित , राग और वैराग , संभोग और समाधि, क्रिया और प्रतिक्रिया सब चिंतन का हिस्सा हैं और यह जिस भी रूप में आज हमारे सामने हैं सब चिंतन  का परिणाम हैं . वेदों से लेकर आज तक चिंतन के कई आयाम हमारे सामने उपस्थित हुए हैं . सब में जीवन को विशद रूप से अभिव्यंजित करने का प्रयास किया गया . लेकिन जीवन और सृष्टि  आज भी हमारे सामने एक रहस्य बने हुए हैं . आत्मा - परमात्मा पर तो बहुत गहराई  से विचार किया गया , लेकिन आज भी किसी एक निष्कर्ष पर पहुचना संभव नहीं हुआ है . हम तथ्यात्मक रूप  से अब भी कुछ नहीं कह सकते लेकिन विचार और चिंतन जरुर कर सकते हैं और उसी कड़ी को आज भी कई चिंतन शील व्यक्ति आगे बढ़ा रहे हैं और किसी हद तक यह सही भी लगता है . जब हजारों लाखों की भीड़ उनके सामने नजर आती है और उनके कहे वचनों पर झूमती है और झुमने के बाद उस आनन्द को अपने साथ ले जाने की अपेक्षा वहीँ  पर छोड़ देती है और फिर उस वातावरण से बाहर  निकलने के बाद इस मायावी संसार में रम जाती है और फिर हालात आज हमारे सामने हैं जिन्हें अभिव्यक्त करने की जरुरत नहीं .
चिंतन के भी कई आयाम हैं , स्वर्ग से  नरक तक , धर्म  से  आध्यात्म तक , जन्म से  मृत्यु तक , राम से  रावण तक , कृष्ण से कंस तक , राजा से रंक तक , ज्ञानी से अज्ञानी तक ना जाने कितने , लेकिन सभी का मंतव्य किसी निष्कर्ष तक पहुंचना है और यह सिद्ध करना है कि आखिर वास्तविकता क्या है लेकिन वास्तविकता तक पहुंचना इतना आसान भी नहीं और इतना कठिन भी नहीं . बस जरुरत है अपने मंतव्य को सामने रखकर उस पर चिंतन करने की. जब हम खुद के अस्तित्व को तलाशते हैं तो हमें क्या नजर आता है , बस वहीँ से चिंतन शुरू हो जाता और एक तलाश भी और एक दृढ कदम अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने का . जीवन हो या सृष्टि सभी का मूल , सभी की गति अपने लक्ष्य की तरफ है यह बात अलग है कि किसी के सामने वह लक्ष्य रहता  है और किसी के सामने नहीं, लेकिन वह घटित जरुर होता है उसे घटित होने से कोई नहीं रोक सकता, वह होकर रहेगा यह अकाट्य सच्चाई है . जिसने उसे नजर अंदाज कर दिया वह भटक गया और जिसने उसे महसूस कर लिया वह संवर गया . उसने जीवन का लाभ ले लिया वह अपने जीवन को सफल कर गया  उसने बैकुंठ को पा लिया , परमधाम को पा लिया वह कालातीत को गया , लेकिन जिसने उस लक्ष्य को भुला दिया वह रहा ही नहीं जीवन में भटकता रहा और जीवन के बाद भी .
चिन्तनशील हमेशा कोशिश करता है सभी का हित साधने की उसका लक्ष्य बड़ा है अपने जीवन और सुख सुविधाओं से बड़ा , वह अपने चिंतन को सिद्ध करने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने के लिए तैयार है बस यही अहसास उसे होना चाहिए कि उसके  प्राणोत्सर्ग  से उसका लक्ष्य सिद्ध हो रहा है तो उसे कोई कठनाई नहीं यह चिंतन की पराकाष्ठा कही जानी चाहिए और ऐसा चिन्तक विरला ही होता है . जिस समाज और देश में ऐसे चिन्तक हैं वहां किसी चीज की कोई कमी नहीं . जीवन से जुडी जितनी भी चीजें सब उनके पास उपलब्ध हैं और वह भौतिक रूप बेशक संपन्न नहीं हैं लेकिन आत्मसंतुष्टि का भाव उनमें  किसी भौतिक रूप से संपन्न व्यक्ति से कहीं जयादा है , यह चिंतन का प्रतिफल कि हर परिस्थिति में जीवन को जीवन बनाये रखना और खुद को इंसान .
लेकिन आज जब नजर दौड़ाकर देखता हूँ तो हर तरफ अँधेरा ही नजर आता है , हालाँकि भौतिक चकाचौंध के साधनों का विस्तार निरंतर हो रहा है और इंसान का जीवन काफी हद तक  सुगम बन गया है उसने जितने साधनों का विकास किया है उससे उसके जीवन में एक क्रांति आ गयी है , लेकिन अफ़सोस ......इंसान इतना संकीर्ण हो गया है कि उसके दिल में किसी के लिए जगह नहीं , किसी के लिए प्यार नहीं , किसी के लिए सम्मान नहीं उसके सामने हैं तो बस अपनी भौतिक उन्नति अपनी सुख सुविधा के साधनों का एकत्रण और वह भी बिना किसी लक्ष्य के . वह दौड़ रहा है एक अनिश्चित लक्ष्य की तरफ और इस दौड़ में उसे सार्थक - निरर्थक  जो कुछ भी मिल रहा है उसे अपना रहा है और यह भूल गया है कि उसकी इच्छाओं कि दौड़ अनंत  हो सकती है लेकिन जीवन की एक सीमा है " तृष्णा न जीर्ण : , वयमेव जीर्ण : " लेकिन यहाँ ख्याल कहाँ उसके सामने तो कुछ और ही है . बस यहीं पर आकर लगता है कि हमारा चिंतन किसी काम का नहीं . हम आगे ही नही बढ़  पाए बल्कि पीछे हट रहे हैं , जो मानवीय मूल्य हमारे सामने थे वह आज कहाँ गए . जो चिंतन हमारे सामने था वह कहाँ  गया . आज जब कोई खुद को बड़ा चिन्तक साबित करना चाहता है तो वह पुरातन धर्म ग्रंथों या साहित्य की व्याख्या कर देता है और जरुरी नहीं  उसकी वह व्याख्या देश काल और परिस्थिति के अनुसार सही हो . लेकिन फिर भी हम ध्यान नहीं देते . हाँ यह बात जरुर हो सकती है कि हम कुछ अच्छी चीजें वहां से सीख सकते हैं , अनुकरण कर सकते हैं  अन्धानुकरण नहीं . लेकिन हमारा  अपना तो कोई दृष्टिकोण नहीं होता इसलिए अनुकरण करने की बजाय अन्धानुकरण कर बैठते हैं , और जब ऐसा करते हैं तो फिर कहाँ हमारा चिंतन , कहाँ हमारा दृष्टिकोण . सब शून्य हो जाता है .

62 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पहली पंक्ति के 'दुसरे' को हम 'दूसरी' तरह से लिखते हैं केवल जी.

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  2. आजकल आर्थिक चिंतन अध्यात्म चिंतन के ऊपर हावी है !

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  3. आपका कहना सही है ....लेकिन वास्तविकता क्या है ? यही समझना आवश्यक है ....अगर आर्थिक चिंतन से मानव का कल्याण होता है तो वह भी सही ...लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है ....जितना - जितना हम आर्थिक चिंतन करते जा रहे हैं उतना - उतना हमारा मानसिक स्तर गिर रहा है और इंसान अशांत फिर रहा है अपनी लालसाओं के लिए ....!

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  4. जीवन और साहित्‍य के रूप में गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  5. इंसान इतना संकीर्ण हो गया है कि उसके दिल में किसी के लिए जगह नहीं , किसी के लिए प्यार नहीं , किसी के लिए सम्मान नहीं ,उसके सामने हैं तो बस अपनी भौतिक उन्नति ...

    जाने अनजाने लालसाएं सब लील रही हैं !
    सार्थक चिंतन !

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  6. पढ पढ थाके पंडिता, किनहूँ न पाया पार।
    कथ कथ थाके मुनिजना, दादू नाम अधार॥

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  7. अच्छा लेख ... चिंतन मनन से उपजा हुआ ..अच्छा लगा

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  8. चिंतन जब सही दिशा मे होगा तभी सार्थक होगा। सबसे पहले अपने को पहचाने इंसान खुद को जाने और अपने अन्दर उतरे और संतोष रूपी धन को ग्रहण करे तो फिर किसी चिन्तन की आवश्यकता नही रहेगी फिर उसे हर तरफ़ शांति और खुशी का ही आभास होगा मगर जब तक ऐसा नही करता तब तक यूँ ही भटकता रहेगा।

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  9. चिंतन जब सही दिशा मे होगा तभी सार्थक होगा। सबसे पहले अपने को पहचाने इंसान खुद को जाने और अपने अन्दर उतरे और संतोष रूपी धन को ग्रहण करे तो फिर किसी चिन्तन की आवश्यकता नही रहेगी फिर उसे हर तरफ़ शांति और खुशी का ही आभास होगा मगर जब तक ऐसा नही करता तब तक यूँ ही भटकता रहेगा।

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  10. यदि चिंतन और मनन होता तो आज इस देश में २ G और कामनवेल्थ घोटाले नहीं होते और दोनों सूत्रधार आज जेल में होते

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  11. क्या बात है.. वाकई अद् भुत चिंतन है..

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  12. बढ़िया चिंतन.. चिंतन जीवन को सार्थक करते हैं..

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  13. चिंतन ....अपने आप में परिभाषित है ...पूर्ण है की नहीं ....ये कोई नहीं जा पाया ..
    लेखन की प्रस्तुति ..काबिले तारीफ़ है

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  14. आज हम अपनी भौतिक उन्नति को केंद्र में रखकर सारे काम-काज करते हैं...
    बहुत बढ़िया....

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  15. "जीवन ही साहित्य है और साहित्य ही जीवन."-साहित्य की ढ़ेरों परिभाषाएं है लेकिन आपकी तरह मेरा भी मानना है कि साहित्य का लक्ष्य "बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय" हो तो बेहतर होगा जैस तुलसी और कबीर के साहित्य में देखने को मिलता है-एक मार्गदर्शी दृष्टिकोण देनेवाला.
    आज भौतिक सुख के आधिक्य ने विचारक्षेत्र को सिमित कर लिया है,बंदी बना लिया है.बहुत सारगर्भित आलेख है.पढ़कर मजा आ गया.

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  16. चिंतन की सार्थकता बताता शोधपरक आलेख !

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  17. साहित्य को परिभाषित करता हुआ सुन्दर आलेख प्रकाशित किया है आपने!

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  18. Behtrin Prastuti...
    ek bhawpurn rachna ke liye badhai.

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  19. भौतिक उन्नति के लिए सोच तो स्वीकार्य है पर पागलपन नहीं....यही हो रहा है...सार्थक चिंतन लिए पोस्ट

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  20. अत्यंत सटीक और सामयिक चिंतन, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  21. सही कहा केवल जी दृष्टिकोण की व्यापकता और चिंतन जीवन में अत्यंत आवश्यक है. काफी चिंतन के साथ लिखा आलेख.

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  22. सभी मानवीय मूल्य बाज़ारवाद की आग में जल गए:(

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  23. बहुत बढ़िया व सार्थक प्रस्तुति,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  24. संसार में अच्छाई, बुराई सब प्रकार की विविधता, सदा से रही है। हम केवल आज का समय देख रहे हैं इसलिये निराशा हो सकती है परंतु समय बुरा भी नहीं है।

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  25. अनुकरण करने की बजाय अन्धानुकरण कर बैठते हैं , और जब ऐसा करते हैं तो फिर कहाँ हमारा चिंतन , कहाँ हमारा दृष्टिकोण . सब शून्य हो जाता है .

    बहुत सही लिखा है आपने.अन्धानुकरण नहीं किया जाना चाहिए.

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  26. जीवन को दृष्टि देता बहुत अच्छा आलेख.... निःसंदेह अन्धानुकरण से बचना चाहिए.

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  27. केवल राम जी -चलते-चलते आप कहाँ से कहाँ चले गए,जरा समय निकाल कर हमारे पोस्ट पर भी अपनी उपस्थिति का एहसास कराने की कोशिश कीजिए। आपका पोस्ट अच्छा लगा। धन्यवाद।

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  28. बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  29. भौतिक चकाचौंध के साधनों का विस्तार निरंतर हो रहा है और इंसान का जीवन काफी हद तक सुगम बन गया हैउसके जीवन में एक क्रांति आ गयी है ,.... लेकिन अफ़सोस ......इंसान इतना संकीर्ण हो गया है किसी.....
    friend! we always think, its a process of mind ,but self-inspected realm provides the real picture of life ,to adapt this instrument we can break trough the wall of scarcity,and misery of thinking . Thanks to raise good issue .

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  30. जीवन और साहित्‍य के रूप में गहन भावों का समावेश
    सार्थक पोस्ट.......

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  31. Bahut badiya sarthak chintan-manan prastuti ke liye aabhar!

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  32. "साहित्य मतलब ...सभी का हित , जब हम सभी के हित को सामने रखकर किसी लक्ष्य की तरह बढ़ते हैं तो उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमारे पास एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस होती है..."
    अच्छा लेख ... सार्थक चिंतन...

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  33. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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  34. आद.केवल राम जी
    आप अपना असर हर बार छोड़ने में कामयाब हो जाते हैं बहुत ही बढ़िया लेख बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर !

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  35. साहित्य को परिभाषित करता आलेख बेहतरीन प्रस्‍तुति....केवल जी

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  36. गहन भावों का समावेश ..बढ़िया चिंतन.. .बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  37. सुन्दर और सार्थक चिंतन से परिपूर्ण लेख..
    आधुनिकता की अंधी दौड़ में आदमी विवेकहीन हो बैठा है |

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  38. बेनामी12/8/11 6:34 am

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  39. भाई केवल राम जी बहुत ही वैचारिक और सुन्दर पोस्ट बधाई

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  40. भाई केवल राम जी बहुत ही वैचारिक और सुन्दर पोस्ट बधाई

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  41. बहुत बढ़िया लगा! सटीक चिंतन! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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  42. वर्तमान में चिंतन पर भौतिकतावाद हावी है। ऐसे में संस्कृति और परंपरा का प्रदूषण होना ही है।

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  43. बहुत मननीय आलेख...आज हम बिना कुछ सोचे अंधानुकरण कर रहे हैं, चाहे वह आर्थिक क्षेत्र में हो या आध्यात्मिक क्षेत्र में. हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की ज़रूरत है..आपके निष्कर्ष से पूर्णतः सहमत हूँ.

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  44. bahut hi gahri chintan hai ,baat samjhne ki hai ,rakhi ki badhai

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  45. आज का आगरा , भारतीय नारी,हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल , ब्लॉग की ख़बरें, और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं

    सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
    आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं

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  46. शानदार चिन्तन....अब मनन में लगे हैं.

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  47. बढ़िया सोंच ....शुभकामनायें आपको !

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  48. स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें.

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  49. गहरे चिंतन के बाद लिखी हुयी पोस्ट है केवल जी तो इसलिए ये तो नहीं कहूँगा की चिंतन की प्रक्रिया शून्य हो गयी है ... हाँ दिशा जरूर बदल गयी है ... कमी जरूर आ गयी है जिसके कारण से मानसिक गुलामी की तरफ बढ़ रहे हैं ...

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  50. जितना -जितना हमारा दृष्टिकोण व्यापक होगा उतनी हमारी सफलता सुनिश्चित हो जाती है .

    तो आप एक सफल रचनाकार बनते जा रहे हैं .....

    :)) बधाई ....

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  51. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें .

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  52. आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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  53. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
    सार्थक चिंतनयुक्त आलेख।

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  54. चिंतन के भी कई आयाम हैं , स्वर्ग से नरक तक , धर्म से आध्यात्म तक , जन्म से मृत्यु तक , राम से रावण तक , कृष्ण से कंस तक , राजा से रंक तक , ज्ञानी से अज्ञानी तक ना जाने कितने

    aaj samay kiske paas hai aam aadmee par hee mahngaaee kee sabse badee chot padee hai.....apne parivarka sahee tour par palan poshan v baccho kee shiksha kee vyvsthta to kare fir samaj aur sahity kee bate hongee.......
    lekh badiya hai.......

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  55. Loved to see Photo of Osho, my beloved Master..

    Will come again to read the blog in detail...

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  56. बेनामी27/1/12 6:58 am

    What a great website. Well done

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  57. बेनामी3/6/12 2:49 pm

    delete my topic, admins, plz

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.