27 अप्रैल 2014

सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...6

5 टिप्‍पणियां:
ब्लॉग को हम कोई कमतर माध्यम न समझें, अगर ब्लॉग के विषय में हमारी समझ ऐसी है तो हमें अपने मंतव्य पर पुनर्विचार की आवश्यकता है. गतांक से आगे......इस बात में कोई दो राय नहीं कि आज के सन्दर्भ में ब्लॉग अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है, इसके माध्यम से हम अपनी अभिव्यक्ति को वह विस्तार दे सकते हैं जो हम किसी और माध्यम से कल्पना भी नहीं कर सकते. इसके साथ-साथ ब्लॉग पर लिखी गयी सामग्री को हम विशेष सन्दर्भ के साथ उल्लेख करते हुए उसे और आकर्षक प्रस्तुति देते हुए पाठक का ध्यान उस और आकृष्ट कर सकते हैं. हमारे पास अपने लिखे हुए को प्रचारित करने के अनेक तरीके हैं. लेकिन प्रचार से ज्यादा महत्वपूर्ण है सामग्री की गुणवता को बनाये रखना. अगर हम अपने ब्लॉग पर सामग्री की गुणवता को बनाये रखते हैं तो फिर कोई ख़ास बजह नहीं कि हम अपने लेखन में किसी मुकाम को हासिल न कर पायें. हमें अपने सृजन में हर हाल में ब्लॉग पर प्रस्तुत की गयी सामग्री की गुणवता को बनाये रखना है.
इसके साथ ही बेहतर यह भी होगा कि हम नीश ब्लॉगिंग की तरफ बढ़ें. अगर हम ऐसा करने में सक्षम हो पाते हैं तो फिर पाठक हमें एक विशेषज्ञ की नजर से देखेगा. हमें पाठक को अपने किसी विषय पर विशेषज्ञ होने का अहसास करवाना है या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है. हम पाठक के लिए उस खास विषय पर एक नयी दृष्टि लेकर आयें, किसी एक बिन्दु पर नया और प्रासंगिक दृष्टिकोण लेकर आयें तो हमें फिर कुछ और कहने की आवश्यकता नहीं है. क्योँकि ऐसा तो है नहीं कि नवीनता के नाम हम कोई बिलकुल नई विधा लेकर यहाँ अवतरित हों, या फिर हम बिलकुल कोई नया विषय लेकर पाठक के सामने रख दें, यह तो काफी हद तक हर व्यक्ति की पहुँच से बाहर है, लेकिन हम जिस भी विषय को लेकर आगे बढ़ रहे हैं वहां हमारी मौलिक सोच प्रकट होनी चाहिए. अगर हम ऐसा करने में सक्षम हो पाते हैं तो पाठक खुद व खुद हमारी तरफ आकृष्ट होता चला आयेगा.
हिंदी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में अभी हमें नीश ब्लॉगिंग की तरफ बढना बाकी है. ऐसा नहीं है कि यहाँ ऐसे ब्लॉग
नहीं हैं जिन्हें नीश ब्लॉग कहा जा सके, यहाँ ऐसे ब्लॉगस तो हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है. आदरणीय ललित कुमार जी ने ब्लॉग के विषय में कुछ मानकों को निर्धारित करते हुए बेहतर ब्लॉगस को तलाशने का बीड़ा उठाया है. इनके अनुभव और निष्कर्ष ने कुछ बेहतरीन हिन्दी ब्लॉगस को हमारे सामने रखा भी है. हालाँकि कोई ब्लॉग किस श्रेणी का है यह बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन अगर हम किसी विशेष भाव क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान हासिल करना चाहते हैं तो उसके लिए हमें उसी तरह से अपने को प्रस्तुत करना होगा. हिंदी ब्लॉगिंग में हम ऐसे कई ब्लॉगस को देख सकते हैं. जैसे शब्दों का सफ़र, हुंकार, समाजवादी जन परिषद्, सिंहावलोकन, मीडिया डॉक्टर, समय के साए में, जनपक्ष, मुसाफिर हूँ यारो, साइंटिफिक वर्ल्ड, स्वाद का सफ़र, पढ़ते-पढ़ते, रेडियोवाणी, हिन्दी ब्लॉग टिप्स आदि. ऐसे ब्लॉगस की सूची मेरे पास बहुत लम्बी है, लेकिन यहाँ सिर्फ इन ब्लॉगस के नाम सिर्फ उदाहरण स्वरूप पेश कर रहा हूँ. हम सहज में ही किसी विषय आधारित सामग्री की खोज के लिए इन ब्लॉगस का सहारा ले सकते हैं. लेकिन अगर यहाँ भी किसी प्रकार के तथ्य की पुष्टि में अगर कोई कमी होती है तो इसका दूसरा असर भी हम पर हो सकता है.
ब्लॉग के माध्यम से हम अपने नवीन दृष्टिकोण को सामने लाने का बेहतर प्रयास कर सकते हैं. कुछ लोगों का यह मत भी है कि ब्लॉग पर गंभीर लेखन का कोई खास मतलब नहीं होता. यहाँ तो सिर्फ टिप्पणी और पोस्ट का ही खेल है, और इसके लिए आपको अपनी पोस्ट को टिप्पणी के अनुकूल बनाना है, और टिप्पणियों के इस चक्कर में कुछ महानुभाव अपने लेखन का स्तर तक गिरा देते हैं. लेकिन जहाँ तक मैंने महसूस किया है कि ब्लॉगिंग के इन षटकर्मों में टिप्पणी एक पड़ाव है. अगर हमें सार्थक ब्लॉगिंग करनी है तो फिर हमें टिप्पणी के मोह से बचने की कोशिश करनी चाहिए. हाँ टिप्पणियाँ हमें नवीन जानकारी जानकारी भी दे सकती हैं, और प्रोत्साहन तो हमें मिलता ही हैं. लेकिन अगर हर आलेख पर हम बहुत सुन्दर, वाह और आह के साथ बहुत खूब जैसे शब्दों को ही टिप्पणी के रूप में पाएं तो हमारा टिप्पणी के प्रति मोह कुछ दिन में ही कम हो जाएगा. हम टिप्पणी की चाहत रखें, लेकिन लेखन को सतही बनाने की कीमत पर नहीं.
जहाँ तक ब्लॉग पर गंभीर और शोधपूर्ण लेखन का सवाल है तो हमें इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि श्रेष्ठ लेखन ही हमें एक नयी पहचान दिला सकता है. इस सन्दर्भ में हमें शब्दों का सफ़र ब्लॉग को एक मानक ब्लॉग के रूप में लेना चाहिए. हिन्दी में रचे गए इस ब्लॉग ने शब्दों का जो ताना बाना हमारे सामने प्रस्तुत किया है वह हमें शब्द के विषय में गहन जानकारियाँ देने में बहुत मदद करता है. शब्दों का इतिहास, भूगोल, विभिन्न भाषाओँ में उनका शब्द रूप और उनका अर्थ सब कुछ हमें एक क्रम में यहाँ मिलता है. अपने अनुभव के आधार पर कहूँ तो इस ब्लॉग ने शब्दों के प्रति मुझमें एक दीवानगी पैदा की है, और शब्दों को समझने में मेरी दृष्टि को व्यापक रूप से प्रभावित किया है.
यह जरुरी नहीं कि हम सिर्फ गद्य में ही रचनाएँ करके आगे बढ़ सकते हैं. पद्य और गद्य जिसमें भी हम अपने को सहज रूप में प्रस्तुत कर सकें उसके माध्यम से हम अपने भावों को अभिव्यक्त कर सकते हैं. लेकिन चाहे हम सृजनात्मक साहित्य रच रहे हैं या वैचारिक अभिव्यक्ति कर रहे हैं, दोनों में हमें अभिव्यक्ति और तथ्यों के प्रति सजग रहना होगा. अगर हम नयी दृष्टि और समयानुकूल परिप्रेक्ष्य में अपने सृजन को प्रस्तुत कर पाते हैं तो यह हमारे सृजन की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. ब्लॉग पर सृजन के विषय में समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि यहाँ सृजन की अनंत संभावनाएं हैं और यह तकनीक और अभिव्यक्ति का ऐसा ताना-बाना है जिसके माध्यम से हम समाज की तस्वीर को बदलने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इसके साथ ही हिन्दी जैसी भाषा को हम तकनीक की भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

20 अप्रैल 2014

सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...5

7 टिप्‍पणियां:
ब्लॉग को विधा नहीं बल्कि माध्यम कहना ज्यादा प्रासंगिक लगता है. कुछ लोग ब्लॉग को विधा का नाम भी देते हैं लेकिन यह प्रासंगिक नहीं. गतांक से आगे......ब्लॉग हमारे लिए अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है, इसे अभिव्यक्ति की नयी खोज भी कहा जाता रहा है. कुछ ब्लॉगर साथी इसे अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भी कहते हैं. ब्लॉग के विषय में चाहे जितने भी मत और धारणाएं प्रचलन में हों, लेकिन यह सच है कि ब्लॉग जैसे माध्यम से अभिव्यक्ति को एक नया आयाम मिला है, सृजन को नयी दिशा और चिंतन को एक नयी राह मिली है. ऐसे में ब्लॉग की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. क्योँकि ब्लॉग ने सृजन के परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव डाला है और उसे कई आयामों से अभिव्यक्त करने में सहायता की है. 

ब्लॉग ने एक आम व्यक्ति के हाथ में सृजन और चिंतन की चाबी दे दी है, जिससे सृजन का दायरा बढ़ा है. ब्लॉग के माध्यम से किसी भी व्यवसाय और समुदाय से जुडा व्यक्ति सृजन की दुनिया में प्रवृत है. यहाँ सृजन के लिए किसी व्यक्ति का साहित्यिक या लेखकीय आधार होना जरुरी नहीं. ब्लॉग हमसे एक ही मांग करता है कि हम सृजन के लिए मानसिक रूप से तैयार हों, और हममें वैचारिक दृढ़ता होनी चाहिए. सृजन के लिए अगर हम मानसिक रूप से तैयार हैं तो हम इस आभासी दुनिया के कई झमेलों से आसानी से बच सकते हैं और अगर हममें वैचारिक दृढ़ता है तो हम किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हो सकते हैं. क्योँकि अगर हम ब्लॉग के माध्यम से कुछ भी अभिव्यक्त करने के लिए स्वतन्त्र हैं तो, किसी पाठक को भी यह अधिकार है कि वह अपनी बेबाक राय हमारे द्वारा अभिव्यक्त किये गए विचार पर व्यक्त कर सकता है. ऐसी स्थिति में कई बार तनाव पैदा होता है, उलझन भरा वातावरण बनता है और सब अपने-अपने मत की पुष्टि करने का प्रयास करते हैं. यह होना भी चाहिए इससे सृजन को एक नया आधार मिल सकता है. बहस से निकले हुए तथ्य हमारी जानकारियों को बढ़ा सकते हैं और इस दिशा में हमारे चिंतन को नया आधार प्रदान कर सकते हैं. 

हालाँकि यह माना जाता रहा है कि ब्लॉग व्यक्तिगत भावनाओं और किसी सामयिक विषय पर त्वरित
अभिव्यक्ति का माध्यम भर है. लेकिन ऐसा किसी भी स्थिति में नहीं है. क्योँकि ब्लॉग की दुनिया को जब हम देखते हैं तो पाते है कि रचनात्मकता और चिन्तन का कोई भी विषय ऐसा नहीं है जिस पर ब्लॉग के माध्यम से हमें जानकारी न मिलती हो. सृजन का कोई आयाम ऐसा नहीं है जिसे ब्लॉग के माध्यम से नयी चेतना न मिली हो. हाँ यह बात अलग है कि व्यक्तिगत भावनाओं और सामयिक विषयों पर त्वरित प्रतिक्रया वाले ब्लॉग और ब्लॉगरों की संख्या अधिक हो सकती है. लेकिन उस स्थिति में हम ऐसा नहीं कह सकते कि किसी और विषय पर ब्लॉग के माध्यम से कुछ भी अभिव्यक्त नहीं किया जा रहा है. जिस प्रकार भूमंडल के एक स्तर पर सभी प्रकार की सांसारिक सीमायें समाप्त हो जाती हैं. वैसे ही यहाँ पर भी किसी तरह की कोई सीमा नहीं है, आपकी भाषा कोई भी हो, आपका देश कोई भी, आप किसी भी दर्शन से प्रभावित हों, आपके जीवन के मूल्य चाहे जो भी हों. आप उन सबको साथ रखते हुए भी एक स्वतन्त्र, मौलिक और  वैचारिक सोच के साथ ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं. ब्लॉग ने दुनिया को वैचारिक और भौतिक स्तर पर सीमाहीन करने का एक सुअवसर हमें दिया है.   ब्लॉग की इस दुनिया ने इस मिथक को तकनीक के माध्यम से तोड़ने का पूरा अवसर हमें प्रदान किया हुआ है कि हमारी मानसिक और शरीरी सीमाएं हो सकती हैं, लेकिन विचार और भाव की अभिव्यक्ति को दुनिया के किसी भी शख्स तक बिना किसी बाधा के स्थायी रूप से यथावत (जैसा हम चाहते हैं) पहुंचाया जा सकता है.   

ब्लॉग के माध्यम से हम किसी भी विषय पर कुछ भी लिखने के लिए स्वतन्त्र है, अपने विचार और भाव अभिव्यक्त करने का पूरा अधिकार हमें ब्लॉग के माध्यम से मिला है. ब्लॉग हर दृष्टि से सीमा हीन है, ऐसा तो हम नहीं कह सकते, लेकिन कुछ बिंदु ऐसे हैं जहाँ ब्लॉग हमें असीमित अधिकार अवश्य देता है. लेकिन हम इन असीमित अधिकारों का प्रयोग हम कैसे करते हैं यह हम पर निर्भर करता है. सतही तौर पर देखने से यह लगता है कि ब्लॉग के माध्यम से हम एक काल्पनिक दुनिया में प्रवेश करते हैं, लेकिन यह दुनिया जितनी काल्पनिक है उतनी ही यथार्थ के धरातल पर अवस्थित है. लेकिन कुछ लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते. वह कभी किसी का विरोध करते हैं तो कभी किसी की प्रशंसा के कसीदे गढ़ते हैं. प्रशंसा और विरोध कोई बुरी बात नहीं है. अगर कोई तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके अपने आपको प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है तो हमें उसका विरोध कर सकते हैं, लेकिन हमें यह विरोध या असहमति तथ्य और तर्क के आधार पर करनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत समबन्धों के आधार पर. लेकिन ज्यादातर ऐसा देखने में आया है कि यहाँ प्रशंसा और विरोध यहाँ व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर किये जाते हैं. जो कई बार अविश्वसनीय माहौल को अख्तियार करते हैं और किसी हद तक यह दोनों (विरोध और प्रशंसा) एक तरह से वैचारिक प्रदुषण पैदा करते हैं, और ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है. क्योँकि ब्लॉग को हम कोई कमतर माध्यम न समझें, अगर ब्लॉग के विषय में हमारी समझ ऐसी है तो हमें अपने मंतव्य पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ......!!!  शेषअगले अंक में.......!!!!

17 अप्रैल 2014

सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...4

7 टिप्‍पणियां:
गतांक से आगे.......ब्लॉग एक ऐसा शब्द जो web-log के मेल से बना है. जो अमरीका में सन 1997 के दौरान इन्टरनेट पर प्रचलित हुआ. तब से लेकर आज तक यह शब्द मात्र शब्द ही बनकर नहीं रहा है, बल्कि ब्लॉग जैसे माध्यम से अनेक व्यक्तियों ने सृजन के क्षेत्र में कई नए आयाम स्थापित किये हैं. ब्लॉग की अपनी अवधारणा है और इससे जुड़े लोगों ने इसे प्रचलित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ब्लॉग तकनीक और सृजन का ऐसा ताना-बाना है जिसने दुनिया में वैचारिक क्रांति का सूत्रपात किया. प्रारंभ में बेशक ब्लॉग मात्र अपने मन की भावनाओं या निजी अभिव्यक्तियों के साधन रहे हों. लेकिन कालान्तर में इस दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आया है. अब इसे अभिव्यक्ति की नयी क्रांति के नाम से भी अभिहित किया जा रहा है. हो भी क्योँ न, क्योँकि अब साइबर स्पेस में आप कहीं भी कुछ भी लिखने के लिए स्वतन्त्र हैं. आप पर किसी तरह का कोई दबाब नहीं है. न ही कोई झंझट. आपके पास बस कुछ मुलभुत सुविधाएं हों तो आप कहीं पर भी ब्लॉगिंग कर सकते हैं, और अपने विचारों को दुनिया के किसी भी व्यक्ति तक पहुंचा सकते हैं. आपके पास सृजन का एक अनंत आकाश हैं, और अनेक प्रारूप भी. आप अपने विचार और भाव चाहें तो लिखित रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं, या फिर दृश्य और श्रव्य माध्यम का सहारा ले सकते हैं. इतना ही नहीं आप चित्र, कार्टून  आदि के माध्यम से भी अपने भावों और विचारों से दुनिया को अवगत करवा सकते हैं.

पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हुई उथल-पुथल में ब्लॉग जैसे माध्यम की महती भूमिका है. क्षेत्र कोई भी हो, देश कोई भी हो, भाषा कोई भी हो ब्लॉग ने हमें इन सब बन्धनों से आजाद किया है. यूनीकोड जैसी भाषाई तकनीक ने हर व्यक्ति की अँगुलियों को की-बोर्ड पर चलाने के लिए विवश किया है. अनुवाद के विभिन्न तकनीकी साधनों ने हमारी भाषाई समझ को बढाने में कारगर भूमिका अदा की हैं. इस माध्यम से हम विश्व की विभिन्न भाषाओँ में रचे जा रहे साहित्य और उन भाषाओँ में अभिव्यक्त किये जा रहे विचारों से अवगत हो सकते हैं. विश्व के किसी भी देश की संस्कृति, इतिहास, साहित्य, संगीत आदि की जानकारी हमें ब्लॉग के माध्यम से सहज ही मिल जाती हैं. ब्लॉग के माध्यम से हम सृजन की एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करते हैं, जहाँ हम चिंता मुक्त होकर सृजन कर सकते हैं, और जहाँ तक पठनीयता का प्रश्न है वहां हम किसी भी हद तक कुछ भी पा सकते हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ब्लॉग की दुनिया एक काल्पनिक दुनिया की तरह है. लेकिन यहाँ पर जो कुछ भी घटित हो रहा है वह सब कुछ यथार्थ में घटित हो रहा है. हम एक अनंत सागर में गोते लगा रहे हैं, बस यह हम पर निर्भर करता है कि हम कितनी गहराई में उतर पाते हैं और जितना गहरे हम उतरेंगे उतना ही लाभ हमें होगा. 

सृजन के सन्दर्भ में ब्लॉग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहाँ पाठक और
रचनाकार के बीच में कोई दीवार नहीं है. पाठक अपनी प्रतिक्रिया से रचनाकार (ब्लॉगर) को अवगत करवा सकता है. यहाँ सिर्फ कोई लेख या विचार पसंद और नापसंद के  आधार नहीं परखा जाता, बल्कि उस लेख के माध्यम से अभिव्यक्त किये गए विचार के आधार पर विचार किया जाता है. पाठक के लिए विचार और जानकारी महत्वपूर्ण है. इससे आगे उसकी समझ विश्लेषण और तथ्यों को लेकर है. जब कोई पाठक अपने मनमाफिक तथ्यपूर्ण और गहन जानकारी किसी ब्लॉग पर पाता है तो यक़ीनन वह उस ब्लॉग को पढने के लिए बेताब रहता है. पाठक और रचनाकार (ब्लॉगर) के इस संवाद के कारण रचनाकार (ब्लॉगर) को बहुत संभल कर चलने की जरुरत होती है. क्योँकि रचनाकार (ब्लॉगर) को इस बात का अहसास होना चाहिए कि उसके द्वारा अभिव्यक्त किये गए विचारों एक सीमा हो सकती है. लेकिन पाठकों की नहीं. उसके पाठक वर्ग में कोई दीवार नहीं है. स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, वृद्ध-जवान, हिन्दू-मुस्लिम हर कोई उसके विचारों को पढ़ सकता है, कभी भी कहीं भी. ऐसी स्थिति में अगर पाठक प्रशंसा कर रहा है तो वह आलोचना भी कर सकता है. आलोचना और प्रशंसा के बीच पाठक और रचनाकार के लिए विभिन्न पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी महत्वपूर्ण होती है. कई बार यह प्रतिक्रियाएं किसी वैचारिक लेख को, कविता को, कहानी को, निबंध को विमर्श का हिस्सा बना देती है और ऐसे में पाठकों और पाठकों के बीच विमर्श चलता है और कई बार रचनाकार (ब्लॉगर) और पाठक के बीच में यह बहस चलती रहती है.  

इस स्थिति में किसी लेख से सम्बन्धित ऐसे तथ्य उभर कर सामने आते हैं जिनके विषय में सभी अवगत नहीं होते. ब्लॉग की यह एक अन्यतम विशेषता है. क्योँकि जब हम कोई पुस्तक पढ़ रहे होते हैं तो हमारे जहन में कुछ विचार उभरते हैं, लकिन हम उन विचारों से लेखक तक को अवगत नहीं करवा सकते, लेकिन ब्लॉग की दुनिया में ऐसा नहीं है. ब्लॉगर द्वारा अपने ब्लॉग पर लिखी गयी किसी भी पोस्ट पर आप अपनी प्रतिक्रिया से ब्लॉगर को तुरंत अवगत करवा सकते हैं. सृजन के इतिहास में यह नया उपक्रम है. यक़ीनन इस उपक्रम ने सृजन की प्राथमिकताओं में भी परिवर्तन किया है, लेकिन यह परिवर्तन वैचारिक है. सैद्धांतिक रूप से सृजन की प्राथमिकताएं वैसी ही हैं जैसे अन्य माध्यमों के रचनाकारों की हैं. क्योँकि हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि ब्लॉग मात्र एक माध्यम है अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्त करने का, इससे ज्यादा कुछ नहीं. हम कागज पर लिखने की बजाय इन्टरनेट के माध्यम से लिखें. बस माध्यम बदला है, विचार, भाव और विधाएं तो वही हैं, काफी हद तक शैली भी, ऐसे में ब्लॉग को विधा नहीं बल्कि माध्यम कहना ज्यादा प्रासंगिक लगता है. कुछ लोग ब्लॉग को विधा का नाम भी देते हैं लेकिन यह प्रासंगिक नहीं. शेष अगले अंक में.......!!!!   

13 अप्रैल 2014

सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...3

5 टिप्‍पणियां:
गतांक से आगे......!!! मानव की जिजीविषा और प्रकृति के रहस्यों को सुलझाने की उत्कट इच्छा ने उसे सृजन की तरफ प्रवृत किया, इस सबके लिए उसे जो भी आयाम सहज लगा उसके माध्यम से उसने प्रकृति के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश की और आज तक वह इस दिशा में निरंतर प्रयासरत है. जितना कुछ भी आज तक मनुष्य ने अपनी जिज्ञासा और अनवरत संघर्ष के कारण हासिल किया है, उसका उपयोग उसने मानवता के कल्याण के लिए करने का भी प्रयास किया है. मनुष्य की बहुत सी उपलब्धियां व्यक्तिगत स्तर पर किये गए प्रयासों का परिणाम हैं, लेकिन जब भी उसे लगा कि इन व्यक्तिगत उपलब्धियों के माध्यम से मानवता का भला हो सकता है, तो उसने अपनी उन उपलब्धियों को मानवता के लिए समर्पित करके ख़ुशी की अनुभूति हासिल की है. क्षेत्र चाहे कोई भी हो साहित्य, तकनीक, कला, संगीत, चिकित्सा, योग, तन्त्र-मन्त्र या अध्यात्मिक उपलब्धियां और सिद्धियाँ. सबका प्रयोग उसने मानवता के कल्याण और मानव जीवन को सुखी और सुगम बनाने के लिए किया है.  

ऐसे में यह सहज ही सोचा जा सकता है कि सृजन के मूल में मानवीय हित ज्यादा रहे हैं. जिन्होंने भी सृजन की दुनिया में कदम रखा है, उन्होंने किसी देश विशेष, जाति विशेष या वर्ग विशेष के लिए सृजन नहीं किया है, उन्होंने तो पूरी मानवता की भलाई के लिए अपना ज्ञान और अपने चिन्तन की उपलब्धियों को समर्पित किया है. अगर हम व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो ऐसे भी सृजक हुए हैं जिन्होंने दुनिया के कुछ धूर्त लोगों द्वारा मनुष्य को बाँटने के लिए बनाई गई  विभिन्न तरह की व्यवस्थाओं और रीतियों को मानने से ही इनकार कर दिया है. उनका एक ही मंतव्य है कि सब कुछ इस ईश्वर से पैदा हुआ है, इसलिए व्यावहारिक रूप से हमें किसी भी जीव से किसी भी तरह का भेदभाव करने की कोई आवशयकता नहीं है. लेकिन अगर हम किसी भी जीव से किसी भी स्तर पर भेदभाव करते हैं तो हम मानवता के सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं. हमें अपने चिंतन के बल पर वहां से आगे बढ़ने की जरुरत है. अगर हम बिना किसी तर्क के, निराधार किसी भी बात को स्वीकार करते हैं तो निश्चित रूप से हमें यह स्वीकारना होगा कि हम अभी भी रुढियों और भ्रामक परम्पराओं के दायरे से बाहर नहीं आये हैं, और जब तक इस दायरे को नहीं तोड़ा जाता तब तक सच्चे मानवीय धर्म की परिकल्पना हम नहीं कर सकते, और सृजन का जो मूल मकसद है उसे प्राप्त नहीं कर सकते. 

पूरी सृष्टि के मानवीय इतिहास पर जब हम नजर डालते हैं तो यह पाते हैं कि मानवता का आज तक का
ज्यादातर इतिहास आपसी संघर्षों का इतिहास रहा है. एक ऐसा इतिहास जिसमें लूट-खसूट, मार-काट, यातनाएं, गुलामी न जाने ऐसे कई प्रवृतियाँ रही हैं जिन्होंने मानव के जीवन को दूभर बनाया है. दुनिया का इतिहास हमें यह भी बताता है कि  कुछ ताकतवर व्यक्ति अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कमजोर वर्ग के लोगों को अपना शिकार बनाते रहे हैं. कभी सामाजिक व्यवस्था के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी कानून के नाम पर. जब भी उन्हें जो अपने हितों के अनुकूल लगा उसका प्रयोग करके उन्होंने समाज के कुछ वर्गों को अपने प्रयोग का साधन बनाया है, और यह स्थिति तब की ही नहीं थी, आज भी हमें यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे दृश्य देखने को मिल जाते हैं. आज बेशक हम अपने आप को आधुनिक और उत्तर-आधुनिक दौर के व्यक्ति कह रहे हों, लेकिन आज भी हम वहीँ खड़े हैं जहाँ हम हजारों वर्ष पहले खड़े थे. आज भी समाज के बहुत बड़े तबके को कहाँ सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. बिना तर्क और बिना आधार का भेदभाव आज भी कहाँ समाप्त हुआ है? आज भी हमारी नजर में कहाँ व्यक्ति समान धरातल पर खडा है? कहाँ आज मानवीय पहलूओं के आधार पर इन्सान की कदर की जाती है? ऐसे बहुत से पहलू हैं जिन पर आज भी यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि दुनिया में इतना कुछ घटित होने के बाबजूद भी आज मनुष्य का चिंतन कोई खास प्रगति नहीं कर पाया है. 

जिन व्यक्तियों ने दुनिया में अपने सृजन के दम पर मानवीय पहलूओं को उजागर कर उन्हें स्थापित करने के लिए भरसक प्रयास किया है, उनके प्रयासों को दुनिया ने हमेशा नजरअंदाज किया है. लेकिन जहाँ भी अपने स्वार्थों की पूर्ति होती हुई उन्हें नजर आई वहां उन्होंने उनका समर्थन भी किया है. इसलिए सृजन का सन्दर्भ भी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलूओं से भरा रहा है. लेकिन फिर भी हमें सकारात्मक दृष्टि अपनाते हुए आगे बढ़ने के जरुरत है. अगर हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो एक निश्चित सीमा तक हम कुछ नकारात्मक प्रवृति के लोगों को रोकने में सक्षम हो सकते हैं. लेकन यह तभी हो पायेगा जब हम पूरे परिदृश्य का आकलन करते हुए, भविष्य की सोच रखते हुए मानवता के लिए अपने प्राणों तक का उत्सर्ग करने का साहस रखते हों, और संभवतः यही सृजन की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता होगी. लेकिन इस बात का भी अहसास है कि ऐसा सृजक हजारों लाखों में एक होता है, इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि अँधेरा चाहे जितना भी गहरा और पुराना क्योँ न हो, अनवरत जलने वाला एक छोटा सा दीया भी अपने प्रकाश से उसे समाप्त करने की क्षमता रखता है. इसलिए सृजन के क्षेत्र में जिन्होंने भी विरोधों का सामना किया उन्होंने अपने मनोबल को कभी कम नहीं होने दिया, वह बढ़ते रहे और कुछ सकारात्मक प्रवृति के लोग उनसे जुड़ते रहे और मानव के जीवन को सुगम बनाने के लिए जितना प्रयास कर सकते थे, वह सब कुछ करते रहे.

सृजन और चिंतन के साथ-साथ मानव की अभिव्यक्ति के साधन भी बदलते रहे हैं. विचार और चिंतन पर परिवेश का भी प्रभाव रहा है. ऐसा भी हमें देखने को मिलता है कि कभी चिंतन ने परिवेश को प्रभावित किया है तो कभी परिवेश ने चिंतन की दिशा को बदला है. इसलिए तो यह कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है. लेकिन कभी-कभी समाज भी साहित्य के लिए रोचक और प्रेरक स्थितियां पैदा करता है. दोनों एक दूसरे से गहरा सम्बन्ध रखते हैं. समाज के विकास के साथ-साथ साहित्य की संवेदना का भी विकास होता है. साहित्य के सृजन के लिए बहुत कुछ समाज भी जिम्मेवार होता है. साहित्य में अभिव्यक्त होने वाले ज्यादातर पहलू समाज से ही लिए गए होते हैं. वर्तमान दौर सूचना तकनीक का दौर है. समाज बदल रहा है, मानवीय मूल्य परिवर्तित हो रहे हैं और ऐसे में सूचना-तकनीक का दखल मानव जीवन को बहुत व्यापक स्तर पर बदल रहा है. जहाँ सब कुछ बदल रहा है वहां अभिव्यक्ति के साधन भी बदले हैं और अभिव्यक्ति के तरीके भी. निश्चित रूप से अगर बदलाब आया है तो फिर मानवीय संवेदनाएं भी बदली हैं और उन्हें आज एक सशक्त माध्यम से अभिव्यक्त किया जा रहा है. जिसे हम ब्लॉग के नाम से अभिहित कर रहे हैं.....!!! शेष अगले अंक में.....!!!!