गत अंक से आगे....कम्प्यूटर-स्मार्टफोन-इन्टरनेट
और विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने आज के दौर में पूरे विश्व के लोगों को एक-दूसरे
से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. सोशल नेटवर्किंग साइट्स का जहाँ तक सवाल
है तो इन साइट्स ने पूरी दुनिया के लोगों को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए एक
वैश्विक मंच प्रदान किया है. यह मंच किसी व्यक्ति की निजी अभिव्यक्ति से लेकर
सामाजिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के लिए स्थान उपलब्ध करवाते हैं, जिसकी पहुँच पूरे
विश्व में है. इस मंच की उपयोगिता इस बात से भी सिद्ध होती है कि इसका प्रयोग व्यक्ति
विश्व के किसी भी कोने में बैठकर कर सकते हैं. स्मार्टफोन और इन्टरनेट के संगम ने
तो सूचना-तकनीक की पूरी दुनिया को व्यक्ति की मुट्ठी तक सीमित कर दिया है. ऐसे दौर
में जब हम अपना हर पल सूचनाओं के बीच में बिताते हैं तो वहां पर हम हमेशा ही
सूचनाओं के प्रवाह में अपना विवेक भी खो सकते हैं और किसी अफवाह का शिकार भी हो
सकते हैं.
सोशल
नेटवर्किंग के जितने भी ठिकाने अंतर्जाल पर उपलब्ध हैं, उन ठिकानों के माध्यम से
सब कुछ संचालित किया जा रहा है. भौतिक दुनिया का कोई भी पहलू ऐसा नहीं है जिसकी
अभिव्यक्ति इस आभासी कही जाने वाली दुनिया में न होती हो. यहाँ राजनीति भी है,
प्रेम भी है, जाति भी है, धर्म भी है, एक तरह से यहाँ वह सब कुछ है, जिससे हमारा
वास्ता है. आज के दौर में तो व्यक्ति की दिनचर्या से लेकर विश्व की हर समस्या और
सुविधा का हर पहलू इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से अभिव्यक्त किया जा रहा
है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति के सामने सूचनाओं और विषयों का अम्बार लगा हुआ है.
उसका प्रत्येक क्लिक उसे एक नयी सूचना से अवगत करवा रहा है और व्यक्ति उस सूचना को
पाकर खुद के प्रगतिशील होने का भ्रम पाल रहा है. कभी वह उस सूचना पर टिप्पणी कर रहा
है तो कभी वह उस सूचना को पसन्द करके आगे बढ़ रहा है. कई बार वह ऐसी सूचनाओं में
उलझ भी रहा है, जैसे कोई दुर्घटना आदि और कई बार वह इन सूचनाओं के स्रोत खोजने में
अपना वक़्त जाया कर है. सूचनाओं का यह प्रवाह व्यक्ति को एक ऐसी दुनिया में ले जा
रहा है, जहाँ से वह चाह कर भी नहीं निकल सकता. उसे इन सबका नशा सा हो गया है. वह
अपने आसपास के वातावरण से बेखबर है, लेकिन उसके पास दुनिया भर की जानकारी है. यह
भी एक अजीब विरोधाभास है. जिस स्थान पर व्यक्ति रह रहा है वहां शायद वह किसी से
बात करने के लिए उत्सक हो लेकिन इस आभासी दुनिया में वह हर किसी से ‘रिश्ता’ कायम
करने के विषय में सोचता है.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDcPSlRcPjmqOvek4o_obC-RjnPjt4GEvW_-7Me_UB91NfDwkboN5E_pMbb6q2LGk79rL-RSDfy88tSMiIdXA6anTaM2Qff_wxp8G2HnC_QYIJuId5hGqkWAX62kxkKNcqPK7oh8agCHY/s320/SOCIAL+MEDIA+KEWAL+RAM.jpg)
सोशल मीडिया 21वीं शताब्दी की महत्वपूर्ण घटना है. अभिव्यक्ति की
आजादी के क्षेत्र में इसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. हालाँकि इसका कोई
आचारशास्त्र नहीं है. जिसके मन में जो आये वह उसे अभिव्यक्त कर सकता है. लेकिन
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस माध्यम की पहुँच बहुत विस्तृत दायरे में फैली
हुई है, हमारी कही हुई बात को कौन सा पाठक किस सन्दर्भ में
समझ रहा है इसके विषय में हम अवगत नहीं है. इसलिए इस माध्यम पर हम जो कुछ भी कहें
उसे साफ़ और स्पष्ट रूप से कहें, ताकि पाठक के मन में किसी
तरह का कोई भ्रम पैदा न हो. आपके द्वारा कही गयी बात उसके लिए सार्थक सिद्ध हो. हम
समर्थन और विरोध करते समय भी विवेक का सहारा लें. किसी जानकारी को पढ़ते समय और उसे
आगे बढ़ाते समय तथ्य-तर्क और सन्दर्भ को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरुर कोशिश
करें. अगर हम ऐसा कर पाने में सफल हो जाते हैं तो यक़ीनन सोशल मीडिया हमारे लिए
बेहतर माध्यम है. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो फिर हमें थोडा सा रूककर विचार करने
की जरुरत है.
हमें सोशल मीडिया का प्रयोग करते समय में जितना कुछ कहने के लिए
सतर्क रहने की जरुरत है, उतना ही
हमें इस पर प्रकाशित होने वाली सूचनाओं को ग्रहण करने के सन्दर्भ में सजग रहने की
आवश्यकता है. सोशल मीडिया एक एक तरफ तो उपयोगकर्त्ता की जानकारियों की वृद्धि में
सहायक सिद्ध हो सकता है, वहीँ दूसरी और कोई ऐसी जानकारी भी
उसे पढ़ने को मिल सकती है, जिसका कोई बजूद ही न हो. लेकिन ऐसी
जानकारी किसी न किसी को प्रभावित कर रही है. इसलिए सोशल मीडिया का प्रयोग करते समय
विवेक से काम लेने की जरुरत है. विवेक की यह जरुरत दोनों स्थितियों में है,
जब हम कुछ अभिव्यक्त कर रहे हैं, तब भी और जब
हम कुछ पढ़ रहे हैं तब भी. क्योँकि दोनों स्थितियों में जानकारी का प्रभाव किसी न
किसी पर पड़ रहा है. इसलिए सोशल मीडिया का प्रयोग करते समय हमें बहुत सतर्क रहने की
जरुरत है. तभी हम अभिव्यक्ति के इस माध्यम का सही मायने में लाभ उठा पायेंगे.