भरी महफ़िल में , लोगों ने मुझसे पूछा
इश्क का जाम पीता हूँ मैं….
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना.
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
आज अपने कॉलेज के दिनों की डायरी देख रहा था तो यह कविता किसी एक पन्ने पर मिल गयी सोचा इसे आप सबके साथ साँझा करूँ ......!
क्योँ नहीं पीते हो तुम ???
बिना पीने के भला , कैसे जीते हो तुम !!!
फिर दबी आवाज में ....
क्या तुमने देखा नहीं है मयखाना ???
या तुम नहीं चाहते पीना और पिलाना ?
बिना पीने के किसको क्या आनंद आयेगा !!
वही तो डूबेगा इसमें जो पीना सीख जायेगा ...!
बात उनकी सुनकर , कुछ सोच समझकर
मैंने दिया जबाब
हाथ जोड़ कर कहा ...मेरी बात सुनो जनाब
पीने -पीने में भी हैं बहुत अंतर
तुम पीते मयखाने में , मैं पीता निरंतर
बोले वो मेरी बात सुनकर
आज फिर तुमने झूठ कह दिया हंसकर
मैंने समझाया उन्हें बड़ी शराफत से
बात तुम सुनना मेरी नजाकत से
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
उन्होंने फिर कहा
मजा आ गया अहा ...!
मैंने फिर उन्हें समझाया
कुछ उनकी समझ में आया
बिना पीने के भला , कैसे जीते हो तुम !!!
फिर दबी आवाज में ....
क्या तुमने देखा नहीं है मयखाना ???
या तुम नहीं चाहते पीना और पिलाना ?
बिना पीने के किसको क्या आनंद आयेगा !!
वही तो डूबेगा इसमें जो पीना सीख जायेगा ...!
बात उनकी सुनकर , कुछ सोच समझकर
मैंने दिया जबाब
हाथ जोड़ कर कहा ...मेरी बात सुनो जनाब
पीने -पीने में भी हैं बहुत अंतर
तुम पीते मयखाने में , मैं पीता निरंतर
बोले वो मेरी बात सुनकर
आज फिर तुमने झूठ कह दिया हंसकर
मैंने समझाया उन्हें बड़ी शराफत से
बात तुम सुनना मेरी नजाकत से
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
उन्होंने फिर कहा
मजा आ गया अहा ...!
मैंने फिर उन्हें समझाया
कुछ उनकी समझ में आया
इश्क का जाम पीता हूँ मैं….
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना.
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
आज अपने कॉलेज के दिनों की डायरी देख रहा था तो यह कविता किसी एक पन्ने पर मिल गयी सोचा इसे आप सबके साथ साँझा करूँ ......!