इधर 14 फरवरी को वेलेंटाइन
डे (प्यार का दिन) मनाया गया, और
मैं बेखबर होकर सोचता रहा अपनी मस्ती में इन पंक्तियों
को:-
एक उम्र भी कम है मोहब्बत के लिए
लोग कहाँ से वक़्त निकालते हैं, नफरत के लिए।
लोग कहाँ से वक़्त निकालते हैं, नफरत के लिए।
काश उस शायर ने यह लिखा
होता, एक दिन कम है मोहब्बत के लिए, तो हमारे किसी आशिक का वश चलता तो इसे दो दिन
या फिर जयादा मेहरवान होकर सात दिन और अगर और सफलता
मिलती तो वेलेंटाइन डे की जगह वेलेंटाइन पखवाड़ा मनाया
जाता। पर खैर एक दिन भी काफी है...प्यार करने के लिए तो एक
क्षण भी बहुत है, और यहाँ तो पूरा
एक दिन है, और इससे पहले भी कोई रोज डे, चोकलेट डे और भी बहुत से दिन मनाये जाते हैं।
कुल मिलाकार सिलसिला चल पड़ता है 7 या 8 फरवरी से और इसका चरम रूप हमें 14 फरवरी
को देखने को मिलता है।
पर यह आश्चर्यजनक है कि
उसके बाद न तो इस प्यार की बात होती है और ना कोई प्यार जताने वाला मिलता है। फिर
इन्तजार होता है अगली 14 फरवरी का और इसी तरह यह क्रम चल रहा है। मैंने सोचा क्या सच में प्यार को जाहिर किया जा सकता है। जिस संत ‘वेलेंटाइन’ के नाम से यह दिन मनाया जाता है उसका मंतव्य तो कुछ और था और हम क्या उस मंतव्य को पूरा कर रहे हैं? हमें
ज्यादा दूर जाने कि आवश्यकता नहीं है। हमारे देश में भी ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन को
प्यार (लौकिक) के लिए
समर्पित कर दिया जैसे, हीर-राँझा, लैला–मजनू,
सोहनी-महिवाल, कुंजू-चंचलो, सुन्नी-भुन्कू, रान्झू–फुल्मु, लिल्लो–चमन आदि -आदि। परजो समाज आज
प्रेम दिवस मना रहा है उस समाज ने इन प्यार करने वालों की कितनी कदर की, यह सब आप जानते हैं। आज जो कुछ भी हमारे सामने
घटित हो रहा है, क्या सच में प्यार करने वाले ऐसा कर
सकते हैं। मेरी समझ में नहीं...अगर
जिन्दगी में हम किसी एक इनसान से भी निस्वार्थ प्रेम कर पाए तो हमारी जिन्दगी की सफलता निश्चित हो जाती है...और यहाँ तो लोग प्रेम
करने का दावा करते हैं। यह बात भी सच है कि लौकिक प्रेम से ही आलौकिक प्रेम का मार्ग प्रशस्त होता है, और
हमें यह भी बताया जाता है कि इनसान से प्रेम करना ही भगवान से प्रेम करना है। लेकिन क्या सच में ऐसा होता है...नहीं।
अगर ऐसा होता तो आज दुनिया का यह स्वरूप यह नहीं होता।
आज जिस दिशा की तरफ हम बढ़ रहे हैं...क्या प्यार के कारण ऐसा हो सकता है...नहीं, दुनिया में सभी तरह की अधिकता तबाही मचा सकती है लेकिन प्यार की अधिकता तो सकूँ और चैन लाती है। पर यहाँ पर तो सब चीजें अस्त-व्यस्त हैं। सबको अपनी-अपनी पड़ी है। जो हमारी संकीर्णता की
परिचायक है। जरा गहराई से सोचें क्या प्रेम करने के लिए
एक दिन काफी है और बाकी के दिन सिर्फ नफरत के लिए तो जिन्दगी
का मंतव्य क्या रह जायेगा। मैं व्यक्तिगत रूप से
वेलेंटाइन डे का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन जिस तरह
से और जिन मंतव्यों के लिए इस दिन को मनाया जाता है उस प्रक्रिया पर मुझे अफ़सोस जरुर होता है:-
दिल है कि धडकने का सबब
भूल गया है
जीने का सलीका और अदब भूल गया है।
जीने का सलीका और अदब भूल गया है।
आज हम अपने चारों और के वातावरण को देखें। हमें क्या नजर आता है। आज दुनिया बारूद के ढेर पर खड़ी है और हम
निरंतर आविष्कार कर रहे है घातक हथियारों का, पर किसके
लिए सिर्फ इनसान के लिए...आज इनसान को इनसान से ज्यादा डर है
और उसका मंतव्य है किसी के हक को छीनकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना। जब ऐसे हालत हमारे सामने हैं तो हम किस दिशा की
तरफ जा रहे हैं, यह हमें सोचना होगा। कम से कम प्यार की
यह दिशा तो नहीं है, और यह
भी सच है कि:-
इस दुनिया में ऐ जहाँ
वालो, बहुत मुश्किल है इन्साफ करना
बहुत आसां है सजाएं देना, बहुत मुश्किल है माफ़ करना।
बहुत आसां है सजाएं देना, बहुत मुश्किल है माफ़ करना।
हम माफ़ करने के बारे में
कम सोचते हैं और सजाएँ देने के बारे में जयादा तो फिर हम क्या प्यार करते हैं और
किस से। कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आता।
आज वेलेंटाइन डे को मात्र
मनाने की जरुरत नहीं बल्कि इस दिन के मूल मंतव्य को समझने की आवश्यकता है, और अगर हम समझ जाते हैं तो निश्चित रूप से हमारे
लिए हर एक दिन वेलेंटाइन डे होता है। एक छोटी सी जिन्दगी
में हम जितना इस खुदा की बनाई सृष्टि से प्यार कर पाते हैं उतना ही हम जिन्दगी के
मकसद के करीब पहुँच पाते हैं। और जिन्दगी का मकसद है ‘LIVE AND LET LIVE’ । हम जब भी इन बातों के बारे में सोचेंगे इनकी महता खुद ब खुद हमारे सामने आ जाएगी, हम प्रेम के मूल मंतव्य को समझ जायेंगे और तब हमें सृष्टि प्रेममयी नजर आएगी, जिन्दगी जीने का
आनंद आ जायेगा। फिर हम सब रोज वेलेंटाइन डे मनाया करेंगे
उसके लिए हमें किसी खास दिन का इन्तजार नहीं करना पड़ेगा। काश!! हम केवल इतना कर
पाते कि अपने दिल और दिमाग को हर तरह के पूर्वाग्रहों
से मुक्त रखकर इस दुनिया में आनंद लेते हुए इस जीवन के सफ़र को तय कर पाते, और फिर हर दिन वेलेंटाइन डे मानते।
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