पुस्तकों
का जीवन में बहुत महत्व है । जब भी
किसी नए रचनाकार की पुस्तक से रुबरु होता हूँ तो यही
सोचकर उसे उठा लेता हूँ कि आज एक नए व्यक्ति से मुलाकत हो रही है । एक नए कलाकार
को जानने का अवसर प्राप्त हो रहा है । ऐसी स्थिति में मैं शब्दों के साधक से परिचय किये बिना नहीं रह सकता। किसी भी पुस्तक को
पढने से पहले चुनाव मेरा अपना होता है । कोई प्रसिद्धि , ख्याति
मुझे प्रभावित नहीं करती, बस अगर कोई चीज प्रभावित करती
है तो सिर्फ रचना में अभिव्यक्त किये गए विचार । वैसे भी यह तो कहा ही जाता है कि
पुस्तकें आपकी मित्र हैं , अपने छात्र जीवन में पुस्तक पर
एक कविता लिक्खी थी । आज वही आपसे सांझा कर रहा हूँ
.......!
श्वेत
धरा पर ,
श्याम वरण धारकर
आता है अक्षर , अर्थ की आत्मा पाकर
मुझे
बताता ,
राह सुझाता , देता सन्देश
आगे
बढ़ना मुझसे सीखो , यही उपदेश ।।
इस
बात को गाँठ में बांधकर
मैं
बढ़ता जाता निरंतर
नित
नए - नए करता प्रयास
पाता
जब कुछ नया , मन की बुझती प्यास ।।
अब
तो हो गयी यह मेरी प्रेमिका
मैं
पतंगा ,
यह मेरी दीपिका
इसे
देख ,
इस पर बार - बार
मैं
चक्कर लगाता सौ - हजार ।।
जब नहीं होती इससे मुलाक़ात
तब
हो जाती ,
बिन बादल बरसात
विरह
सताता इसका हर पल
सोचता
! क्या पता , मुलाकात होगी कल - ।।
मुझे
यह जहां भी आती नजर
लेना
चाहता हूँ इसकी खबर
मैं
कहता आई कहाँ से ? क्या प्रतिपाद्य
?
तब
यह कहती ,
तुम साधक , मैं साध्य ।।