22 दिसंबर 2012

किताब

8 टिप्‍पणियां:
पुस्तकों का जीवन में बहुत महत्व है । जब भी किसी नए रचनाकार की पुस्तक से रुबरु होता हूँ तो यही सोचकर उसे उठा लेता हूँ कि आज एक नए व्यक्ति से मुलाकत हो रही है । एक नए कलाकार को जानने का अवसर प्राप्त हो रहा है । ऐसी स्थिति में मैं शब्दों के साधक से परिचय किये बिना नहीं रह सकता। किसी भी पुस्तक को पढने से पहले चुनाव मेरा अपना होता है । कोई प्रसिद्धि , ख्याति मुझे प्रभावित नहीं करती, बस अगर कोई चीज प्रभावित करती है तो सिर्फ रचना में अभिव्यक्त किये गए विचार । वैसे भी यह तो कहा ही जाता है कि पुस्तकें आपकी मित्र हैं , अपने छात्र जीवन में पुस्तक पर एक कविता लिक्खी थी । आज वही आपसे सांझा कर रहा हूँ .......!

श्वेत धरा पर , श्याम वरण धारकर
आता है अक्षर , अर्थ की आत्मा पाकर
मुझे बताता , राह सुझाता , देता सन्देश
आगे बढ़ना मुझसे सीखो , यही उपदेश ।।

इस बात को गाँठ में बांधकर
मैं बढ़ता जाता निरंतर
नित नए - नए करता प्रयास
पाता जब कुछ नया , मन की बुझती प्यास ।।

अब तो हो गयी यह मेरी प्रेमिका
मैं पतंगा , यह मेरी दीपिका
इसे देख , इस पर बार - बार 
मैं चक्कर लगाता सौ - हजार ।।

जब नहीं होती इससे मुलाक़ात
तब हो जाती , बिन बादल बरसात
विरह सताता इसका हर पल
सोचता ! क्या पता , मुलाकात होगी कल - ।।

मुझे यह जहां भी आती नजर
लेना चाहता हूँ इसकी खबर
मैं कहता आई कहाँ से ? क्या प्रतिपाद्य ?
तब यह कहती , तुम साधक , मैं  साध्य ।।

15 दिसंबर 2012

हो तुम

20 टिप्‍पणियां:

जीवन पथ में, मैं अकेला /  साथी हो तुम
मंजिल को पाने मैं  निकला / साहिल हो तुम
मेरे हृदय में उठती करुणा / आंसू हो तुम
हर शै पर चमकने वाला / सितारा हो तुम .

 
जीवन और जगत में / चेतना हो तुम
सोच और कल्पना से परे / ऐसा रहस्य हो तुम 
सुख और आनंद के बीच  / सच्चिदानंद हो तुम
दृश्यमान सत्ता की / वास्तविक सत्ता हो तुम .

लिखता हूँ कविता मैं / भाव हो तुम
संजोता हूँ शब्द मैं / अर्थ हो तुम
क्या कहता हूँ , कैसे कहता हूँ / शैली हो तुम
मेरे अधरों पर अंतिम / ' केवल ' शब्द हो तुम .