गत अंक से आगे....सन
2011 तक आते-आते ऐसा लगने लगा था कि ब्लॉगिंग के माध्यम से हिन्दी ब्लॉगर आने वाले
समय में साहित्य-समाज-संस्कृति-राजनीति-अर्थव्यवस्था जैसे विषयों के साथ-साथ उन
तमाम विषयों पर विचार-विमर्श करेंगे जो अभी तक चर्चा से अछूते रहे हैं. ब्लॉगिंग को
अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भी इस दौर में हिन्दी ब्लॉगरों द्वारा कहा जा
रहा था. अभिव्यक्ति और रचनाकर्म के क्षेत्र में एक ऐसा दौर चल पड़ा था, जिससे यह
अनुमान लगाया जा रहा था कि भविष्य में ब्लॉगिंग ही एक ऐसा माध्यम होगा, जिसके द्वारा
तमाम तरह के विषयों पर खुलकर चर्चा की जा सकेगी और आम जनमानस को उन सब विषयों
के बारे में आसानी से जानकारी मिल जाएगी, जो अब तक मेनस्ट्रीम में चर्चा के
केन्द्र में नहीं हैं. सन 2011 तक के पड़ाव को देखें तो ऐसा लगता था कि जिस दिन
हिन्दी ब्लॉगिंग के दस वर्ष पूरे होंगे उस समय तक हिन्दी ब्लॉगिंग का खूब प्रचार-प्रसार
हो चुका होगा. ऐसे ब्लॉगर और ब्लॉग भी होंगे, जिनकी अपनी एक विशिष्ट पहचान होगी.
लेकिन समय के साथ-साथ यह अपेक्षा धूमिल सी होती गयी और हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया
में सन्नाटा सा छा गया.
जीवन
में एक सामान्य सा सिद्धान्त है कि जो चीज जितनी जल्दी ऊपर उठती है, वह उतनी जल्दी
ही नीचे भी गिर जाती है. हम सबने बचपन में कछुए और खरगोश वाली वह कहानी भी पढ़ी
होगी. हिन्दी ब्लॉगिंग के सन्दर्भ में कई बार यह कहानियाँ अनायास ही याद आ जाती
हैं. हो सकता है कि मेरा विश्लेषण गलत हो. लेकिन मुझे लगता है कि सन 2007 से लेकर
2011 तक जिन ब्लॉगरों ने हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखा था, उन्हें ही
हिन्दी ब्लॉगिंग के कारवाँ को आगे ले जाने का कार्य भी करना था. क्योँकि 2003 से
2006 तक जो ब्लॉगर हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय थे, किन्हीं कारणों से वह
2010 तक आते-आते हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया को लगभग अलविदा कह चुके थे. रवि रतलामी
और बी एस पाबला ही ऐसे ब्लॉगर हैं जो हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में प्रारम्भ से
लेकर आज तक एक निश्चित गति से ब्लॉगिंग कर रहे हैं. 2007 के बाद आये ब्लॉगरों में
भी कई ऐसे ब्लॉगर जो अनवरत रूप से अपने ब्लॉग पर लिख रहे हैं. हाँ यह जरुर कहा जा
सकता है कि उनके ब्लॉग पर जितनी प्रविष्ठियां 2008-09-10 में लिखी गयी, बाद के
वर्षों में वह सिलसिला थोडा सा थम गया, फिर भी ऐसे कई ब्लॉगर हैं जो नियमित रूप से
अपने ब्लॉग पर लिखते रहे हैं. वह भी काफी संगीदगी के साथ, इनके ब्लॉग पढ़ने के बाद
कई बार तो लगता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में हलचल हो रही है, लकिन बहुत ही
शान्त तरीके से, कहीं कोई विवाद नहीं, कोई मठाधीशी नहीं, बस चल रहे हैं. मैं
अकेला चला था जानिबे मन्जिल, लोग जुड़ते गए और कारवाँ बनता गया. लेकिन
हिन्दी ब्लॉगिंग के सन्दर्भ में इन पंक्तियों में थोडा बदलाव करना पड़ेगा. मैं
बहुतों के साथ चला था जानिबे मन्जिल, लोग रुकते गए और मैं अकेला रह गया.
लेकिन
फिर भी कई ब्लॉगरों को ऐसा लग रहा है कि हिन्दी ब्लॉगिंग अपने अन्तिम दौर से गुजर
रही है, उसे पुनः पटरी पर लाने की जरुरत है. किसी हद तक यह सही भी है, लेकिन गहराई
से देखा जाए तो इसकी कुछ खास बजहें भी नजर आती हैं. सबसे पहला तो यह कि आजकल अन्तर्जाल
पर अभिव्यक्ति (और टाइमपास) इतने ठिकाने उपलब्ध हो गए कि एक सामान्य इनसान की पूरी
दिनचर्या इससे प्रभावित हो गयी है, ऐसे में उसके पास से सूचनाओं का अथाह प्रवाह
गुजर रहा है. वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने की तरफ ही शायद जा पा रहा है. उसके हाथ
में मोबाइल है और वह चाहे कुछ भी कर रहा है, लेकिन उसका ध्यान हमेशा नोटिफिकेशन पर
टिका है. वह बार-बार अपनी मोबाइल की स्क्रीन को देख रहा है. कुछ नहीं हो रहा है तो
वह सेल्फी खींच कर उसे ही फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प, इन्स्टाग्राम जैसे ठिकानों
पर पोस्ट कर रहा है. वह किसी आये हुए सन्देश को बिन पढ़े अग्रेषित कर रहा है, उसे
यह भी ध्यान नहीं है कि कल उसने क्या किया था और क्या करने के विषय में सोचा था.
वह पूरी तन्मयता से आभासी दनिया में खो गया है, और ऐसे में उसके पास कहाँ वक़्त है ब्लॉग
जैसे गम्भीर लेखन की अपेक्षा करने वाले माध्यम के लिए. हाँ जिन लोगों को ब्लॉग की
महत्ता और प्रासंगिकता का अंदाजा है वह नियमित रूप से ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज
करवाए हुए हैं. ऐसे लोगों को किसी खास दिन या मौके की जरुरत नहीं है, वह अपना काम
बड़ी शिद्दत से कर रहे हैं. सही मायने में देखा जाए तो यही वह लोग हैं जो बिना किसी
अपेक्षा के अंतर्जाल पर हिन्दी के कंटेंट को बढ़ावा दे रहे हैं.
सोशल
नेटवर्किंग साइट्स पर इनसान की (ब्लॉगरों) व्यस्तता के अलावा एक और कारण जो मुझे
नजर आता है. वह है कि हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए किसी खास एग्रीगेटर का आभाव.
चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में एक अलग सा ही
माहौल था. हमें यह भली-भान्ति याद है कि जब कोई भी ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर कोई भी प्रविष्ठी
प्रकाशित करता था तो वह अन्य ब्लॉगों पर प्रकाशित प्रविष्टियों को या तो अपने
द्वारा अनुसरित किये गए फीड के माध्यम से पढ़ता था, या फिर वह सीधे ही किसी संकलक
का रुख करता था. चिट्ठाजगत या ब्लॉगवाणी की तरफ. इन दोनों ब्लॉग एग्रीगेटरों की
अपनी-अपनी खूबियाँ थीं. इसलिए ब्लॉगर अपनी पसन्द के हिसाब से किसी भी संकलक के साथ
अपना ब्लॉग जोड़ देते थे. प्रयोग की दृष्टि से दोनों बेहतर थे कोई भी आसानी से इनका
प्रयोग कर सकता था. लेकिन इन दोनों एग्रीगेटरों के बंद होने के बाद हिन्दी ब्लॉगिंग
के क्षेत्र में एग्रीगेटर तो बहुत से आये, लेकिन यह एग्रीगेटर वह मुकाम हासिल नहीं
कर सके, जो पूर्व में प्रचलित एग्रीगेटरों ने किया था. हालाँकि इस बात से इनकार
नहीं किया जा सकता कि हिन्दी ब्लॉगिंग को अगर वही गति और धार देनी है तो बेहतर और
सुविधासम्पन्न एग्रीगेटर की महत्ती आश्यकता है. शेष अगले अंक में...!!!
सही लिखा ...सही विश्लेषण!!!
जवाब देंहटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सात साल पहले भारतीय मुद्रा को मिला था " ₹ " “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंफ़ेसबुक ओर व्हाट्सएप जैसे सुचना के आदान प्रदान के सुगम साधन होने के बाद भी में ब्लॉग को अवश्य पड़ता हु ।क्योकि जो चीज आप यहा पा सकते है वो आपको कही नही मिलेगी , में व्हाट्सएप ओर फेसबुक की अपेक्षा ब्लॉग अधिक पसंद करता हूं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंवाह एक बेहतरीन संकलक के संचालक होने के नाते आपकी टिप्पणी और आपका विचार निःसंदेह बहुत ही मार्के का है केवल जी | किन्तु निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इन सबके बावजूद ब्लोग्स न सिर्फ बन रहे हैं बल्कि पोस्टें भी लिखी जा रही हैं , हाँ हिंदी भाषी ब्लोगों को अभी व्यावसायिक रुख अपनाना जरूर सीखना होगा | आप जैसे युवा और बी एस पाबला जी जैसे ब्लॉग तकनीक गुरु के मार्ग निर्देशन में हिंदी भाषा में लिखे जा रहे ब्लॉग भी अपना मुकाम हासिल करेंगे , मुझे विशवास है | अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय अजय कुमार झा जी, मैं हिन्दी ब्लॉगिंग को लेकर न तो कभी निराश रहा और न ही हो सकता हूँ. यह हम सबका सांझा मंच है और सांझा ही प्रयास है. हम सभी को मिलजुल कर इस कारवाँ को आगे ले जाना है. बस एक वास्तविकता को सामने रखने का प्रयास किया है. सादर!
हटाएंआपकी पोस्ट को साझा करने का बटन क्यूँ नहीं दिखाई दे रहा है जी ???
जवाब देंहटाएंसही बात।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक विष्लेष्ण किया है आपने, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
परिवर्तन ही जीवन है...फेसबुक, ट्विटर,वॉट्सअप ने ब्लॉगिंग का बंटाधार किया, पहले तो हमें इस सोच को छोड़ना होगा...आज ये हैं तो कल कोई और माध्यम होंगे...इन सब को ब्लॉगिंग का पूरक मानते हुए साथ लेकर चलने में ही समझदारी है...सहकारिता दूसरा पक्ष है जिस पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है...
जवाब देंहटाएंजय हिन्द... जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग
हालाँकि आपकी बात से मैं सहमत हूँ, लेकिन इससे रचनात्मकता पर कुछ तो असर हुआ है. ब्लॉगिंग थोडा गम्भीर होने की मांग करती है, इसकी प्रकृति भी ऐसी ही है. बाकी अन्य माध्यम ऐसी अपेक्षा कम ही करते हैं, इसलिए लोगों का रुझान इस तरफ होना स्वाभाविक है.
हटाएंपूरी तरह सहमत हूँ केवल भाई!
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत ब्लॉगवाणी .... इन दोनों ब्लॉग एग्रीगेटरों की अपनी-अपनी खूबियाँ थीं सटीक विष्लेष्ण
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