हिन्दी
ब्लॉगिंग को लेकर मेरे मन में ही नहीं बल्कि हर ब्लॉगर और ब्लॉग पाठक के मन में एक
अजीब सा आकर्षण है. जब भी कोई ब्लॉगिंग की दुनिया में पदार्पण करता है, या ब्लॉगिंग
से किसी का परिचय होता है तो वह इस अनोखी दुनिया में  रम सा जाता है. ब्लॉगिंग का आकर्षण ही कुछ ऐसा
है कि इसमें एक बार जो डूब जाए, उसका बार-बार इस इस अथाह रचनात्मक समुद्र में
डूबने का मन करता है. हममें से कई महानुभावों को यह अनुभव है कि ब्लॉगिंग के कारण
कई बार वह खाना-पीना तक भूल गए हैं. हालाँकि बदलते दौर में सोशल मीडिया
(फेसबुक, ट्विटर आदि) के प्रति आकर्षण के कारण इस माध्यम से लोगों की सक्रियता
बेशक कम हुई, लेकिन ध्यान हमेशा ब्लॉगिंग की तरफ ही लगा रहा. किसी भी सामान्य बातचीत
में ब्लॉगिंग का जिक्र हो ही जाता और बार-बार मन इस माध्यम पर गम्भीर लेखन के लिए
मचलता रहता. हालाँकि हम ऐसा भी नहीं कह सकते कि इस माध्यम पर लोग पूरी तरह से
निष्क्रिय हो गए थे, लेकिन सक्रियता में जरुर कमी आई थी. लेकिन अब लगता है कि यह
सक्रियता और बढ़ेगी, क्योँकि हिन्दी ब्लॉगर अब एक नयी ऊर्जा के साथ पुनः अपने
ठिकानों पर आ गए हैं. जो ब्लॉग कुछ समय से निष्क्रिय से थे उन पर पुनः रोनक लौट आई
है. इन्टरनेट पर हिन्दी के रचनात्मक संसार की समृद्धि के लिए यह एक शुभ संकेत है. 
 वैसे
लेखन बड़ा जोखिम और उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य है. इसके लिए गम्भीर अध्ययन, मानसिक
दृढ़ता, विचारों की स्पष्टता और विविधतापूर्ण जानकरी की आवश्यकता होती है. गम्भीर
चिन्तन-मनन तो लेखन का अनिवार्य हिस्सा है, इसके बिना हम लेखन की दुनिया में
प्रभावी ढंग से आगे नहीं बढ़ सकते. लेकिन सकारात्मक सहयोग, एक दूसरे के साथ जानकारियों
का आदान-प्रदान और हमेशा कुछ नया सीखने का भाव हमें निश्चित रूप से उस पायदान पर स्थापित
करता है, जिसके विषय में हम सोच भी नहीं सकते. सृजन का अपना सुख है, एक अलग सा
अहसास है. इसलिए सृजनरत मनुष्य हमेशा दुनिया में निराला ही नजर आता है.
उसकी सोच, कर्म और यहाँ तक कि पूरा जीवन ही इतना विरल होता है कि हम ऐसे जीवन के
विषय में सोचते ही रह जाते हैं. पूर्व में जितने भी रचनाकार हुए हैं, उनके जीवन
चरित से हमें इस पहलू का बखूबी से अहसास हो जाता है कि वह सृजन के प्रति कितने गम्भीर
थे. उन्होंने अपने परिवेश का ही वर्णन अपने लेखन के माध्यम से नहीं किया, बल्कि
उन्होंने अतीत से सीखकर, वर्तमान को विश्लेषित कर, भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया
है. आज हम ऐसे सृजनकर्त्ताओं के समक्ष नतमस्तक हैं, जिन्होंने अपने समय का बेहतर
चित्र अपने साहित्य में उकेरा है. उन्हीं के द्वारा रचे हुए साहित्य के माध्यम से
हम अपने इतिहास-साहित्य-समाज-संस्कृति आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं. उसी
साहित्य के बल पर हम अपने तथ्यों को पुष्ट करते हैं. जो कुछ हमारे सामने हैं, उसका
समग्र वर्णन हम उनके साहित्य के माध्यम से ही पाते हैं.
वैसे
लेखन बड़ा जोखिम और उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य है. इसके लिए गम्भीर अध्ययन, मानसिक
दृढ़ता, विचारों की स्पष्टता और विविधतापूर्ण जानकरी की आवश्यकता होती है. गम्भीर
चिन्तन-मनन तो लेखन का अनिवार्य हिस्सा है, इसके बिना हम लेखन की दुनिया में
प्रभावी ढंग से आगे नहीं बढ़ सकते. लेकिन सकारात्मक सहयोग, एक दूसरे के साथ जानकारियों
का आदान-प्रदान और हमेशा कुछ नया सीखने का भाव हमें निश्चित रूप से उस पायदान पर स्थापित
करता है, जिसके विषय में हम सोच भी नहीं सकते. सृजन का अपना सुख है, एक अलग सा
अहसास है. इसलिए सृजनरत मनुष्य हमेशा दुनिया में निराला ही नजर आता है.
उसकी सोच, कर्म और यहाँ तक कि पूरा जीवन ही इतना विरल होता है कि हम ऐसे जीवन के
विषय में सोचते ही रह जाते हैं. पूर्व में जितने भी रचनाकार हुए हैं, उनके जीवन
चरित से हमें इस पहलू का बखूबी से अहसास हो जाता है कि वह सृजन के प्रति कितने गम्भीर
थे. उन्होंने अपने परिवेश का ही वर्णन अपने लेखन के माध्यम से नहीं किया, बल्कि
उन्होंने अतीत से सीखकर, वर्तमान को विश्लेषित कर, भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया
है. आज हम ऐसे सृजनकर्त्ताओं के समक्ष नतमस्तक हैं, जिन्होंने अपने समय का बेहतर
चित्र अपने साहित्य में उकेरा है. उन्हीं के द्वारा रचे हुए साहित्य के माध्यम से
हम अपने इतिहास-साहित्य-समाज-संस्कृति आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं. उसी
साहित्य के बल पर हम अपने तथ्यों को पुष्ट करते हैं. जो कुछ हमारे सामने हैं, उसका
समग्र वर्णन हम उनके साहित्य के माध्यम से ही पाते हैं.
लेखन
के इतिहास पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो एक रोचक सा सफ़र हमारे सामने आता है. ज़रा
सोच कर देखें कि किस तरह से मनुष्य ने भाषा को विकसित किया, किस तरह से उसने वर्ण-वाक्य
और उससे आगे की यात्रा तय की. लेखन का इतिहास बड़ा रोचक है. दुनिया में कोई भी
तकनीक आयी हो, लेखन को उसने बदला है, लेकिन मनुष्य में सृजन का भाव वैसा ही रहा है.
कहाँ हमने ताड़ के पत्तों से सृजन यात्रा शुरू की थी और आज वह इन्टरनेट जैसे माध्यम
तक पहुँच चुकी है. इस बीच में अनेक बदलाव आये और हर उस बदलाव ने लेखन की कला को
निखारा ही है. सृजनकर्मी को एक दूसरे से जोड़ा ही है. अब जो माध्यम हमारे पास है,
इसके माध्यम से अपनी भावनाओं को दुनिया तक पहुँचाने का अपना ही आनन्द है. इसकी
विशालता कितनी है, पहुँच कहाँ तक है यह हम अंदाजा ही लगा सकते हैं. अगर हम सही मायने
में सृजन के लिए गम्भीर हैं तो, हमें यह समझना होगा कि आज जो साधन हमारे पास हैं,
वह इससे पहले नहीं थे. इसलिए हमें बेहतर सृजन का जो वातावरण मिला है हम इसका लाभ
उठा पायें और आने वाली पीढ़ियों को अपने दौर की रचनात्मकता से अवगत करवाने के लिए
आवश्यक है कि हम निरन्तर सृजन करते रहें. लेकिन यह भी ध्यान रहे कि हमें बहुत
जिम्मेवारी से अपनी भूमिका का निर्वाह करना है.
हिन्दी
ब्लॉगिंग के रचनात्मक संसार को पूरे वैश्विक पटल पर उभारने के लिए यह आवश्यक है कि
हम सब मिलजुल कर कार्य करें. बेशक हममें वैचारिक मतभेद हो सकते हैं और वह आवश्यक
भी हैं, लेकिन किसी भी स्थिति में कहीं भी नफरत का भाव किसी ने मन में, लेखन में
नहीं होना चाहिए. आइये हम सब मिलकर सृजन के इस कारवाँ को आगे बढ़ाएं. अपने इतिहास-समाज-संस्कृति
की जानकारियों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं. ब्लॉगिंग के माध्यम से हम अपनी भाषा
और साहित्य को दुनिया के सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य करने का दृढ संकल्प लें.
 
 
 
बिल्कुल सही कहा आपने, मिलजुलकर ही इस कार्य को आगे बढाना होगा.
जवाब देंहटाएं#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०५१
वाह ब्लॉग्गिंग पर लिखना , मेरा भी प्रिय विषय रहा है और ब्लॉग्गिंग करना जूनून | आपसे अभी बहुत उम्मीदें हैं केवल जी , बहुत सारी शुभकमनाएं आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सही बात कही है...| लिखने के प्रति लोगों को गंभीर भी होना होगा और दूसरों का लिखा पढ़ना भी...|
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंसही कहा लेकिन हम तो कहेंगे
जवाब देंहटाएंताऊ के डंडे ने कमाल कर दिया
ब्लोगर्स को बुला कमाल कर दिया
#हिंदी_ब्लोगिंग जिंदाबाद
यात्रा कहीं से शुरू हो वापसी घर पर ही होती है :)
ब्लॉग्गिंग ब्लॉग्गिंग ब्लॉग्गिंग जिंदाबाद :)
जवाब देंहटाएंलेखन में नफरत हो तो लेखन कैसा !
जवाब देंहटाएंलेखन तो बस एक जोश है, आँधी में भी दीये का जलना है
आज सुबह से ही बहुत सरे ब्लॉग पढ़े और यही पाया की ब्लॉगिंग का जूनून लौट आया है बहुत बहुत आभार केवल भाई
जवाब देंहटाएंअरे वाह... आपने तो हिंदी ब्लोगिंग की पूरी दशा ही बयां कर दी...
जवाब देंहटाएंकोशिश कर रही हु मैं भी... पर जाने क्यूँ पूरी तरह से वापस नहीं आ पा रही हूँ
देखिये कब तक वापस आते हैं पूर्ण रूप से...
जय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
जवाब देंहटाएंआपने वैसे भी बहुत सेवा की है ब्लॉग की... अगर यह विधा दुबारा जीवित हो तो आपजो अवश्य एक विशेष प्रसन्नता होगी!! बधाई आपको!
जवाब देंहटाएंआशा है, ब्लॉगिंग अपने पूर्व स्वरूप को पुनः प्राप्त करेगी। शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंआशा है, ब्लॉगिंग अपने पूर्व स्वरूप को पुनः प्राप्त करेगी। शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंयह आवश्यक है कि हम सब मिलजुल कर कार्य करें.
जवाब देंहटाएंAmin
अभी तो बस बढे चलो, साथ चलो कहूँगा :)
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग ना जुनून है ना जरूरत है केवल शौक है अगर शौक है तो ब्लॉगिंग है
जवाब देंहटाएं