25 जुलाई 2017

ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...3

17 टिप्‍पणियां:
पाठक हमारे ब्लॉग पर हमारे लेखन को पढने के लिए आता है, न कि साज सज्जा देखने के लिए. लेखन और प्रस्तुतीकरण अगर बेहतर होगा तो यकीनन हमारा ब्लॉग सबके लिए लाभदायक सिद्ध होगा, और यही तो हम चाहते हैं. गत अंक से आगे...!!!
जहाँ तक ब्लॉग के डिजाईन और लेआउट का सवाल है, वह तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और इनका ख्याल भी किया जाना चाहिए. लेकिन इसमें जरुरी नहीं कि हर दिन कोई न कोई बदलाव किया जाए. बहुत आवश्यक हुआ तो कोई बदलाव किया जा सकता है, वर्ना एक बार जो निश्चित हो जाए, उसी को लेकर आगे बढ़ें तो बहुत बेहतर होता है. इसलिए ब्लॉगिंग करने के लिए ब्लॉग के डिजाईन और लेआउट को लेकर संजीदा रहने की जरुरत है, देखा-देखी में ब्लॉग पर अनावश्यक चीजों को इकठ्ठा करने का मतलब है अपने लेखन को अप्रासंगिक बनाना.
3.   अब क्या लिखा जाए ब्लॉग पर: वैसे सोचा जाये तो यह कोई प्रश्न ही नहीं है कि ब्लॉग पर क्या लिखा जाए? क्योँकि यहाँ एक मत प्रचलित हो गया है कि ब्लॉग पर वह कुछ भी लिखा जा सकता है, जो किसी और माध्यम में प्रकाशित नहीं हो सकता. कहने को आप कुछ भी लिख सकते हैं. किसी की प्रशंसा कर सकते हैं, किसी के लिए आलोचना पूर्ण प्रविष्ठी लिख सकते हैं, किसी के भेद खोल सकते हैं, किसी पर आरोप लगा सकते हैं, या फिर एक दूसरा रास्ता है कि गम्भीर और शोधपूर्ण लेखन भी कर सकते हैं. कीबोर्ड आपके पास है, कुछ भी टाइप करिए और अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कीजिये. लेकिन रुकिये, एक गहरी सांस लीजिये और फिर सोचिये कि जो कुछ मैं लिख रहा हूँ/लिख रही हूँ, उससे किसका क्या मकसद हल हो रहा है? अगर हम इस प्रश्न के उत्तर की तलाश अपने ब्लॉग लेखन से पहले करते हैं तो यकीन मानिए कि हमें कुछ ख़ास लिखने का अभ्यास बेशक नहीं है, लेकिन अगर हम थोडा सा भी सजग हैं तो हम अपने लेखन में वह सुधार कर सकते हैं जो अपेक्षित है. अपने लेखन के माध्यम से उस मुकाम को पा सकते हैं, जो इससे पूर्व किसी ने पाया है.
हमारे लोक जीवन में एक कहावत प्रचलित है, पहले तोलो-फिर बोलो, जब सामान्य संवाद में भी हमें इतना सजग रहने के लिए कहा गया है तो फिर लेखन के लिए तो इससे भी बड़ा मानक हमारे सामने होना चाहिए. क्योँकि जब हम संवाद कर रहे होते हैं तो वहां पर कुछ ही लोग उपस्थित होते हैं, लेकिन जब हम कुछ लिखकर प्रस्तुत करते हैं तो उसका प्रभाव व्यापक तथा दीर्घकालिक होता है. इसलिए लेखन का कार्य तलवार के धार पर चलने जैसा है. ब्लॉग लेखन में तो और भी ज्यादा संजीदगी बरतने की जरुरत है, क्योँकि जब आप कुछ भी लिखकर पोस्ट कर देते हैं तो एकदम पूरी दुनिया के पास पहुँच जाता है, फिर हमारे पास बहुत कम विकल्प होते हैं कि हम अपने उस लिखे को मिटा पायें. इसलिए हम कुछ भी लिखें बहुत सोच समझकर लिखें. हमारा लेखन समाज सापेक्ष होना चाहिए, हम जिस भी विधा या माध्यम में लिख रहे हैं, कोशिश यही हो कि लेखन के क्षेत्र में उच्च मानक हासिल किये जाएँ. हमें यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि हमारा लेखन ही हमारे व्यतित्व का परिचायक है, इसलिए प्रयास हो कि बेहतर, तथ्यपूर्ण और तर्क के साथ निष्कर्षों तक पहुँचने की कोशिश की जानी चाहिए. किसी भी कार्य को करते वक़्त इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि श्रेष्ठता का कोई मानक नहीं होता, श्रेष्ठता अपने आप में एक मानक होता है. हम ब्लॉग पर साहित्य, समाज, संस्कृति, राजनीति, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान आदि दुनिया भर के विषयों पर लिख सकते हैं, लेकिन जरुरी है कि हम जो भी लिखें वह लेखकीय नियमों के अनुकूल हो. तभी हमारे लेखन की सार्थकता है.
4.   पाठकों के साथ संवाद बनायें:  एक पाठक लेखक की रचना को पढ़कर उसे उसकी रचना के विषय में पत्र लिखता है, वह पत्र कितने दिनों बाद लेखक के पास पहुंचता है. लेखक पाठक का पत्र पढ़कर फिर उसे जबाब देता है, हो सकता है यह सिलसिला आगे बढ़ता रहे. लेखक और पाठक व्यतिगत तौर से एक दूसरे को नहीं जानते, लेकिन उसके बीच में रचना रूपी सेतु है, और लेखन रूपी संवेदना, जिसके माध्यम से वह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. रचना को पढ़ने के बाद पाठक की अपनी जिज्ञासाएं हैं, जिनका समाधान वह लेखक से चाहता है, हो सकता है पाठक कई मामलों में लेखक की आलोचना भी करे. लेकिन कोई बात नहीं, लेखक और पाठक के बीच एक संवाद तो कायम हो रहा है न और यही संवाद वह महत्वपूर्ण कड़ी है जो लेखक और पाठक को एक दूसरे से जोड़ती है. मुझे लगता है कि रचनाकार को तो आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए और जिस रचनाकार को बेहतर आलोचक मिल जाता है, उसकी रचनाशीलता उतनी ही बेहतर होती जाती है.    
ब्लॉगिंग की जहाँ तक बात है तो यहाँ पाठक और लेखक का एक तरह से प्रत्यक्ष और त्वरित संवाद हो रहा है. लेखक और पाठक एक दूसरे से संवाद कर रहे हैं. (हिन्दी ब्लॉगिंग के सन्दर्भ में स्थिति थोड़ी अलग सी है, यहाँ ब्लॉगर ही ब्लॉगर से आह और वाह की मुद्रा में संवाद कर रहा है. पाठक अभी तक प्रविष्ठी पढ़कर चुपचाप दृश्य देख रहा है. लेकिन इतना तो तय है कि पाठक पढ़ रहा है, यह एक शुभ संकेत है) सोशल मीडिया के इस दौर में क्रिया और प्रतिक्रिया की गति बहुत तेज है. अभी कोई पोस्ट लिखी और अभी ही पाठक की प्रतिक्रिया भी मिल गयी. लेकिन ऐसे में प्रतिक्रिया का स्तर बहुत निम्न है. ब्लॉगिंग की जहाँ तक बात है, वहां भी कोई ऐसा गम्भीर विमर्श किसी प्रविष्ठी या विषय पर देखने को नहीं मिलता. लेकिन मुझे लगता है कि ब्लॉगिंग आज के दौर में तमाम विषयों को गम्भीरता से पाठकों के समक्ष रखने का एक बेहतर माध्यम हो सकता था. हालाँकि इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि ब्लॉगिंग के माध्यम से लोगों में रचनात्मक चेतना बढ़ी है, लेकिन जिस गम्भीरता की अपेक्षा की जाती है, या जिस स्वतन्त्र अभिव्यक्ति की बात की जाती है, उस तरफ जाना अभी बाकी है. यहाँ पाठकों से संवाद तो हो रहा है लेकिन वह संवाद सतही है, हमें विशुद्ध रूप से रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने मंतव्यों को हासिल करने की तरफ सतत प्रयास करने के जरुरत है. शेष अगले अंक में...!!!                                                    

21 जुलाई 2017

ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...2

11 टिप्‍पणियां:
हम ब्लॉगिंग की दुनिया में है तो, अगर हम कुछ जरुरी बातों का ध्यान रखेंगे तो हम सार्थक और बेहतर रचनात्मकता के साथ अपनी एक अलग पहचान स्थापित करने में कामयाब होंगे. इसके लिए कुछ जरुरी बातों की इन बिन्दुओं के तहत चर्चा की जा सकती है. गत अंक से आगे...!!!
जब भी कोई ब्लॉगिंग की दुनिया में प्रवेश करता है तो उसके लिए कुछ उपकरण जरुरी हैं. जैसे कम्प्यूटर, लैपटॉप, एक बेहतर इन्टरनेट कनेक्शन (जिसमें डाटा अधिक, सर्फिंग स्पीड तेज और दाम कम). हालाँकि स्मार्टफोन के आने से अब इन चीजों के बारे में अधिक नहीं सोचना पड़ता. बस एक बढ़िया सा फ़ोन खरीदिये और ब्लॉगिंग की दुनिया में प्रवेश कीजिये. इन आवश्यक उपकरणों के बाद जरुरी है कि हम बेहतर सोच के साथ ब्लॉगिंग शुरू करें. ब्लॉगिंग शुरू करने से पहले अगर हम कुछ ब्लॉग पढ़ लें, उन पर लिखे जा रहे विषयों का अध्ययन कर लें, ब्लॉग लिखने और विषय प्रस्तुतीकरण की कुछ जानकारी हासिल कर लें तो बहुत ही बेहतर होगा. इसके साथ ही ब्लॉग पर प्रकाशित प्रविष्ठियों के कंटेंट पर होने वाली बहसों पर थोडा ध्यान दें तो, हम योजनाबद्ध तरीके से ब्लॉगिंग की   दुनिया में प्रबेश कर सकते हैं. हम यह जान सकते हैं कि इस विस्तृत दुनिया में कदम रखने के बाद क्या करना है, और इस पथ पर अग्रसर होने के लिए किन-किन चीजों का ध्यान रखना है. मुझे लगता है कि अधिकतर लोग ऐसा नहीं करते. लेकिन ऐसा करने के अपने मायने हैं. ब्लॉग पर प्रविष्ठी लिखना एक तो थोड़ी सी तकनीकी जानकारी की मांग करता है, वही दूसरी और सर्च इंजन लिखी हुई सामग्री को किस तरह से लोगों तक पहुंचाता है, यह जानना बहुत जरुरी है. अगर हमें थोड़ी सी जानकारियाँ हैं तो हम अपने ब्लॉग को उसी तरह से निर्मित करेंगे और लेखन को प्रारम्भ से उसी दिशा में ले जायेंगे, जो निकट भविष्य में हमारे लिए और पाठकों के लिए सुखद हो. मैं यह ब्लॉग प्रविष्ठियां ब्लॉगिंग की सामान्य जानकारी के दृष्टिकोण से लिखा रहा हूँ. इसलिए इसमें ब्लॉगों का जिक्र कम होगा. किसी और रूप में हिन्दी ब्लॉगों के सन्दर्भ में भी अपनी समझ के हिसाब से चर्चा करने की कोशिश करूँगा.
1.   ब्लॉग प्लेटफॉर्म का चुनाव : अब जब हमने ब्लॉगिंग करने का मन बना लिया है तो क्योँ न झट से ब्लॉग बना लिए जाए. लेकिन प्रश्न यह है कि ऐसा हम कैसे और कहाँ कर सकते हैं. इसके लिए हमारे पास दो रास्ते हैं. एक तो यह कि हम मुफ्त में उपलब्ध प्लेटफॉर्म्स का चुनाव करें और ब्लॉगिंग प्रारम्भ करें. वहीं दूसरी और कुछ ऐसे भी प्लेटफॉर्म्स हैं जिन पर हम शुल्क अदा करके भी ब्लॉगिंग प्रारम्भ कर सकते हैं. मुझे लगता है कि हमें ब्लॉग प्लेटफॉर्म का चुनाव बहुत सावधानी से और अपनी जरूरतों के हिसाब से करना चाहिए. हालाँकि इसके लिए थोडा सा शोध करना होता है, अगर हम थोडा सा शोध करने के बाद किसी ब्लॉग प्लेटफॉर्म का चुनाव करते हैं तो बाद में होने वाली कई असुविधाओं से बच सकते हैं. अन्तर्जाल पर उपलब्ध जो ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म मुफ्त में उपलब्ध हैं उनमें से कुछ निम्न हैं:-

Price
00
00
00
00
00
Custom Domain
XX
XX
XX
XX
XX
Mobile Friendly
XX
Yes
Yes
Yes
Yes
Design
Nearly None
1000+
100+
100+
XX
Plugins
XX
1000+
XX
XX
XX
हालाँकि ब्लॉग प्लेटफॉर्म्स का विश्लेषण और कई मानकों के आधार पर किया जा सकता है. लेकिन हमारे लिए कुछ चीजें जरुरी हैं. जैसे कि कितने डिजाईन उपलब्ध हैं, प्लेटफ़ॉर्म मोबाइल फ्रेंडली है या नहीं, हम कोई डोमेन जोड़ सकते हैं या नहीं आदि. अगर हम इन आधारों को लेकर किसी ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म का चुनाव करते हैं और फिर ब्लॉगिंग प्रारम्भ करते हैं तो निश्चित ही हम ब्लॉगिंग की दुनिया में सफल ब्लॉगर बन सकते हैं और पूरे विश्व में अपनी रचनात्मकता का डंका बजा सकते हैं. इसके आलावा पेड प्लेटफ़ॉर्म की भी अपनी ही विशेषताएं हैं. हम उनका भी चुनाव कर सकते हैं. ब्लॉगिंग के लिए उपलब्ध Paid प्लेटफ़ॉर्म में Ghost, Weebly आदि का नाम लिया जा सकता है, इन प्लेटफॉर्म्स पर हम अपनी सुविधा के हिसाब से कोई भी प्लान चुन सकते हैं और ब्लॉगिंग शुरू कर सकते हैं. तो हमें इस बात पर गौर करना होगा कि बेहतर ब्लॉगिंग के लिए एक बेहतर ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म का चुनाव एक बेहतर भूमिका निभाता है.  
2.   कैसा हो ब्लॉग का डिजाईन: ब्लॉग के डिजाईन के विषय में लिखने लगेंगे तो अनेक प्रविष्ठियां लिखी जा सकती हैं. डिजाईन के इतने पहलू हमारे सामने हैं कि किसी एक पहलू पर भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है. लेकिन इस विषय में मेरा यही मानना है कि ब्लॉग का डिजाईन बेशक आकर्षक होना चाहिए, लेकिन वह पाठक की पठनीयता के अनुकूल होना चाहिए. अगर हम रंग का ही चुनाव कर रहे हैं तो आँखों में चुभने वाले रंगों का चुनाव करने से पहले सौ बार सोचा जाना चाहिए. अगर हमारा ब्लॉग लेखन पर आधारित है तो सफ़ेद पृष्ठभूमि पर काले या स्याही रंग के अक्षर बेहतर प्रभाव छोड़ते हैं. इसके आलावा फैशन डिजाईनिंग या रेसिपी के जो ब्लॉग हैं उनका टेम्पलेट हमें अलग से ही चुनना होगा और उसी अनुरूप सामग्री का चुनाव भी करना होगा. ब्लॉग का लेआउट और डिजाईन पाठक को आपका ब्लॉग देखने-पढने के लिए आकर्षित करता है. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपने ब्लॉग का लेआउट और डिजाईन निर्धारित करते वक़्त बहुत सी चीजों को ध्यान में रखें, ताकि पाठक को किसी भी तरह की कोई असुविधा न हो. अनावश्यक विजेट लगाने से भी परहेज किया जाना चाहिए. कई बार ब्लॉग पर सामग्री कम होती है और विजेट ज्यादा होते हैं. हालाँकि उनका कोई ख़ास मतलब नहीं होता, जो जरुरी विजेट होते हैं, वह लगभग हर प्लेटफ़ॉर्म पर पहले से ही उपलब्ध होते हैं. फिर भी किसी विजेट या प्लगइन इन जरुरत पड़ती है तो उसे प्रयोग किया जा सकता है. ध्यान रहे कि पाठक हमारे ब्लॉग पर हमारे लेखन को पढने के लिए आता है, न कि साज सज्जा देखने के लिए. लेखन और प्रस्तुतीकरण अगर बेहतर होगा तो यकीनन हमारा ब्लॉग सबके लिए लाभदायक सिद्ध होगा, और यही तो हम चाहते हैं. शेष अगले अंक में...!!!         

20 जुलाई 2017

ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...1

14 टिप्‍पणियां:
ब्लॉगिंग की दुनिया बड़ी रोमांचक है. इसका दायरा कितना बड़ा है उसका अंदाजा लगना मुश्किल है. लेकिन इतना तो हम समझ ही सकते हैं कि जहाँ तक इन्टरनेट और स्मार्टफोन की पहुँच है, वहां तक ब्लॉगिंग आसानी से पहुँच चुकी है. सोशल नेटवर्किंग के इस दौर में अन्तर्जाल पर उपलब्ध हर प्लेटफॉर्म का अपना महत्व है. इसी कड़ी में जब हम ब्लॉग के विषय में सोचते हैं तो हमें लगता है कि अभिव्यक्ति के इस माध्यम का भी अपना विशेष महत्व है. जो व्यक्ति इस माध्यम से जुड़ा है, वह इसकी प्रासंगिकता और महत्व को बहुत बेहतर तरीके से जानता है. आज की दुनिया जिस व्यवस्था की तरफ बढ़ रही है, उससे यह बात सामने आ रही है कि निकट भविष्य में ‘ऑनलाइन कंटेंट’ की अपनी महता होगी. आज ही हम देख रहे हैं कि किसी भी जानकारी को प्राप्त करने के लिए हम सबसे पहले ‘सर्च इंजन’ का ही रुख करते हैं. क्योँकि आज के दौर में किसी व्यक्ति के पास न तो इतना धैर्य है कि वह किसी तथ्य और खबर को जानने के लिए इन्तजार करे और पुस्तकालय में जाकर पुस्तकें, अखबारें या पत्रिकाएं खंगाले. वह अपनी जरुरत की सामग्री को सबसे पहले कहीं पर खोजने की कोशिश करता है तो वह है ‘सर्च इंजन’ ही है. भारत में गूगल का प्रचार-प्रसार अधिक होने के कारण, अक्सर लोग अपने काम की जानकारी के लिए गूगल का ही उपयोग करते हैं. जिस ‘कीवर्ड’ के माध्यम से वह सर्च करते हैं उसी के आधार पर उन्हें जो कुछ वहां उपलब्ध होता है, उसी को वह अपनी जानकारी का आधार मानते हैं.
इससे यह बात भी स्पष्ट हो रही है कि आज के दौर में और भविष्य में अंतर्जाल पर उपलब्ध सामग्री की महत्ता और प्रासंगिकता बढ़ेगी. इसके लिए जरुरी है अंतर्जाल पर अधिक से अधिक जानकारी उपलब्ध करवाने की. जो जानकारी हमें आज उपलब्ध हो रही है, उसे भी किसी ने (ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल) आदि के माध्यम से उपलब्ध करवाने का प्रयास किया है. ब्लॉगिंग के माध्यम से भी बेहतर सामग्री अंतर्जाल पर उपलब्ध हुई है. वही ब्लॉगऔर ब्लॉगर  सबसे महत्वपूर्ण साबित हुए हैं, जिन्होंने कुछ मानकों के आधार पर ब्लॉगिंग की है. क्योँकि जब हम कोई प्रविष्ठी प्रकाशित करते हैं उसे कौन-कब और किस अन्दाज में पढ़ रहा है, यह हम पूरे यकीन से नहीं जान पाते. ब्लॉगिंग के विषय में जब सोचना शुरू करता हूँ तो लगता है कि मनुष्य के भीतर की दुनिया का साक्षात्कार, बाह्य जगत से त्वरित गति से किसी माध्यम से हो सकता है तो वह है ‘ब्लॉगिंग’.
हालाँकि अधिकतर लोग अंतर्जाल पर उपलब्ध इस माध्यम का उपयोग कई तरह से कर रहे हैं. कोई साहित्य की रचना जो तरजीह दे रहा है तो, कोई यहाँ अपने मन में उठने वाले भाव को लोगों से सांझा कर रहा है. किसी के लिए यह मंच विश्व में हो रही हलचल की चिन्ता करने का है तो, कोई अपने अतीत में जाकर उसे दुनिया के सामने बड़ी कलात्मकता से प्रस्तुत कर रहा है. कोई स्वादिष्ट व्यंजन बनाने की विधि सुझा रहा है तो, कोई मधुर आवाज में किसी को बेहतर रचनाएँ प्रस्तुत कर रहा है. ऐसे कई आयाम हैं, जो एक मंच पर विभिन्न तरह से अभिव्यंजित किये जा रहे हैं. इससे एक तरफ तो आर्थिक पहलू जुड़ रहे हैं, वहीँ दूसरी और व्यक्ति को अभिव्यक्ति का बेहतर मंच ब्लॉगिंग के माध्यम से उपलब्ध हुआ है. हालाँकि इस विषय में मैंने इससे पहले लिखी कुछ प्रविष्ठियों में चर्चा करने की कोशिश की है. मैं पिछले सात वर्ष से ब्लॉगिंग से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ हूँ. मैंने सिर्फ ब्लॉगिंग करने के लिए ही इस माध्यम को नहीं अपनाया, बल्कि शोध की दृष्टि से भी हिन्दी ब्लॉगिंग के हर पहलू को बारीकी से जांचने की भी कोशिश की है. हालाँकि उन अनुभवों और पहलूओं पर फिर चर्चा करने की कोशिश करूँगा. लेकिन यहाँ मैं इस बात की तरफ ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि बेहतर ब्लॉगिंग के जो जरुरी बातें हैं उन पर भी चर्चा कर ली जाए. 
हम जीवन में जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे हमारा या कोई उद्देश्य होता है, या किसी इच्छा की पूर्ति के लिए हम कुछ करते हैं. हम स्वार्थवश भी ऐसे काम कर जाते हैं, जो निकट भविष्य में कई बार हमारे लिए सुखद होते हैं, या कई बार उनके परिणाम हमें आशा के अनुरूप प्राप्त नहीं होते. फिर भी मेरा मानना है कि मनुष्य जो कुछ भी अपने जीवन में करता है, उसके पीछे उसका कोई न कोई भाव जरुर काम करता है, और उसी भाव के वशीभूत होकर वह अपने किसी कार्य को अंजाम तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत रहता है. ब्लॉगिंग के विषय में भी मुझे ऐसा ही लगता है कि इस माध्यम पर भी व्यक्ति उपस्थित है, उसका अपना कोई न कोई उद्देश्य जरुर है और यह सुखद है कि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में अब तक जो कुछ भी घटित हुआ है, वह उद्देश्यपूर्ण है, रचनात्मकता की दृष्टि से बेहतर है. फिर भी अगर हम ब्लॉगिंग की दुनिया में है तो, अगर हम कुछ जरुरी बातों का ध्यान रखेंगे तो हम सार्थक और बेहतर रचनात्मकता के साथ अपनी एक अलग पहचान स्थापित करने में कामयाब होंगे. इसके लिए कुछ जरुरी बातों की इन बिन्दुओं के तहत चर्चा की जा सकती है. शेष अगले अंक में....! 

16 जुलाई 2017

हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3

12 टिप्‍पणियां:
गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति काफी रचनात्मक और गम्भीर थे. हालाँकि उस समय अंतर्जाल पर हिन्दी को लेकर कुछ तकनीकी बाधाएं जरुर थीं, लेकिन हिन्दी को अन्तर्जाल पर स्थापित करने की दिशा में बड़ी गम्भीरता से काम किया जा रहा था. जैसे ही इन तकनीकी बाधाओं से थोड़ी सी राहत मिली, ब्लॉग जैसे प्लेटफ़ॉर्म का प्रचार हुआ तो हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में नए और उर्जावान लोगों का पदार्पण हुआ. यह लोग नयी भाषा-भाव और अभिव्यक्ति के नए तरीकों से सरावोर थे. यह वही लोग थे जो किसी अकादमिक दुनिया में अपना परचम लहराने के लिए नहीं लिख रहे थे, और न ही इन्हें कोई ऐसी मजबूरी थी कि इन्हें लिखना ही है. यह वह लोग थे जो अपने निजी जीवन के समय में से कुछ समय निकालकर हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए समर्पित कर रहे थे.  हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में पदार्पण करने वाले यह लोग अपने अध्ययन और रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों के अनुभव को हिन्दी भाषा के माध्यम से साँझा कर रहे थे. बहुत ही कम समय में अंतर्जाल पर ब्लॉगिंग के माध्यम से साहित्य-इतिहास-पुरातत्व-अर्थशास्त्र-राजनीतिविज्ञान-मनोविज्ञान-खगोलशास्त्र-ज्योतिष आदि अनेक विषयों की जानकारी हिन्दी भाषा में प्राप्त होने लगी. ब्लॉग अब एक मंच बन गया अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों का. यहाँ पर मुख्यधारा के पत्रकारों का एक समूह सक्रिय हो गया, और वह उस खबर का विश्लेषण नए अंदाज में करने लगा, जिसे वह सम्पादकीय दवाब के चलते अपने अखबार या टीवी चैनल के माध्यम से नहीं कर सकता था. इसी दौर में काफी सामूहिक ब्लॉग भी बने, जो किसी एक खास मकसद के लिए स्थापित किये गए थे. कुछ ही दिनों बाद यह नारा दिया गया कि ‘ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति है’.
यह बात तो सही भी है कि ब्लॉगिंग ने अभिव्यक्ति के क्षेत्र में काफी बदलाव किये हैं. पाठक और रचनाकार के बीच की दूरी को कम किया है. पाठक किसी रचना के विषय में क्या सोचता है, उसकी क्या राय है, उससे रचनाकार सहज ही अवगत हो जाता है. इसे अभिव्यक्ति के क्षेत में हुए बदलाव का एक महत्वपूर्ण पहलू कहा जा सकता है. लेकिन जिस मायने में ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति है, उसका प्रतिफल आना अभी बाकी है. सिर्फ माध्यम के बदलने से कोई क्रान्ति घटित नहीं होती, क्रान्ति जब घटित होती है, तब वह समूल परिवर्तन करती है. हमें इस बात को समझना होगा कि ब्लॉगिंग के माध्यम से हम क्या कुछ नया हासिल कर पाए और आगे हम क्या कुछ नया हासिल करने की इच्छा रखते हैं. ब्लॉगिंग का उद्देश्य हर किसी के लिए अलग हो सकता है. लेकिन जब हम ब्लॉगिंग को समाज और राष्ट्र के सरोकारों से जोड़ेंगे तो यक़ीनन हमें वह लाभ प्राप्त होंगे, जिनकी हम परिकल्पना कर रहे हैं. लेकिन इसके लिए हमें सतत प्रयास करने की जरुरत है. ब्लॉगिंग को और धार देने की आवश्यकता है. इस माध्यम के माध्यम से अपने निजी भावों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों की दिशा में भी काम करने की जरुरत है. हालाँकि ऐसा नहीं है कि हिन्दी ब्लॉगों पर सामाजिक सरोकारों से जुड़ सामग्री नहीं मिलती, या लोग समाज और राष्ट्र को लेकर कुछ नहीं लिख रहे हैं, लोग लिख रहे हैं लेकिन ऐसे लोगों को ‘नोटिस’ कौन कर रहा है, यह सबसे बड़ा प्रश्न है? हमारा अधिकतर ध्यान हिन्दी ब्लॉगों और ब्लॉगरों की संख्या पर केन्द्रित है, उनकी सक्रियता पर केन्द्रित है. लेकिन सही मायने में हमें यह भी परख करनी होगी कि कौन क्या लिख रहा है? और बेहतर लिखने वालों को प्रोत्साहित भी करना होगा. हमें सही मायने में किसी भी मुद्दे को विमर्श के केन्द्र में लाना होगा. लेकिन यह होगा तब ही जब हम लेखन के प्रति जागरूक होंगे.             
अभी जो विचार किया जा रहा है कि हिन्दी ब्लॉगिंग को किस तरह से पुनः पटरी पर लाया जाए . तो इसका एक सीधा सा जबाब है कि हम अपने लेखन के प्रति गम्भीर हो जाएँ. अब हमें मात्र सक्रिय रहने के लिए ही नहीं लिखना है. अब हमें जो कुछ भी लिखना है वह लेखकीय जिम्मेवारी के साथ लिखना है. बहस-सहमति-असहमति लेखन का एक महत्वपूर्ण पहलू है, हमें हर एक टिप्पणी को, किसी के दृष्टिकोण को, तथा किसी नवीन जानकारी के प्रति बहुत सजगता से विचार करते हुए आगे बढ़ना होगा. बहुत जरुरी है कि हम एक सकारात्मक वातावरण तैयार करें और अपने ब्लॉगों को ऐसी सामग्री से सरावोर करें, जो सही मायने में पाठक के लिए लाभप्रद हो. मात्र टिप्पणी की संख्या के हिसाब से यह अन्दाजा लगाने की कोशिश न की जाये कि मेरी यह रचना काफी महत्वपूर्ण हो गयी है. हमारी किसी रचना की क्या महता है, वह उसके पाठकों से पता चलती है, और यह निर्णय हम एक दिन में नहीं कर सकते. इसके लिए थोडा वक़्त लगता है. सर्च इंजन से जो पाठक आपकी रचना तक पहुंचता है, वह उस पर कितना समय बिताता है वहीँ से हम एक अंदाजा लगा सकते हैं कि हमें अपने लेखन में किस तरह के बदलाव करने की जरुरत है. हालाँकि यह सब तकनीकी पहलू हैं, आम ब्लॉगर इनकी तरफ ध्यान नहीं दे पाता. ऐसे में उसके लिए टिप्पणी की संख्या बहुत मायने रखती है. मैंने टिप्पणी करने के खिलाफ नहीं हूँ, यक़ीनन टिप्पणी बहुत प्रोत्साहन देती है. लेकिन कोशिश यह भी होनी चाहिए कि हम वाह!! वाह !!! वाली टिप्पणियों के प्रति सतर्क हो जाएँ. लेखन और रचना के सन्दर्भ में अगर हम टिप्पणी करते हैं तो यक़ीनन वह रचनाकार को खुद का विश्लेषण करने का मौका देती है. इससे उसका भी लेखन परिष्कृत होता है, जिसका लाभ निकट भविष्य में उसी रचनाकार को होता है. जरुरी नहीं कि हमें सब विषयों की जानकारी हो, लेकिन हम जिन विषयों पर लिखें, या जिस पोस्ट पर टिप्पणी करें, जो कुछ भी लिखें उसके प्रति हम पूरी तरह से सजग हों. अगर हम इस विमर्श को और आगे ले जाने में सहायक हो पायें तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी ब्लॉगिंग अब तक हुए रचनात्मक क्षेत्र में एक नयी मशाल बनकर उभरेगी. 

15 जुलाई 2017

हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...2

14 टिप्‍पणियां:
गत अंक से आगे....सन 2011 तक आते-आते ऐसा लगने लगा था कि ब्लॉगिंग के माध्यम से हिन्दी ब्लॉगर आने वाले समय में साहित्य-समाज-संस्कृति-राजनीति-अर्थव्यवस्था जैसे विषयों के साथ-साथ उन तमाम विषयों पर विचार-विमर्श करेंगे जो अभी तक चर्चा से अछूते रहे हैं. ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भी इस दौर में हिन्दी ब्लॉगरों द्वारा कहा जा रहा था. अभिव्यक्ति और रचनाकर्म के क्षेत्र में एक ऐसा दौर चल पड़ा था, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा था कि भविष्य में ब्लॉगिंग ही एक ऐसा माध्यम होगा, जिसके द्वारा तमाम तरह के विषयों पर खुलकर चर्चा की जा सकेगी और आम जनमानस को उन सब विषयों के बारे में आसानी से जानकारी मिल जाएगी, जो अब तक मेनस्ट्रीम में चर्चा के केन्द्र में नहीं हैं. सन 2011 तक के पड़ाव को देखें तो ऐसा लगता था कि जिस दिन हिन्दी ब्लॉगिंग के दस वर्ष पूरे होंगे उस समय तक हिन्दी ब्लॉगिंग का खूब प्रचार-प्रसार हो चुका होगा. ऐसे ब्लॉगर और ब्लॉग भी होंगे, जिनकी अपनी एक विशिष्ट पहचान होगी. लेकिन समय के साथ-साथ यह अपेक्षा धूमिल सी होती गयी और हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में सन्नाटा सा छा गया.
जीवन में एक सामान्य सा सिद्धान्त है कि जो चीज जितनी जल्दी ऊपर उठती है, वह उतनी जल्दी ही नीचे भी गिर जाती है. हम सबने बचपन में कछुए और खरगोश वाली वह कहानी भी पढ़ी होगी. हिन्दी ब्लॉगिंग के सन्दर्भ में कई बार यह कहानियाँ अनायास ही याद आ जाती हैं. हो सकता है कि मेरा विश्लेषण गलत हो. लेकिन मुझे लगता है कि सन 2007 से लेकर 2011 तक जिन ब्लॉगरों ने हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखा था, उन्हें ही हिन्दी ब्लॉगिंग के कारवाँ को आगे ले जाने का कार्य भी करना था. क्योँकि 2003 से 2006 तक जो ब्लॉगर हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय थे, किन्हीं कारणों से वह 2010 तक आते-आते हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया को लगभग अलविदा कह चुके थे. रवि रतलामी और बी एस पाबला ही ऐसे ब्लॉगर हैं जो हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में प्रारम्भ से लेकर आज तक एक निश्चित गति से ब्लॉगिंग कर रहे हैं. 2007 के बाद आये ब्लॉगरों में भी कई ऐसे ब्लॉगर जो अनवरत रूप से अपने ब्लॉग पर लिख रहे हैं. हाँ यह जरुर कहा जा सकता है कि उनके ब्लॉग पर जितनी प्रविष्ठियां 2008-09-10 में लिखी गयी, बाद के वर्षों में वह सिलसिला थोडा सा थम गया, फिर भी ऐसे कई ब्लॉगर हैं जो नियमित रूप से अपने ब्लॉग पर लिखते रहे हैं. वह भी काफी संगीदगी के साथ, इनके ब्लॉग पढ़ने के बाद कई बार तो लगता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में हलचल हो रही है, लकिन बहुत ही शान्त तरीके से, कहीं कोई विवाद नहीं, कोई मठाधीशी नहीं, बस चल रहे हैं. मैं अकेला चला था जानिबे मन्जिल, लोग जुड़ते गए और कारवाँ बनता गया. लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग के सन्दर्भ में इन पंक्तियों में थोडा बदलाव करना पड़ेगा. मैं बहुतों के साथ चला था जानिबे मन्जिल, लोग रुकते गए और मैं अकेला रह गया.  
लेकिन फिर भी कई ब्लॉगरों को ऐसा लग रहा है कि हिन्दी ब्लॉगिंग अपने अन्तिम दौर से गुजर रही है, उसे पुनः पटरी पर लाने की जरुरत है. किसी हद तक यह सही भी है, लेकिन गहराई से देखा जाए तो इसकी कुछ खास बजहें भी नजर आती हैं. सबसे पहला तो यह कि आजकल अन्तर्जाल पर अभिव्यक्ति (और टाइमपास) इतने ठिकाने उपलब्ध हो गए कि एक सामान्य इनसान की पूरी दिनचर्या इससे प्रभावित हो गयी है, ऐसे में उसके पास से सूचनाओं का अथाह प्रवाह गुजर रहा है. वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने की तरफ ही शायद जा पा रहा है. उसके हाथ में मोबाइल है और वह चाहे कुछ भी कर रहा है, लेकिन उसका ध्यान हमेशा नोटिफिकेशन पर टिका है. वह बार-बार अपनी मोबाइल की स्क्रीन को देख रहा है. कुछ नहीं हो रहा है तो वह सेल्फी खींच कर उसे ही फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प, इन्स्टाग्राम जैसे ठिकानों पर पोस्ट कर रहा है. वह किसी आये हुए सन्देश को बिन पढ़े अग्रेषित कर रहा है, उसे यह भी ध्यान नहीं है कि कल उसने क्या किया था और क्या करने के विषय में सोचा था. वह पूरी तन्मयता से आभासी दनिया में खो गया है, और ऐसे में उसके पास कहाँ वक़्त है ब्लॉग जैसे गम्भीर लेखन की अपेक्षा करने वाले माध्यम के लिए. हाँ जिन लोगों को ब्लॉग की महत्ता और प्रासंगिकता का अंदाजा है वह नियमित रूप से ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाए हुए हैं. ऐसे लोगों को किसी खास दिन या मौके की जरुरत नहीं है, वह अपना काम बड़ी शिद्दत से कर रहे हैं. सही मायने में देखा जाए तो यही वह लोग हैं जो बिना किसी अपेक्षा के अंतर्जाल पर हिन्दी के कंटेंट को बढ़ावा दे रहे हैं.   
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इनसान की (ब्लॉगरों) व्यस्तता के अलावा एक और कारण जो मुझे नजर आता है. वह है कि हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए किसी खास एग्रीगेटर का आभाव. चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में एक अलग सा ही माहौल था. हमें यह भली-भान्ति याद है कि जब कोई भी ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर कोई भी प्रविष्ठी प्रकाशित करता था तो वह अन्य ब्लॉगों पर प्रकाशित प्रविष्टियों को या तो अपने द्वारा अनुसरित किये गए फीड के माध्यम से पढ़ता था, या फिर वह सीधे ही किसी संकलक का रुख करता था. चिट्ठाजगत या ब्लॉगवाणी की तरफ. इन दोनों ब्लॉग एग्रीगेटरों की अपनी-अपनी खूबियाँ थीं. इसलिए ब्लॉगर अपनी पसन्द के हिसाब से किसी भी संकलक के साथ अपना ब्लॉग जोड़ देते थे. प्रयोग की दृष्टि से दोनों बेहतर थे कोई भी आसानी से इनका प्रयोग कर सकता था. लेकिन इन दोनों एग्रीगेटरों के बंद होने के बाद हिन्दी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में एग्रीगेटर तो बहुत से आये, लेकिन यह एग्रीगेटर वह मुकाम हासिल नहीं कर सके, जो पूर्व में प्रचलित एग्रीगेटरों ने किया था. हालाँकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हिन्दी ब्लॉगिंग को अगर वही गति और धार देनी है तो बेहतर और सुविधासम्पन्न एग्रीगेटर की महत्ती आश्यकता है. शेष अगले अंक में...!!!

06 जुलाई 2017

हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...1

19 टिप्‍पणियां:
जरा उन दिनों को याद करते हैं जब हम हर दिन अपना ब्लॉग देखा करते थे. कोई पोस्ट लिखने के बाद उस पर आई हर टिप्पणी को बड़े ध्यान से पढ़ते थे. साथ ही यह भी प्रयास होता था कि जिसने पोस्ट पर टिप्पणी की है, बदले में उसके पोस्ट पर जाकर भी टिप्पणी कर आयें. हम कोई पोस्ट लिखें या न लिखें, लेकिन ब्लॉगरों के ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणियों का सिलसिला अनवरत जारी रहता था. उन दिनों यह भी होता था कि ब्लॉगिंग हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा था. सुबह उठते ही सबसे पहले ब्लॉग की हलचल को देख लिया जाता था, वरना ऐसा लगता था कि आज जिन्दगी का अहम् समय बेकार चला गया. जीमेल की बत्ती देखकर अंदाजा लगाया जाता कि सामने वाला अभी जाग रहा है. समय रात का हो या दिन का, हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था और हिन्दी ब्लॉगरों की अंगुलियाँ कभी नहीं रूकती थी. कीबोर्ड और माऊस बेशक जबाब दे जाएँ, लेकिन ब्लॉगर अनवरत रूप से कार्य कर रहा होता था. उसके जहन में जनून था अपनी रचनात्मकता को दुनिया के सामने लाने का, साथ ही इन्टरनेट के माध्यम से हिन्दी की ताकत से दुनिया को अवगत करवाने का. वह तकनीकी रूप से सक्षम नहीं है, लेकिन उसकी हर शंका का समाधान करने के लिए कोई न कोई हर समय तत्पर है. एक ऐसा वातावरण जिसने सचमुच देश के हर उस व्यक्ति को करीब ला दिया जो ब्लॉगिंग से जुड़ा हुआ है.
मैं यह बात कोई सौ-पचास पहले की नहीं कर रहा हूँ, यह तो बस 7-8 साल पुराना किस्सा है. यह उस समय की भी बात है जब हिन्दी ब्लॉगिंग अपन चरम की और बढ़ रही थी. हर दिन नए ब्लॉग बन रहे थे, जैसे ही किसी ब्लॉगर को नए ब्लॉग के विषय में जानकारी मिलती वह तुरन्त ही उस ब्लॉग पर जाकर एक प्रशंसा से भरी टिप्पणी करता और साथ ही यह भी कहता कि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है, अनवरत लेखन के लिए आपको शुभकामनाएं. लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि यह सिलसिला एकदम थम कैसे गया? क्या ब्लॉगरों द्वारा, ब्लॉगरों को दी जाने वाली इन शुभकामनाओं का असर थोड़ी देर के लिए ही था. जो कि ब्लॉगर अपना लेखन उस गति से जारी नहीं रख सके, जो गति 2007 से 2011-12 तक थी. हिन्दी ब्लॉगिंग की विकास यात्रा पर मैंने जितना काम किया है, उसमें कई रोचक चीजें भी देखने को मिली हैं. प्रारम्भ के हिन्दी ब्लॉगरों ने हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में ऐसे-ऐसे प्रयोग किये हैं जिनके बारे में जानकार आश्चर्यचकित हो जाना स्वभाविक है. ब्लॉगिंग शुरू होने से पहले भी इन्टरनेट पर हिन्दी की पहुँच को सुगम बनाने के लिए कई प्रयास हो चुके थे. लेकिन जैसे ही ब्लॉग की तरफ तकनीक से जुड़े लोगों का ध्यान गया तो, उन्होंने दिन रात मेहनत कर इस कार्य को भी अंजाम दिया और उन्हीं के प्रयासों की बदौलत हिन्दी ब्लॉगिंग का मार्ग प्रशस्त हुआ.
हिन्दी की पहली ब्लॉग प्रविष्ठी विनय जैन के ब्लॉग ‘हिन्दी’ पर देखने को मिलती है. हिन्दी का पहला सम्पूर्ण ब्लॉग 9-2-11 के रूप में 21 अप्रैल 2003 को अस्तित्व में आता है. इसके बाद से हम हिन्दी ब्लॉगिंग की विधिवत शुरुआत मानते हैं. इसके बाद धीरे-धीरे हिन्दी ब्लॉगिंग का सिलसिला आगे बढ़ता है. आलोक कुमार के ब्लॉग की ब्लॉग पोस्टें पढ़ने के बाद हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रारम्भिक दौर के विषय में आसानी से जाना जा सकता है. इसके बाद सितम्बर 2003 में पद्यमजा का ब्लॉग ‘कही-अनकही’ सामने आता है. इस ब्लॉग की टेगलाइन हमारा ध्यान खींचती है, “नई शक्ति, नई चमत्कार के साथ पद्यमजा का चिट्ठा अब हिन्दी में’. इसी से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दौर में ब्लॉगिंग के प्रति ब्लॉगरों में कैसा जनून था. हालाँकि इनके ब्लॉग पर पहली प्रविष्ठी 1 जनवरी 2004 को प्रकाशित होती है. लेकिन फिर भी इन्होंने हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रारम्भिक दौर में बहुत से कार्य किये हैं. इसके बाद देबाशीष चक्रवर्ती का पदार्पण हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में होता है, और यह व्यक्ति ‘नुक्ताचीनी’ के माध्यम से ऐसे-ऐसे प्रयोग करता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग का परिदृश्य ही बदल जाता है. 2003 में हिन्दी के 2 ब्लॉग अंतर्जाल पर देखने को मिलते हैं, 2004 में इनकी संख्या 21, 2005 में 39 और इस तरह फिर संख्या के बढ़ने का यह सिलसिला आगे बढ़ता है.
हिन्दी ब्लॉगिंग की अब तक की यह यात्रा लगभग 14 वर्षों की यात्रा है. इन 14 वर्षों में हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में कई घटनाएं घटित हुई हैं. इन्टरनेट पर हिन्दी ब्लॉगों को संख्या को लेकर कोई निश्चित आंकडा कहीं से उपलब्ध नहीं हो सका है. लेकिन अगर चिट्ठाजगत के आंकड़ों को देखें तो 10 दिसम्बर 2010 तक 16,476 चिट्ठे उस पर पंजीकृत थे. इससे यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि हिन्दी ब्लॉगों की संख्या हजारों में हैं. एक अनुमानित आंकड़ा निकालने की कोशिश की जाए तो हिन्दी ब्लॉगों की संख्या 25 से 30 हजार के बीच में हो सकती है. लेकिन यहाँ संख्या का प्रश्न गौण हो जाता है, जब हम ब्लॉगों पर रचे जा रहे साहित्य का विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं. यह सुखद पहलू है कि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में स्त्री और पुरुषों की भागीदारी बराबर की है. युवा और युवावस्था पार कर चुके सब मिलजुल कर कार्य कर रहे हैं. हिन्दी ब्लॉगिंग की विकास यात्रा के दृष्टि से देखा जाए तो प्रारम्भ में ब्लॉगिंग के प्रति एक खासा आकर्षण देखने को मिलता है. लेकिन समय के साथ-साथ यह गति धीमी होती चली गयी. ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में सन्नाटा पसरा हुआ है, हाँ इतना जरुर है जो माहौल हमें 2011 तक देखने को मिलता है, उसमें कमी जरुर आई है. उसके कई कारण हैं. शेष अगले अंक में....!!! 

01 जुलाई 2017

मिलजुल कर कारवां आगे बढ़ाएं

16 टिप्‍पणियां:
हिन्दी ब्लॉगिंग को लेकर मेरे मन में ही नहीं बल्कि हर ब्लॉगर और ब्लॉग पाठक के मन में एक अजीब सा आकर्षण है. जब भी कोई ब्लॉगिंग की दुनिया में पदार्पण करता है, या ब्लॉगिंग से किसी का परिचय होता है तो वह इस अनोखी दुनिया में  रम सा जाता है. ब्लॉगिंग का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि इसमें एक बार जो डूब जाए, उसका बार-बार इस इस अथाह रचनात्मक समुद्र में डूबने का मन करता है. हममें से कई महानुभावों को यह अनुभव है कि ब्लॉगिंग के कारण कई बार वह खाना-पीना तक भूल गए हैं. हालाँकि बदलते दौर में सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर आदि) के प्रति आकर्षण के कारण इस माध्यम से लोगों की सक्रियता बेशक कम हुई, लेकिन ध्यान हमेशा ब्लॉगिंग की तरफ ही लगा रहा. किसी भी सामान्य बातचीत में ब्लॉगिंग का जिक्र हो ही जाता और बार-बार मन इस माध्यम पर गम्भीर लेखन के लिए मचलता रहता. हालाँकि हम ऐसा भी नहीं कह सकते कि इस माध्यम पर लोग पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए थे, लेकिन सक्रियता में जरुर कमी आई थी. लेकिन अब लगता है कि यह सक्रियता और बढ़ेगी, क्योँकि हिन्दी ब्लॉगर अब एक नयी ऊर्जा के साथ पुनः अपने ठिकानों पर आ गए हैं. जो ब्लॉग कुछ समय से निष्क्रिय से थे उन पर पुनः रोनक लौट आई है. इन्टरनेट पर हिन्दी के रचनात्मक संसार की समृद्धि के लिए यह एक शुभ संकेत है.
वैसे लेखन बड़ा जोखिम और उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य है. इसके लिए गम्भीर अध्ययन, मानसिक दृढ़ता, विचारों की स्पष्टता और विविधतापूर्ण जानकरी की आवश्यकता होती है. गम्भीर चिन्तन-मनन तो लेखन का अनिवार्य हिस्सा है, इसके बिना हम लेखन की दुनिया में प्रभावी ढंग से आगे नहीं बढ़ सकते. लेकिन सकारात्मक सहयोग, एक दूसरे के साथ जानकारियों का आदान-प्रदान और हमेशा कुछ नया सीखने का भाव हमें निश्चित रूप से उस पायदान पर स्थापित करता है, जिसके विषय में हम सोच भी नहीं सकते. सृजन का अपना सुख है, एक अलग सा अहसास है. इसलिए सृजनरत मनुष्य हमेशा दुनिया में निराला ही नजर आता है. उसकी सोच, कर्म और यहाँ तक कि पूरा जीवन ही इतना विरल होता है कि हम ऐसे जीवन के विषय में सोचते ही रह जाते हैं. पूर्व में जितने भी रचनाकार हुए हैं, उनके जीवन चरित से हमें इस पहलू का बखूबी से अहसास हो जाता है कि वह सृजन के प्रति कितने गम्भीर थे. उन्होंने अपने परिवेश का ही वर्णन अपने लेखन के माध्यम से नहीं किया, बल्कि उन्होंने अतीत से सीखकर, वर्तमान को विश्लेषित कर, भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया है. आज हम ऐसे सृजनकर्त्ताओं के समक्ष नतमस्तक हैं, जिन्होंने अपने समय का बेहतर चित्र अपने साहित्य में उकेरा है. उन्हीं के द्वारा रचे हुए साहित्य के माध्यम से हम अपने इतिहास-साहित्य-समाज-संस्कृति आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं. उसी साहित्य के बल पर हम अपने तथ्यों को पुष्ट करते हैं. जो कुछ हमारे सामने हैं, उसका समग्र वर्णन हम उनके साहित्य के माध्यम से ही पाते हैं.
लेखन के इतिहास पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो एक रोचक सा सफ़र हमारे सामने आता है. ज़रा सोच कर देखें कि किस तरह से मनुष्य ने भाषा को विकसित किया, किस तरह से उसने वर्ण-वाक्य और उससे आगे की यात्रा तय की. लेखन का इतिहास बड़ा रोचक है. दुनिया में कोई भी तकनीक आयी हो, लेखन को उसने बदला है, लेकिन मनुष्य में सृजन का भाव वैसा ही रहा है. कहाँ हमने ताड़ के पत्तों से सृजन यात्रा शुरू की थी और आज वह इन्टरनेट जैसे माध्यम तक पहुँच चुकी है. इस बीच में अनेक बदलाव आये और हर उस बदलाव ने लेखन की कला को निखारा ही है. सृजनकर्मी को एक दूसरे से जोड़ा ही है. अब जो माध्यम हमारे पास है, इसके माध्यम से अपनी भावनाओं को दुनिया तक पहुँचाने का अपना ही आनन्द है. इसकी विशालता कितनी है, पहुँच कहाँ तक है यह हम अंदाजा ही लगा सकते हैं. अगर हम सही मायने में सृजन के लिए गम्भीर हैं तो, हमें यह समझना होगा कि आज जो साधन हमारे पास हैं, वह इससे पहले नहीं थे. इसलिए हमें बेहतर सृजन का जो वातावरण मिला है हम इसका लाभ उठा पायें और आने वाली पीढ़ियों को अपने दौर की रचनात्मकता से अवगत करवाने के लिए आवश्यक है कि हम निरन्तर सृजन करते रहें. लेकिन यह भी ध्यान रहे कि हमें बहुत जिम्मेवारी से अपनी भूमिका का निर्वाह करना है.
हिन्दी ब्लॉगिंग के रचनात्मक संसार को पूरे वैश्विक पटल पर उभारने के लिए यह आवश्यक है कि हम सब मिलजुल कर कार्य करें. बेशक हममें वैचारिक मतभेद हो सकते हैं और वह आवश्यक भी हैं, लेकिन किसी भी स्थिति में कहीं भी नफरत का भाव किसी ने मन में, लेखन में नहीं होना चाहिए. आइये हम सब मिलकर सृजन के इस कारवाँ को आगे बढ़ाएं. अपने इतिहास-समाज-संस्कृति की जानकारियों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं. ब्लॉगिंग के माध्यम से हम अपनी भाषा और साहित्य को दुनिया के सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य करने का दृढ संकल्प लें.