14 जनवरी 2012

अस्तित्व की तलाश .. 1

इस प्रकृति को जब भी भीतर की आँख से देखता हूँ तो बहुत कुछ अप्रत्याशित सा महसूस होता है , और जब इसके करीब जाकर इसको अपने पास महसूस करता हूँ तो भाव विभोर हो जाता हूँ . यह एक बार नहीं बल्कि कई बार होता है . इस अनुभूति का कोई निश्चित क्रम नहीं है . कोई समय नहीं है और कोई सीमा भी नहीं . सब कुछ अप्रत्याशित है . सब कुछ अनुभूति के स्तर पर घटित होता , अभिव्यक्त नहीं हो पाता , एक अनुभव बन जाता है जीवन के क्रम में . जीवन अनिश्चित है और इस अनुभव का जीवन में दखल भी अनिश्चित है . हर किसी के लिए एक सी प्रकृति में अनुभव अलग है . आज तक प्रकृति में भी परिवर्तन हुए हैं . लेकिन एक ही समय में , एक ही वातावरण में रहने वाले इंसानों के अनुभव अलग - अलग हैं , यह बहुत अद्भुत बात है . एक ही माता पिता से जन्म लेने वाले दो जुडवा बच्चों के अनुभव अलग हैं . सोच अलग है , व्यवहार अलग है . ऐसा बहुत कुछ अलग है जिसकी कल्पना करना हमारे मस्तिष्क से बाहर है , और यही है वह जिसे हम अस्तित्व कहते हैं . 

पूरी प्रकृति पांच तत्वों का मिश्रण है और चेतना का स्रोत एक ही है . लेकिन विविधता इतनी कि जितनी आँखें उतने नज़ारे , जितने मस्तिष्क उतने विचार , जितने ह्रदय उतनी भावनाएं , जितने मन उतनी इच्छाएं . सब कुछ अप्रत्याशित सा जान पड़ता है , और जब हम इस सब अप्रत्याशित को करीब से अनुभव करते हैं तो हम खुद को अद्भुत पाते हैं . खुद को धन्य पाते हैं . खुद को हम खुदा का तोहफा मानते हैं . लेकिन ऐसा अनुभव हमें जीवन में होता नहीं . क्योँकि हमारे पास समय नहीं . खुद के करीब आने का . खुद के भीतर झाँकने का . खुद से प्रेम करने का . खुद को महसूस करने का . लेकिन एक तलाश हम जिन्दगी में जरुर करते हैं . जिसे हम अस्तित्व कहते हैं . यह तलाश हम बचपन से जीवन के निर्वाण तक करते हैं . जन्म से मृत्यु तक करते , आत्मा से परमात्मा तक करते हैं . आशा से निराशा तक करते हैं . लेकिन हमारे हाथ क्या लगता है ? यह हमारी तलाश पर निर्भर करता है . हम खोजना क्या चाह रहे हैं ? हमारी आवश्यकता क्या है ? जिसने अपनी आवश्यकता को पहचान लिया , उसका लक्ष्य आसन हो गया . उसके सामने कठिनाईयां भी हैं , लेकिन दृढ निश्चयी है तो लक्ष्य तक जरुर पहुंचेगा ..और उसका लक्ष्य तक पहुंचना उसके अस्तित्व का बोध करवाता है .
अब प्रश्न उठता है कि अस्तित्व की तलाश जरुरी क्योँ है ? क्या बिना अस्तित्व के भी जिया जा सकता है ? अस्तित्व की तलाश व्यक्ति नहीं करता , ना ही उसे इसकी जरुरत है . लेकिन एक बात बहुत महत्वपूर्ण है वह यह कि अस्तित्व की तलाश उसका स्वभाव है . वह इसके बिना जी ही नहीं सकता . वह चाहता नहीं है कि वह अस्तित्व को तलाशे , लेकिन फिर भी स्वभाववश इस तरफ अग्रसर होता है . जिसने खुद के  इस स्वभाव को पहचान लिया वह अस्तित्व के लिए चिंतित तो नहीं लेकिन सजग जरुर होता है , और वहीँ से शुरू होता है जीवन की सार्थकता का सफ़र . हमारे धर्म ग्रन्थ इस विषय पर गहनता से प्रकाश डालते हैं . जीवन एक रोचक सफ़र है . अगर हम इसे जियें तो , एक ऐसा अनुभव है जिसका कोई सानी नहीं . लेकिन हम जीवन को जीते ही कहाँ हैं ? सबसे बड़ी भूल तो यहाँ होती है . हमारे पास साँसे होती हैं जिन्हें हम बिना लक्ष्य के जीते हैं और फिर विदा हो जाते हैं . हमारे जाने के बाद ना तो कोई हमारा अस्तित्व होता है और न कोई याद . यह क्रम चलता रहा है सदियों से . जिनका अस्तित्व है , जिन्हें हम याद करते हैं वह शरीर रूप में विद्यमान नहीं , लेकिन उनका अनुभव हमारे पास है . उन्होंने जो महसूस करने के बाद अभिव्यक्त किया वह हमारे पास है और जब तक वह हमारे पास है तव तक उनका अस्तित्व बना रहा है , और बना रहेगा .   
शेष अलगे अंकों में ........!                                                       

30 टिप्‍पणियां:

  1. kafi achchhe shabd piroyen hain kewal ji.... bahut kuch sikhane ko mila....

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  2. सुंदर !
    अगले अंक का इंतज़ार रहेगा !

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  3. जिनका अस्तित्व है , जिन्हें हम याद करते हैं वह शरीर रूप में विद्यमान नहीं , लेकिन उनका अनुभव हमारे पास है . उन्होंने जो महसूस करने के बाद अभिव्यक्त किया वह हमारे पास है और जब तक वह हमारे पास है तव तक उनका अस्तित्व बना रहा है , और बना रहेगा .

    sahi kaha...
    hamari jindagi ke sare anubhav inhin ke ird-gird ghoomte rahte hain....kahin thoda jyada....kahin thoda kam...!!
    aur fir ek din ham bhi vahin honge jahan vo aaj hain...

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  4. वजूद ही अस्तित्व है,...
    बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति.
    केवल जी,आपका लेख पसंद आया
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....

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  5. किसी नेत्रहीन व्यक्ति के लिए प्रकाश की परिभाषा क्या होगी- एक ऐसी चीज़ जो दिखाई नहीं देती है, जबकि आँख वाले के लिए यह परिभाषा गलत होगी.. इसलिए आँखें खोलकर देखें तो सब में अस्तित्व की उपस्थिति है!!
    बहुत ही अच्छी पोस्ट!!!

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  6. बहुत बढिया..
    आगे जानने की इच्छा है..

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  7. सदा से ही बड़ा रोचक विषय रहा है यह, आगे भी प्रतीक्षा रहेगी

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  8. बहुत ही गहन एवं सार्थक चिंतन है आपका जिसे बहुत ही अच्छे से समझते हुए प्रस्तुत लिया है आपने...अगले अंक का इंतज़ार है

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  9. जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना और उसकी प्राप्ति के लिए दृढ निश्चयी होना लक्ष्य तक पहुंचा देता है, यही उसका लक्ष्य तक पहुंचना उसके अस्तित्व का बोध करवाता है ... यही जीवन की सार्थकता है...
    हमारे जाने के बाद भी हमारी याद रहे, अनुभव रहे इसके लिए प्रयास किया जा सकता है वर्ना बिना लक्ष्य के जीना और विदा हो जाना हमारी अस्तित्वहीनता बन जायेगा.... बहुत सुन्दर और सार्थक विचार... धन्य है आप केवलजी... आभार

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  10. लेकिन हमारे हाथ क्या लगता है ? यह हमारी तलाश पर निर्भर करता है . हम खोजना क्या चाह रहे हैं ? हमारी आवश्यकता क्या है ? जिसने अपनी आवश्यकता को पहचान लिया , उसका लक्ष्य आसन हो गया .

    बहुत सही विश्लेषण ....विषय भी गहन और रोचक है .....लिखते रहिये ...अगले की प्रतीक्षा है ...

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  11. ज़िंदगी क्या है? अनासिर का इकजा होना
    मौत क्या है? इन्हीं का बिखर जाना॥ [चकबस्त]

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  12. बहुत बढ़िया...
    सच है...अगर खुद को तलाश लिया तो जीवन की सार्थकता तय है...किसी ना किसी मायनों में..
    सादर.

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  13. केवल जी यह अच्छी श्रंखला शुरू की है. आस्तित्व को पहचानना और उससे कुछ सार्थक करने या कर पाने की आकांक्षा सभी को होती है.

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  14. व्यक्ति जब केंद्र से हट कर वृत्त पर गति करने लगता है , आत्मा के स्तर से उठ कर शरीर पर जीने लगता है, तो अस्तित्व की खोज कहीं पीछे रह जाती है!!

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  15. बहुत ही उत्तम रचना|मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें।

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  16. सुन्दर दर्शन , आगे की प्रतीक्षा है.

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  17. ''अस्तित्व है''....तभी तो मानव आज तक इस धरती पर टिके हैं

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  18. करे करावे आप है पलटू पलटू शोर ।

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  19. आपके हर पोस्ट नवीन भावों से भरे रहते हैं । पोस्ट पर आना सार्थक हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  20. जिसने अपनी आवश्यकता को पहचान लिया , उसका लक्ष्य आसन हो गया . उसके सामने कठिनाईयां भी हैं , लेकिन दृढ निश्चयी है तो लक्ष्य तक जरुर पहुंचेगा ..और उसका लक्ष्य तक पहुंचना उसके अस्तित्व का बोध करवाता है .

    बहुत अच्छे और सार्थक विचार हैं आपके.
    अपने अस्तित्व का यथार्थ बोध करना
    ही जीवन का लक्ष्य है.

    सुन्दर प्रस्तुति.

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  21. sahi kaha....prakruti apne anokhe dhang se sdaa hi humaare aakarshan ka karan rahi hain....!

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  22. हम जैसे ही उस सत्ता से अलग होते हैं हमारा सारा कार्य-कारण व्यापार पुनः उसी सत्ता में मिल जाने का सम्पूर्ण प्रयास करता है .. जिसे हम सुंदर शब्दों में अस्तित्व की खोज कहते है ..

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  23. भाई केवल राम जी अद्भुत दर्शन समाहित है इस लेख में |आभार

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.