16 सितंबर 2013

न काशी न काबा, बस बाबा ही बाबा...1

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भारतीय सभ्यता और संस्कृति को जब हम गहराई से विश्लेषित करते हैं तो इसकी जड़ें और गहरी होती जाती हैं, हम जितना इसको समझने की कोशिश करते हैं, उतना ही हमें ऐसा आभास होता है कि अभी हम कुछ जान ही नहीं पाए हैं और यही इस संस्कृति की विशेषता है. इसके पीछे स्पष्ट बात तो यह है कि आप किस दृष्टि से इसे समझने की कोशिश करते हैं और आपका प्रयास कितना दृढ है, आपकी सोच कितनी स्पष्ट है. क्योँकि आप पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर इस संस्कृति को नहीं समझ सकते, इसके लिए आपको निश्छल भाव की आवश्यकता है, इस संस्कृति से दृढ प्रेम और इसके प्रति समर्पण की आश्यकता है. तभी आप इसका कुछ अनुमान लगा सकते हैं और इसके गर्भ में जो कुछ छुपा है उसे समझ सकते हैं. लेकिन शायद एक जीवन के अगर हम सौ वर्ष भी जी लेंगे तो इसका पार नहीं पाया जा सकता, हां ऐसी अवस्था हो सकती है. जैसे कोई हजारों मील दूर से चलकर सागर के किनारे पहुँच गया हो और सागर को निहार कर ऐसा समझ ले कि वह अपने लक्ष्य तक पहुँच गया है. असली शुरुआत तो सागर के किनारे पर पहुँचने से होगी अब वास्तविकता तो उसके सामने तब आती है और वास्तविक यात्रा भी यहीं से शुरू होगी. अभी तक उसने जो कुछ किया वह एक तरह से पूर्वाभ्यास था जिसके दम पर वह यहाँ तक पहुँच गया. लेकिन जैसे ही वह सागर में गोता लगाएगा उसे ऐसा लगेगा कि उसकी मंजिल तो अभी बहुत दूर है और जितनी-जितनी गहराई में वह जाएगा उतना ही उसे लगेगा कि उसके हाथ से मंजिल दूर होती जा रही है. 

भारतीय संस्कृति के विषय में भी कुछ ऐसा ही है. ठीक सागर की यात्रा की तरह, हम इसे जितना भी देखते
हैं उतना ही यह गहरी होती जाती है. हम तो इस संस्कृति के साथ यात्रा ही तय करते हैं, लेकिन डुबकी नहीं लगाते, क्योँकि इतना अवसर हमारे पास है ही नहीं और आज के दौर की अगर बात की जाए तो शायद हमारे पास वक़्त ही नहीं, और संभवतः इस और हम ध्यान ही नहीं देते, यह सबसे बड़ी विडंबना है और आये दिन हम इसका खामियाजा भुगत रहे हैं और आने वाले दिनों में तस्वीर कितनी भयानक होगी यह तो कल्पना करने से भी डर लगता है, ऐसे में हमें एक गहरे विश्लेषण की आवश्यकता पड़ती है और सार्थक निष्कर्षों तक पहुँच कर उनके क्रियान्वन, उनके अनुपालन की आवशयकता पड़ती है . जो लोग भारतीय संस्कृति की थोड़ी सी भी समझ रखते हैं वह जीवन को ऐसा जीते हैं, जैसे उनके जीवन में कोई असमंजस ही ना हो, कोई दुविधा ही न हो, कोई संघर्ष ही न हो, उपरी तौर पर देखने में हमें ऐसा लग सकता है, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि संस्कृति के माध्यम से जिस सच को उस व्यक्ति ने समझा है वह उसे जीवन में हमेशा ही सहज बनाए रखता है. यह संस्कृति की विशेषता है. भारतीय जीवन दर्शन और भारतीय संस्कृति दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. भारतीय जीवन दर्शन हमें पूरे विश्व के प्राणियों से प्रेम करना सिखाता है, सबके प्रति आदर का भाव सिखाता है और सबके साथ रहते हुए इस विश्व को सुंदर रूप देने की प्रेरणा देता है और भारतीय संस्कृति तो और भी उदार भाव रखते हुए सबको अपने में समाहित करने की क्षमता रखती है. यह सिर्फ कहने को ही नहीं बल्कि ऐसा यहाँ हुआ है और बहुत प्रयासों के बाबजूद भी यह संस्कृति अपने गौरव को बनाए हुए है.

हम इतिहास को देखें इस दुनिया में कितनी ही सभ्याताएं और संस्कृतियाँ पनपी लेकिन वक़्त के साथ वह मिट भी गयी, लेकिन भारतीय संस्कृति की यह अद्भुत विशेषता है कि यह अभी तक अपने आप को अक्षुण बनाये हुए है, लेकिन इस अक्षुणता के पीछे बहुत से कारण है और उनमें से एक कारण यह है कि यह हमारे जीवन दर्शन का हिस्सा है, हमारे जीवन का कोई भी पहलू ऐसा नहीं जो संस्कृति के माध्यम से अभिव्यक्त न होता हो और जीवन दर्शन में कुछ भी ऐसा नहीं जो संस्कृति के लिए अवरोध उत्पन्न करे, और इसी कारण लाखों-करोड़ों वर्षों से हमारी संस्कृति अक्षुण बनी हुई है . हालाँकि यह भी सच है कि इस संस्कृति को नष्ट करने के अनेकों प्रयास हुए हैं लेकिन यह आजतक अपने गरिमा को बनाए हुए है, इसके बने रहने के कारणों पर जब हम विचार करते हैं तो समझ आता है कि यह हमारी सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और साहित्यिक व्यवस्था के कारण समझ आते हैं. हमारी संस्कृति का कोई भी पहलू ऐसा नहीं जिसमें अध्यात्म शामिल न हो, धर्म की बात न हो, सब पहलूओं सब कुछ शामिल होने के कारण भी हर पहलू की अपनी विशेषता होना भारतीय संस्कृति को अद्भुत बनाता है और यही इसकी जीवटता का सबसे सशक्त प्रमाण है .....बाकी के बिंदु  अगले अंक में ....!!!

10 सितंबर 2013

आजादी पर आत्मचिन्तन ... 2

9 टिप्‍पणियां:
आजादी का अगर सीधा सा अर्थ किया जाए तो इस मतलब होगा अपनी व्यवस्थाओं में जीना, लेकिन जिस भारत की आजादी का जश्न हम बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं (यह तो होना भी चाहिए) उसमें अगर हम आज तक के  (66 वर्षों) समय को गहराई से विश्लेषित करें तो पूरी सच्चाई एकदम स्पष्ट रूप से सामने आती है कि आजादी के बाद हम कोई ऐसी व्यवस्था कायम नहीं कर पाए जो हमारे देश के अनुकूल हो, बल्कि पिछले 15-20 वर्षों से तो हमने अपने प्रयासों को और तेज कर दिया है कि हम कितनी विदेशी व्यवस्थाएं इस देश में लागू कर पाते हैं और हम पुरजोर इसी कोशिश में हैं. फिर यह आजादी कैसी यह एक बड़ा प्रश्न है ? गतांक से आगे    

वर्तमान आजादी के दौर को समझने से पहले हमें अपने देश के इतिहास पर नजर डालने की जरुरत है. अगर आज तक के उपलब्ध इतिहास का विश्लेषण करते हैं तो इस देश की एक उच्च सांस्कृतिक, सामाजिक और अध्यात्मिक परम्परा रही है. इस देश के ही एक समय में विश्व गुरु का दर्जा दिया जाता था. यह वही भारत है जो विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दुनिया के तमाम देशों को राह दिखा रहा था, दुनिया के देश अभी ढंग से अपने जीवनयापन के साधनों की तलाश भी नहीं कर पाए थे और इस देश के लोग अआत्मिक चिंतन की तरफ प्रवृत थे, भौतिक सुख सुविधाओं से संपन्न इस भारत के लोग पूरी दुनिया में शांति और संतोष के अग्रदूत बनकर उभरे थे, आज भी कई ऐसे प्रमाण हमारे सामने हैं, जिनके आधार पर हम इन सब बातों के तथ्यात्मक रूप से कह सकते हैं और प्रमाणित कर सकते हैं. यह भारत के इतिहास का एक पहलू है, मुगलों का शासन जब इस देश में स्थापित हुआ तो भी यहाँ संस्कृति और सभ्यता का विकास होता रहा, लेकिन अंग्रेजों की गुलामी ने इसे गहरे गर्त में धकेल दिया. हालाँकि मुगलों के शासन के दौरान भी इस आर्यवर्त की सभ्यता और संस्कृति के साथ काफी खिलवाड़ किया गया, उन्होंने भी इस देश को जमकर लूटा, यहाँ पर शासन व्यवस्था कायम की और इस देश को अपने तरीके से चलाने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन अंग्रेजों ने तो इस देश को ऐसे कगार पर ला खड़ा किया जहाँ से इस देश का हर प्रकार से पतन होना शुरू हुआ. आर्यवर्त दुनिया को शांति का सन्देश देता रहा है और यह अंग्रेजी शासक कलुषित मासिकता के कारण पूरी दुनिया में व्यक्ति के साथ छल, कपट और धोखे के लिए मशहूर रहे हैं और संभवतः आज भी इनके हालात ऐसे ही हैं.

खैर भारतीयों को जब अंग्रेजी शासन में घुटन महसूस होने लगी तो उन्होंने आजादी का बिगुल बजा दिया. 10
मई 1857 को भारतीय आजादी की क्रांति का शंखनाद मेरठ से हुआ, इस आन्दोलन ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाकर रख दीं, असंगठित आन्दोलन होने के कारण अंग्रेज इसे दबाने में बेशक सफल रहे हों, लेकिन स्वतंत्रता के लिए जल चुकी चिंगारी को बुझाने में वह कामयाब नहीं हो सके और रह रहकर उनके खिलाफ आन्दोलन होते रहे और अंततः 90 वर्षों के कठोर संघर्ष के बाद भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ. लेकिन इस देश के दो टुकड़े हो गए, भारतीयों को लगा कि वह अपने मकसद में कामयाब हो गए लेकिन यह सिर्फ एक कल्पना थी. हमने अगर आजादी अगर प्राप्त की तो वह कानून के माध्यम से प्राप्त हुई. दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो जो अंग्रेजों की गुलामी से स्वतन्त्र हुआ हो और उसे कानून बनाकर आजादी दी गयी हो. इतना ही नहीं अंग्रेज जिस मकसद को हासिल करना चाहते थे वह अंत में उस मकसद को हासिल करने में भी कामयाब हो गए. एक देश के दो टुकड़े कर गए और ऐसी भावना भर गए कि आज उसके गंभीर परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं और आने वाले समय में भी कमोबेश यह स्थिति जारी रहेगी. 

यह तो आजादी का एक पहलू है, भारत में आजादी के बाद क्या कुछ परिवर्तन आया उसे पुरे सन्दर्भ में अगर देखा जाए तो स्थिति बहुत नाजुक सी लगती है और कई बार मन यह सोचकर उदास हो जाता है कि हम कैसे आजाद भारत में रह रहे हैं. कोई भी ऐसा पक्ष नहीं जो हमें महसूस करवा सके कि हम आजादी में जी रहे हैं. आज भी हम उस गुलाम मानसिकता से नहीं उभर पाए हैं, इसलिए हम अपने कार्यक्रमों और नीतियों का निर्धारण भी विदेशी हितों के अनुकूल करने लगे हैं. बड़े व्यापक पैमाने पर अगर हम अपने देश कि स्थितियों का विश्लेषण करें तो यहाँ की चाहे राजनीतिक स्थिति हो या आर्थिक स्थिति सब कुछ अब भी विदेशी नीतियों पर निर्भर करता है तो फिर आजादी कहाँ और कैसी आजादी? हम आजादी के बाद कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बना पाए जो हमारे देश के अनुकूल हो, जो हमारी संस्कृति, सभ्यता, समाज, धर्म को संरक्षित कर सके और इस देश की जनता को यह अहसास दिला सके कि जो कुर्बानियां उनके पूर्वजों ने की हैं उनका लाभ उन्हें मिल रहा है, उनकी कुर्बानियां देश और समाज के लिए लाभदायक साबित हुई हैं. लेकिन ऐसा किसी स्तर पर महसूस नहीं होता तो फिर आजादी पर ही एक आत्मचिंतन करने की जरुरत पड़ जाती है. 

हम किस तरह की आजादी चाहते हैं और क्योँ? यह एक बड़ा सवाल है और इस सवाल का उत्तर जिसे भी खोजना होगा उसे पहले अपनी सभ्यता और संस्कृति को समझना होगा. समाज की संरचना और धर्म के नियमों का अध्ययन करना होगा और वह भी सापेक्ष दृष्टि से और तब जो निष्कर्ष हमारे सामने आयेंगे वह हमें निश्चित रूप से यह अहसास तो दिला ही देंगे कि आजादी होती क्या है ? और जब हमें वैसी वास्तविक आजादी का अहसास होगा तो फिर हम निर्णय कर पायेंगे कि हमें अभी कितना सफ़र तय करना है और हमारी मंजिल कितनी दूर है और फिर उस दूरी को भांपते हुए यह भी निर्णय करना होगा कि हम उस मंजिल तक पहुँच पायेंगे या नहीं, अगर पहुंचना है तो फिर किस तरह से और कब हम पहुंच सकते हैं. 

आजादी सिर्फ एक शब्द नहीं है, यह एक भाव है, एक व्यवस्था है, एक जीवन पद्धति है, लेकिन क्या हमारे देश में या दुनिया में कहीं ऐसा है, मुझे बहुत कम मात्रा में ऐसा देखने को मिला कि कोई व्यक्ति उस आजाद सोच से जीता है, जिसकी मनुष्य से अपेक्षा की जाती है. हम अपने आस पास ही देख लें, विज्ञान और तकनीक की इतनी उन्नति होने के बाबजूद भी हमारे मनों में ऐसी दीवारें हैं जो आजतक हमें उसी गर्त में धकेले हुए हैं जहाँ पर हम आज से दो-तीन सौ वर्ष पहले थे. कहाँ हम जाति-पाति के भेद को मिटा पाए हैं, कहाँ हम मंदिर-मस्जिद को एक समझते हैं, कहाँ हम हिन्दू, मुस्लमान, सिक्ख, ईसाई आदि के दायरों से बाहर निकलकर इंसानियत का भाव कायम कर पाए हैं. कहाँ हमें सबकी बोली प्यारी लगती है, कहाँ हमें किसी के खान पान, रहन सहन से नफरत नहीं होती, कहाँ पर हम साम्प्रदायिकता का शिकार नहीं हैं, हमें कब लगता है कि इको नूर ते सब जग उपज्या, कौण चंगे ते कौण मंदे, जब हमें ऐसा कुछ आभास होता ही नहीं है तो फिर हम इसे कर्म रूप में कैसे देखने की कोशिश करते हैं. अभी हमें आजादी पर गहन आत्मचिंतन करने की जरुरत है, हर एक उस देशभक्त की कुर्बानी को याद करके उसकी महता को समझने की जरुरत है, तभी कहीं हम एक आजादी वाला वातावरण कायम कर पायेंगे....लेकिन ऐसा वातावरण सिर्फ सोचा जा सकता है, इस पर विचार किया जा सकता है, क्रियात्मक रूप में ऐसा जब संभव हो जाएगा तो निश्चित रूप से धरती से सुंदर और कोई जहान नहीं होगा, फिर शायद व्यक्ति जिस काल्पनिक स्वर्ग की कल्पना करता आ रहा है उसे भी करना छोड़ देगा एक आजाद सोच के साथ जीवन व्यतीत करेगा और जब इस दुनिया से रुखसत होगा एक आजादी से भरा वातावरण इस दुनिया को दी जाएगा.

08 सितंबर 2013

ऐसा सिला दिया

7 टिप्‍पणियां:
उसने बैगाना समझ कर भुला दिया
आज फिर उसकी याद ने रुला दिया

खुशियाँ तो हासिल नहीं हुई हमें उससे
मोहब्बत के बदले गम का सिला दिया

उनकी याद आती है अब हर सांस में
दिल की नगरी में ऐसा गुल खिला दिया 

उतरा नहीं है नशा इश्क का अब  भी
जाम इलाही उसने ऐसा पिला दिया

खेल -खेल में यह पंक्तियाँ आप सबके लिए ....बहुत दिनों से इस रूप में कुछ पोस्ट नहीं किया था यहाँ ....!!!