जब मुद्दत बाद अपने किसी
खास दोस्त से मुलाकात होती है तो मन में कुछ इस तरह के भाव उठते हैं ........
मुद्दत
बाद मिले तो कुछ बदला लगना था वाजिब
दो जान एक दिल तो अश्कों का बहना था वाजिब
गैरों के जहां में पनाह दी थी नाचीज को
अपनाया बाँहों में , गिलों का मिटना था वाजिब
सपनों का ताज टूटा था जब चंद रोज पहले
आज बस गयी बस्ती , चिड़ियों का चहकना था वाजिब

सागर से दरिया मिला , लहरों का उठाना था वाजिब
मिलने की चाहत देखी रात के आगोश में
उतरा चाँद जमीं पर, चकोर का चहकना था वाजिब
दो जान एक दिल तो अश्कों का बहना था वाजिब
गैरों के जहां में पनाह दी थी नाचीज को
अपनाया बाँहों में , गिलों का मिटना था वाजिब
सपनों का ताज टूटा था जब चंद रोज पहले
आज बस गयी बस्ती , चिड़ियों का चहकना था वाजिब
सहा जिसने हर गम को ख़ुशी का उपहार
समझकर

सागर से दरिया मिला , लहरों का उठाना था वाजिब
मिलने की चाहत देखी रात के आगोश में
उतरा चाँद जमीं पर, चकोर का चहकना था वाजिब