01 मार्च 2011

अकेले होना

सोचा मैंने
जब अकेले होने के बारे में
तब मुझे यही लगा
किभीड़ में सब कुछ होने से तो बेहतर है
नितान्त अकेले होकर
कुछ ना होना.
फिर एक प्रश्न उभर आया
था उस पर..
जगत की माया का साया
फिर कहीं मेरे अहं ने
मुझसे कहा ......!
क्या तुम नहीं सोचते
‘तुम्हारे’ अकेले होने से
खाली रह जायेगा
भीड़ का वो कोना...! 
भीड़ और अकेले के इस द्वंद्व ने 
मेरे विवेक की परख की...
मुझे एक को चुनने
की आजादी दी.
बहुत मानसिक संघर्ष के बाद
आया मुझे इतिहास याद
फिर मैंने...
जिन्दगी के हर पन्ने को
प्रकृति के हर पहलू को
बड़ी तीक्ष्ण नजर से देखा
बहुत गहरी समझ से परखा
बहुत जांचा....
फिर ...
कहीं एक निष्कर्ष निकल आया
उसी निष्कर्ष के सहारे
मैंने एक को चुना.
फिर भी मुझे यही लगा
किभीड़ में सब कुछ होने से
तो
बेहतर है
नितांत अकेले होकर
कुछ न होना...!

‘ब्लॉगरीय षटकर्म’ शीर्षक प्रविष्ठी पर आपकी प्रतिक्रियाएं अनवरत जारी हैं....!

84 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय श्री केवल रामजी,
    नमस्कार
    आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है!

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  2. जब अकेले होने के बारे में
    सोचा मैंने तब मुझे यही लगा की
    श्री केवल रामजी भाई तो है!

    बेहद सुन्दर

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  3. सचमुच अकेले में होना स्वयं से साक्षत्कार है.. बहुत सुन्दर !

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  4. श्री केवल रामजी नमस्कार ,

    आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है! बहुत सुन्दर

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  5. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना
    .
    सही कहा है केवल जी , आप की कविता का अंदाज़ मुझे हमेशा पसंद आया

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  6. अकेले रहने से भीड़ का कोना खाली रह जायेगा, भीड़ तब और भीड़ जैसा वर्ताव करेगी।

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  7. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!
    बहुत अच्छा लिखा है...वाकई बेहतर है भीड़ में अकेला महसूस करने से अच्छा स्वयं अकेला होना...

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  8. यही अकेलापान द्वैत को समाप्त करने की सीढी बन जाता है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  9. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है। आत्मसाक्षात्कार तभी संभव है।

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  10. केवल राम जी,दुनिया में हर इन्सान अकेला ही आया हे और अकेला ही जाता हे पर हमे जीने के लिए भीड़ की जरूरत हे !

    शानदार कविता हे मन की संवेदनाए भली प्रकार प्रकट हुई हे बधाई |

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  11. कभी कभी लगता है की ये भी ट्राई किया जाए, देखा तो जाए की भीड़ को फर्क भी पड़ता है या नहीं...
    देखा जाए की कौन किसके लिए कितना मायने रखता है...
    बहुत सुन्दर...

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  12. हमारे धर्मशास्त्रों में लिखा है -" ब्रह्मसत्यम जगतमिथ्या " अकेले होना माने अंतर्मुखी होना और अंतर्मुखी अर्थात आत्मा से साक्षात्कार. जो की ईश्वर को पाने की प्रथम सीढ़ी है. ........... अच्छी कविता. आभार.

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  13. केवल राम जी, बहुत ही सुन्दर कविता लगी, आभार

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  14. भीड़ में कोई न कोई तो अपने जैसा मिल ही जाता है.बस अपने आप का साथ न छूटे.
    सुन्दर कविता है.

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  15. बहुत सुन्दर रचना वाकई तारीफ के काबिल है| धन्यवाद|

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  16. अकेलेपन से साक्षात्कार भी जीवन के आवश्यक अनुभवों में से एक ही है । कभी-कभी होते भी रहना चाहिये ।
    अकेलेपन के अनुभवों को बांटती अच्छी प्रस्तुति...

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  17. bheed mein hum kuch nahi hote, akele bahut kuch ho jate hain... akelapan ye anubhaw deta hai

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  18. जिंदगी के मेले में सभी अकेले.

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  19. अच्‍छी रचना। बधाई हो आपको।

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  20. केवल रामजी नमस्कार ..
    बहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |

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  21. बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।

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  22. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!
    जीवन के प्रति गंभीर चिंतन मनन, अंतर्मुखी होना अपने आप में बहुत बड़ी विशेषता है मनुष्य की, जो उसे पहले आत्मा फिर परमात्मा तक के साक्षात्कार के काबिल बना देता है.बेमिसाल........रचना

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  23. अकेले रहकर ही हम उस से मिल पाते है जिससे भीड मे कभी नही मिल सकते
    शुभकामनाये

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  24. सोंचने वाली कविता .धन्यवाद

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  25. हमारा भीड़ का हिस्सा बनना न बनना हमारा चुनाव है। यहां कवि की भावाभिव्यक्ति
    भीड़ में सब कुछ होने से तो बेहतर है नितांत अकेले होकर कुछ न होना ..!
    हॄदय स्पर्शी है।

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  26. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!

    बेहद सुन्दर...खुद को तलाशने के लिए अकेलापन भी आवश्यक है.... भीड़ में भी अकेले होने से बेहतर है अपने आप के साथ होना .....

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  27. अकेले में आत्मनिरीक्षण करने का अवसर मिलता है। यह अनुभव भीड़ में काम आता है ।

    सुन्दर प्रयास ।

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  28. अच्छी कविता | भीड़ में हो कर भी अपनी अलग पहचान बनाना शायद एक बेहतर विकल्प है अकेले होने से मेरा ऐसा मानना है |

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  29. आत्मनिरीक्षण के लिए नितांत एकांत का होना आवश्यक है । लेकिन कर्म करने के लिए भीड़ का अंग बनना जरूरी है । बहतरीन सोच के लिए आभार केवल राम जी ।

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  30. कभी कभी अपने से भी मिलना जरुरी होता हे,बहुत सुन्दर रचना.

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  31. केवल राम जी ---अकेले नहीं हमलोग भी--
    बैचारिक कबिता ने बहुत प्रभावित किया बहुत अच्छा लगा बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  32. इंसान हमेशा अकेला ही चलता है यह बात और है कि वो भीड़ को देखकर यह भ्रम पाल लेता है कि वो उसके साथ है.. अच्छी कविता है.

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  33. अकेले होने पर बहुत कुछ सीखने को स्वतः ही मिल जाता है..

    और थोडा अभ्यास हो जाये तो हम भीड़ में भी अकेले हो सकते है!!

    वैसे,आपने सही निर्णय लिया...तभी तो इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति हो पाई है........!!

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  34. keval ji, srishti me jo bhi sunder hai sresht hai akele me hi khilta hai jaise ki phool,jaise ki kavita.....
    bahut sunder likhte hai aap....

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  35. खुद का खुद के पास लौट आना कई बार बहुत अच्छा लगता है भीड मे रह कर हम खुद को भूल जाते हैं। बहुत गहरा चिन्तन। शुभकामनायें।

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  36. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना

    बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ..बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  37. नीरवता और नितांत एकांत में ही सत्य की खोज होती है

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  38. भीड का द्वंद, और परख

    शानदार अभिव्यक्ति

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  39. भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!

    bahut sundar kewal jee.........sach me aap genius ho bhai..:)

    waise beshak aap akele raho
    bahut sare aapke peechhe khud ho lenge...dekh lena...:)

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  40. भीड़ में ओर अकेलेपण में सामंजस्य बैठाना बहुत जरूरी है |

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  41. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  42. हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी ,
    फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी ।

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  43. मेरे विचार से दिव्या जी ने बहुत सही कहा । आपने जैसा
    अनुभूत किया । लिख दिया । वैसे आप केवल --राम ही हो ।

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  44. केवल राम जी ब्लागिंग से संबन्धित आपका लेख मैं
    " ब्लागर्स प्राब्लम " में आपके सचित्र सलिंक
    प्रकाशित करना चाहता हूँ । यदि आप सहमत हों ।
    तो कृपया इसी टिप्पणी के प्रोफ़ायल से " ब्लागर्स प्राब्लम "
    ब्लाग पर जाकर अन्य लोगों की तरह अपनी अनुमति रूपी
    टिप्पणी दें । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  45. केवल रामजी,
    जब अकेले होने के बारे में तब मुझे यही लगा कि, भीड़ में सब कुछ होने से तो बेहतर है नितांत अकेले होकर कुछ ना होना .

    बहुत सही

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  46. priya keval ram ji,
    sadar namskar
    rachna behad prabhavkari gambhirata ko
    samete mamsparshi hai .bhav darshan
    utkrisht hain ,par sahaj hain .ati sundar kavya ke liye sadhuvad .

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  47. मुझको न होने दिया होनी ने
    न होता मैं गर तो खुदा होता :)

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  48. भीड़ में सब कुछ होने सेतो बेहतर है नितांत अकेले होकर कुछ न होना ....

    सही कहा...
    स्वयं के लिए व्यावहारिक भी यही है...
    यही मन को सुकून देता है...

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  49. भीड़ में सब कुछ होने से तो बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना

    ज़िन्दगी के पथ पर शाश्वत आनंद तलाश कर रही है आपकी अभिव्यक्ति.
    लेकिन भीड़ में भी सुनसान होता है,और अकेलेपन में भी सबकुछ.
    ढेरों शुभ कामनाएं.

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  50. अकेलापन कितनी बड़ी बीमारी है....

    उम्दा भाव!

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  51. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!
    ==========
    bahut uchit raste hai ,sundar bhi .

    जवाब देंहटाएं
  52. भीड़ में सबकुछ होने से बेहतर है अकेले होकर कुछ ना होना ...
    कोई ये कैसे बताये की वो तनहा क्यों है !
    शानदार !

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  53. Akelepan aur soonapan me bahut sookshm antar hai.Aapki kavita akelepan ko isliye chunti hai ki wahan HONE ka ehsas hai...khone ka nahin.Uttam vichar aur kahne ka tareeka nirala.bahut bahut badhayee.

    Meri kavitaon ki sarahna ke liye bhi dhanyavaad.

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  54. अकेले काहे हो भाई
    कोई हमसफ़र साथ ले लो
    यूं अकेले रह के उदास न करो मन को
    मन तो जालिम है खा जाता है तन को
    तन को घुन मत लगाओ
    युं जियरा मत जलाओ।
    कोई हम सफ़र साथ ले लो।
    चाहे आभासी ही सही:)

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  55. भाई केवल राम जी ,आपने अकेला रह कर यह अच्छा निष्कर्ष निकाला 'कि भीड़ में सब कुछ होने से तो बेहतर है नितांत अकेले होकर कुछ ना होना ....'.आप जैसे विवेकशील , एकांति निर्मल और निरहंकारी संत से ही ब्लॉग जगत में संत समाज रचित हो रहा है. यह तो असीम आनन्द और मंगल की बात है .'मुद् मंगलमय
    संत समाजू 'यह संत समाज ही है जहाँ भीड़ से हट कर एकला चलते हुए और अपने अहं को गलाते हुए व्यक्ति अपना उत्थान कर पाता है .

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  56. कि, भीड़ में सब कुछ होने से तो बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ ना होना .
    क्या बात है केवलराम जी. कमाल है.

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  57. शानदार कविता हे मन की संवेदनाए भली प्रकार प्रकट हुई हे बधाई .....

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  58. बधाई आपको गहराई से निष्कर्ष निकालने की ....!!

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  59. अकेले रहने में बहुत सुख मिला आपको लगता है.....
    वैसे मेरे हिसाब से एकांत भी जरूरी है...

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  60. स्व को कायम रखना और उसकी एक पहचान बनाये रखना विरलों का ही काम है.

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  61. बहुत खूब .. पर कभी कभी भीड़ का हिस्सा होना अकेलेपन का एहसास दबा देता है ...

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  62. भीड़ से बचने के लिए हम अकेलापन ढूंढते हैं लेकिन वहां विचारों की भीड़ घेर लेती है।
    वैसे, पहली भीड़ से दूसरी भीड़ ज्यादा अच्छी है।

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  63. kewal ji
    bahut hi sarthak baat likhi hai aapne akele rahkar bhi kuchh na hona waqai ye apne aap me svayam ko parilkxhit karne ke saman hai .
    bahit hi gahri abhivykti
    dhanyvaad
    poonam

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  64. बहुत सुन्दर...

    अकेले में ही शायद हम अपने आप को पहचान पायें

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  65. आदरणीय श्री केवल रामजी,नमस्कार
    आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है!
    सही कहा है केवल जी
    भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!
    सुन्दर प्रयास ।
    , हमारी हार्दिक शुभ कामनाएं .........

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  66. खुद को नहीं जाना तो दुनिया का सारा ज्ञान अधूरा है.अर्थपूर्ण रचना.

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  67. आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
    महत्वपूर्ण दिन "अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस" के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर "और "आज का आगरा" की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ.. आपका आपना

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  68. फिर भी मुझे यही लगा
    कि, भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!

    जीवन दर्शन की किरणें प्रस्फुटित हो रही हैं आपकी इन पंक्तियों से !
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  69. अब बहुत अकेले रह लिये भाई । फ़िर से आ
    जाओ । ब्लाग जगत में । और नये नये विचार
    बताओ ( लिखो ) । इतनी सुस्ती ठीक नहीं भाई ।
    कुछ लिखते क्यों नहीं ।

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  70. जीवन का अपना महत्व है और खुश होकर जीना हमारा कर्तव्य ! अकेलापन महसूस करना अन्याय है उनके प्रति जो हमें प्यार करते हैं ! शुभकामनायें केवल राम !

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  71. भीड़ में सब कुछ होने से
    तो
    बेहतर है
    नितांत अकेले होकर
    कुछ न होना ..!

    bahut hi sundar hamesha ki tarah........

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  72. राम जी,..............
    बेहतर है ज़माने में अकेले रहेना...
    बाद महफिल के अकेले रहेने से...
    ज़िदगी अपनी है तो फ़ैसले भी अपने हों...
    क्या फ़र्क पडता है किसी के कुछ कहेनें से...

    बहुत ही लाजवाब रचनाऍ हैं आपकी......

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  73. बहुत ही सुन्दर कहा अपने बहुत सी अच्छे लगे आपके विचार
    फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये

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  74. बहुत ही सुन्दर कहा अपने बहुत सी अच्छे लगे आपके विचार
    फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये

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  75. बहुत ही सुन्दर कहा अपने बहुत सी अच्छे लगे आपके विचार
    फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये

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  76. बहुत ही सुन्दर कहा अपने बहुत सी अच्छे लगे आपके विचार
    फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये

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  77. Adarneeya Ramji!
    samudra ki manind shabd-roopi heere jawahrat se bhare hue aapke gyanagaar ki gahrai ko koi nahee nap sakta. u r great. thanks.

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  78. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.