14 अगस्त 2013

आजादी पर आत्मचिन्तन... 1

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किसी पक्षी को जब पिंजरे से बाहर की दुनिया में प्रवेश करते हुए देखता हूँ तो उसकी चहचहाहट का स्वर ही इतना मोहक और आनन्ददायक होता है कि मन झूम जाता है . उस पक्षी को हालाँकि उस पिंजरे में तमाम सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जो उसके जीवन को चलाने में सहायक होती हैं, लेकिन जब वह उस पिंजरे से बाहर दुनिया में प्रवेश करता है तो उसके पास एक अनन्त आकाश होता है, उसके साथी होते हैं, जिनके साथ मिलकर वह अपने तमाम जीवन के रंग पूरी शिद्दत से जीता है और जीवन को हर परिस्थिति में स्वायत बनाये रखता है. पिंजरे में लाखों सुविधाएं होने के बाबजूद भी वह प्रकृति की तरफ देखकर ही हर्षित होता है. एक पक्षी जब पिंजरे से आजाद होता है तो वह दूर तक उड़ान भरता है और फिर अपने को मुक्त महसूस करता है. जब उसे यह निश्चित हो जाए कि अब वह दुबारा इस गिरफ्त में नहीं आ सकता तो फिर कहीं आराम करता है, अपने बिछड़े हुए संगी-साथियों से मिलता है, उनके साथ अपने जीवन के अनुभव साझा करता है और उन्हें प्रकृति के साथ ही रहने की नसीहत देता है.
यह एक पक्षी के मन की स्थिति है. मैंने कई बार मनुष्यों को भी ऐसे हालातों से गुजरते हुए देखा है और जब वह उन हालातों से उभरते हैं तो वह जीवन के विषय में कुछ ठोस निर्णय लेते हैं और यहाँ तक भी सोच लेते हैं कि उनकी आने वाली पीढियां ऐसे दंशों को ना झेलें, इसलिए वह अपना जीवन रहते एक मजबूत आधार उन्हें देने की कोशिश करते हैं और अपने अनुभव उनके साथ सांझा करते हैं. जीवन का कोई भी पहलू हो उसमें आजादी की महता का वर्णन वह हर हाल में करते हैं. मतलब कि आजादी जीवन और जगत का अनिवार्य आवश्यकता है. पूरी कायनात को जब हम देखते हैं तो ऐसा लगता है कि यह आजादी के सिद्धांत का पर ही टिकी हुई है, हर एक चीज दूसरे पर आश्रित है, लेकिन वह एक दूसरे की सत्ता का अतिक्रमण कभी नहीं करती, इसलिए वह हमेशा पल्लवित और पुष्पित होती रहती है. लेकिन इन सब के बीच में मनुष्य की हालत हम देखते हैं तो स्थिति बिलकुल उलट नजर आती है और यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि आखिर किस आधार पर इसे श्रेष्ठ कहा जाता है?? 

आजादी का जहाँ तक प्रश्न है इसकी सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, लेकिन यह कहा जा सकता है कि
यह हर किसी के लिए अनिवार्य है, इससे भी बड़ी बात तो यह है कि यह हर किसी का जन्मसिद्ध अधिकार है और इसका हनन किसी भी स्तर पर किसी के द्वारा नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन दुनिया के इतिहास को जब हम देखते हैं तो यह बात उभर कर सामने आती है कि मनुष्य ने हर किसी की आजादी को छीनने की कोशिश की है और अपना रुतवा कायम करने की हमेशा उसकी मंशा रही है. उसने पशु, पक्षियों और प्रकृति की आजादी के साथ तो खिलवाड़ किया ही है लेकिन मनुष्य को भी मनुष्य के कोप का शिकार होना पडा है. जब भी किसी को अपने में थोड़ी सी ताकत का अहसास हुआ उसने दूसरे की आजादी को छीनने का प्रयास जरुर किया है, और अगर उसे सफलता मिली है तो वह आगे बढ़ा है. यह प्रक्रिया व्यक्तिगत स्तर से शुरू होकर देश और दुनिया के स्तर तक अनवरत रूप से जारी है , और आज भी हमें मनुष्य की मानसिकता के ऐसे प्रमाण मिलते रहते हैं. कहने को तो यह कहा जा रहा है कि पूरी दुनिया के एक गांव है , लेकिन यह बात भी वह लोग कह रहे हैं जो कभी गांव में रहे ही नहीं, जिन्होंने गांव की जिन्दगी जी ही नहीं, जिन्हें गांव के वातावरण का पता ही नहीं. जो लोग ऐसा कह रहे हैं उनकी मंशा तो इतनी भर है कि किस तरह से लोगों को भ्रमित करते हुए दुनिया के देशों पर अपना अधिकार जमाया जाए, किस तरह से उनकी आजादी को कब्जे में लिया जाये और ऐसे प्रयास आये दिन हो रहे हैं . 
आजादी का अगर सीधा सा अर्थ किया जाए तो इस मतलब होगा अपनी व्यवस्थाओं में जीना, लेकिन जिस भारत की आजादी का जश्न हम बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं (यह तो होना भी चाहिए) उसमें अगर हम आज तक के  (66 वर्षों) समय को गहराई से विश्लेषित करें तो पूरी सच्चाई एकदम स्पष्ट रूप से सामने आती है कि आजादी के बाद हम कोई ऐसी व्यवस्था कायम नहीं कर पाए जो हमारे देश के अनुकूल हो, बल्कि पिछले 15-20 वर्षों से तो हमने अपने प्रयासों को और तेज कर दिया है कि हम कितनी विदेशी व्यवस्थाएं इस देश में लागू कर पाते हैं और हम पुरजोर इसी कोशिश में हैं. फिर यह आजादी कैसी यह एक बड़ा प्रश्न है ? फिलहाल हम सब इस आजादी के दिवस को मनाएं परत दर परत हम फिर अपनी बात रखेंगे ..!!! शेष अगले अंक में...!!!!