12 मार्च 2012

सार्थक ब्लॉगिंग की ओर...4

गतांक से आगे.....रचनाकर्म में स्पष्टता का अपना महत्व है. हम कुछ भी सृजन कर रहे हैं लेकिन जितनी हमारी विषय और विचार के प्रति स्पष्टता होगी उतना ही हमारा सृजन बेहतर होगा. कालजयी सृजन निश्चित रूप से विषय के प्रति स्पष्टता का ही परिणाम होता है . पूर्वाग्रहों और पक्षपातों से भरा सृजन कभी भी कालजयी नहीं हो सकता. ऐसा सृजन थोड़ी देर के लिए चर्चा का विषय तो बन सकता है. लेकिन एक सच्चे और समझदार पाठक के लिए उसके कोई मायने नहीं. कुछ एक प्रतिक्रियाओं के आधार पर हम यह सोच लें कि हमारा सृजन उत्तम है तो यह हमारे लिए भी भ्रम ही होगा. अच्छे चिंतन और बेहतर लेखन के परिणाम तो वर्षों बाद ही प्राप्त होते हैं. इसलिए बेशक हमें आलोचनाओं का सामना करना पड़े लेकिन सृजन के मूल्यों को बरकरार रखने के लिए हमें अगर यह भी सहना पड़े तो कोई हर्ज नहीं

बोधगम्यता : विषय प्रतिपादन में जितना महत्व स्पष्टता का है. उससे कहीं ज्यादा महत्व विषय की बोधगम्यता का है. विषय प्रतिपादन बहुत कठिन कार्य हो सकता है, जब विषय के प्रति सोच स्पष्ट न हो. लेकिन अगर हम किसी तरह विषय प्रतिपादन में सफल हो जाते हैं तो सबसे बड़ा मुद्दा उसकी बोधगम्यता का बना रहता है. हमारी दृष्टि विषय के प्रति मौलिक भी है, जानकारी भी हमें पूरी है और हम उस विषय के प्रति पूरी तरह से स्पष्ट भी हैं. लेकिन हमने उसे इस तरह से प्रस्तुत किया है कि वह समझ से बाहर की वस्तु बना रहता है तो हमारे अच्छे तर्कों और तथ्यों का कोई लाभ पाठक को नहीं होने वाला. पाठक की अपनी समझ और सोच है किसी विषय के प्रति और उसी समझ और सोच के आधार पर वह आपके लेखन का मूल्यांकन करता है. इसलिए यह जरुरी है कि जब हम किसी विषय को अभिव्यक्ति का माध्यम बनायें तो उसके प्रत्येक पहलू पर गहराई से चिंतन करें. जब तक हम विषय की बोधगम्यता पर ध्यान नहीं दे पायेंगे तो अच्छे से अच्छे तर्क और तथ्य भी समझ के स्तर पर टेढ़ी खीर बने रहेंगे. कई बार यह देखने में आता है कि रचनाकार ने बहुत अच्छे विषय का चुनाव किया है, लेकिन उसकी विषय प्रतिपादन शैली इतनी असमंजस भरी होती है कि सब कुछ पढने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता. हालाँकि पाठक उस विषय में जानना चाहता है, लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी वह समझ नहीं पाता कि क्या कहा गया है. हालाँकि तथ्य और तर्क वहां पर पूरी तरह से अभिव्यक्त किए गए होते हैं. मेरा अपना निजी अनुभव है कि कई अच्छे रचनाकारों की पुस्तकों को सिर्फ और सिर्फ बोधगम्यता की कमी के कारण ही नहीं पढ़ा गया. हालाँकि यह हो सकता है कि मेरे लिए जो कुछ कठिन रहा हो वह किसी के लिए सरल भी तो हो सकता है. लेकिन विषय को ग्राह्य बनाने में विषय की बोधगम्यता निश्चित रूप से महती भूमिका निभाती है और बोधगम्य विषय अपेक्षा से अधिक लाभ पाठक को दे जाता है.

विषय अनुकूल भाषा : भाषा भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम है. भाव अव्यक्त रह जाता अगर भाषा नहीं होती. हालाँकि बहुत से माध्यम हैं भावों को अभिव्यक्त करने के, लेकिन भाषा से सशक्त माध्यम कोई नहीं हो सकता. मानव ने जितना भी विकास किया है उसमें भाषा की महता को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. विकास के हर एक मानक में भाषा की महता बहुत महत्वपूर्ण है. यह भी सच है कि आज भाषा ने विषय के अनुकूल अपना विकास किया है . हर विषय की अपनी शब्दावली है और उसी शब्दाबली के आधार पर उस विषय ने भी नए आयाम स्थापित किए हैं. विषय के प्रतिपादन में भाषा महती भूमिका निभाती है. जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं जिसे भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता. अनुभूति को अभिव्यक्त करना, दृश्य को अभिव्यक्त करना, सोच को अभिव्यक्त करना, समझ को अभिव्यक्त करना, भाषा के ना जाने कितने आयाम है अभिव्यक्ति के स्तर पर, और इन सभी आयामों ने भाषा को बहुत व्यापक विस्तार दिया है. जितनी-जितनी हमारी आवश्यकता और समझ बढ़ी भाषा ने उसी अनुरूप अपना विकास किया और यह निरंतर विकास की राह पर अग्रसर है. 

विश्व की प्रत्येक भाषा का मंतव्य तो स्वस्थ संवाद के माध्यम से जीवन को आनंदमय बनाना रहा है,
सभ्यता-संस्कृति का विकास करना रहा है और इन मंतव्यों को पूरा करने में हर भाषा सक्षम भी है. लेखन के स्तर पर जब हम भाषा की बात करते हैं तो इसका प्रयोग करना और भी सजगता का विषय बन जाता है. क्योँकि हम जो कुछ भी अनुभूत करते हैं वह अभिव्यक्त तो भाषा के माध्यम से ही होता है. भाषा के दृष्टिकोण से अगर हिंदी ब्लॉगिंग की बात करें तो यहाँ एक नयी शब्दावली का विकास होता नजर आ रहा है. लेकिन अभी तक इसको अंतिम स्वरूप मान लिया जाये यह कहना तर्कसंगत नहीं लगता. या कोई यह कह दे कि हिंदी ब्लॉगिंग अपनी शब्दावली में भावों को अभिव्यक्ति देती है तो यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. हालाँकि इस दिशा में सम्भावना देखी जा सकती है, लेकिन भाषा का विकास या शब्दों का निर्माण करना कोई आसान प्रक्रिया नहीं है, यह एक विज्ञान है और विज्ञान हमेशा तर्क और तथ्य के आधार पर  कार्य करता हुआ किसी निष्कर्ष तक पहुँचता है. लेकिन भाषा, विज्ञान से भी आगे की चीज है, विज्ञान से भी दो कदम आगे का आविष्कार है, इस कथन के पीछे मेरी यह मान्यता है कि भाषा अक्षरों से बनती बेशक है लेकिन उन अक्षरों के निर्माण और संयोजन से जो शब्द बनते हैं उनमें भाव और अनुभूति भी समाहित होती है. हिंदी भाषा में ऐसे अनेकों शब्द हैं जहाँ पर यह तथ्य पूरी तरह से उभरकर सामने आता है कि जब हम किसी भाव को अभिव्यक्त करना चाह रहे हैं और हमने शब्द का उच्चारण कर दिया तो एक बिम्ब स्वतः ही उभर आता है जो कि भाषा के वैज्ञानिक पक्ष को उभार कर सामने लाता है. इसलिए किसी भी विषय को अभिव्यक्ति देते समय भाषा और शब्दों का चयन बहुत चुनौती भरा कार्य होता है . लेकिन जब हमें विषय पूरी तरह से स्पष्ट है तो फिर भाषा कोई चुनौती नहीं. जैसे कबीर द्वारा अपने उपदेशों के लिए प्रयुक्त की गयी भाषा के विषय में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है  कबीर वाणी के डिक्टेटर थे, भाषा पर उनका जबरदस्त अधिकार था’ निश्चित रूप से कबीर ने अपने विषय को जन-जन तक पहुंचाने के लिए भाषा को सशक्त माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया. लेकिन ब्लॉगिंग में कई बार टिप्पणी या पोस्ट में अभद्र शब्दों का प्रयोग अखरता है, और जब कहीं भी ऐसा कुछ देखता हूँ तो उस व्यक्ति की भाषा के प्रति नासमझी पर दया का भाव पैदा हो जाता है.  

शैली की रोचकता : भाषा अगर भावों को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है तो शैली उन भावों को रोचकता से पाठकों तक पहुंचाने का माध्यम है. हालाँकि सामान्य तौर पर पाठक शैली पर ध्यान नहीं देते. लेकिन जैसे ही हम रचनाकार की शैली को पहचान जाते हैं तो उस रचनाकार को समझना हमारे लिए आसान होता है. भारतीय काव्यशास्त्र में शैली पर व्यापक चर्चा की गयी है और पाश्चात्य समीक्षा जगत में तो यह कहा जाता है कि ‘शैली ही व्यक्तित्व है’ यानि शैली के माध्यम से ही रचनाकार के विचार पाठक तक पहुंचते हैं और पाठक उन विचारों को शैली के माध्यम से ही समझने का प्रयास करता है. शैलियाँ के भी कई प्रकार हैं. जैसे वर्णात्मक, विवरणात्मक, विश्लेषणात्मक, आत्मकथात्मक आदि और इसी तरह निबंध में समास शैली, व्यास शैली, धारा प्रवाह शैली और तरंग आदि शैलियाँ  प्रयोग की जाती हैं. कविता का तो अपना एक अलग से शास्त्र है ही जहाँ पर कविता के सभी पक्षों पर विचार किया गया है. रस, अलंकार, रीतिध्वनि आदि पर बहुत व्यापक रूप से विचार किया गया है, और यह विचार रचना की शैली के रूप को समृद्ध करने के लिए किया गया है. हालाँकि भावों को किसी नियम या सीमा में बांधना मुश्किल होता है लेकिन फिर भी अगर हम ऐसा प्रयास नहीं करेंगे तो सब कुछ बिखर जाएगा. ब्लॉगिंग में शैली का एक अपना महत्व है. हालाँकि यहाँ सब कुछ साहित्य के सिद्धांतों के अनुरूप रचा जा रहा है. इसलिए हर कोई ब्लॉगर होने के बजाये लेखक होने का भ्रम पाले है. लेकिन एक बात ध्यान देने वाली है. 

लेखन और ब्लॉगिंग के सृजन में व्यापक अंतर है. ब्लॉगर अपने आप में सृजन से लेकर प्रकाशन और विज्ञापन तक एक संस्था है. लेकिन लेखक के साथ ऐसा नहीं है. इसलिए निश्चित रूप से हमें ब्लॉगिंग और साहित्य सृजन के सम्बन्ध में ध्यान देना होगा. अगर हम इस अंतर को समझ जाते हैं तो निश्चित  रूप से किसी भी पोस्ट को शैली के स्तर पर रोचक बनाने का प्रयास कर सकते हैं. ब्लॉगिंग में ब्लॉगर किसी भी विषय को त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में अभिव्यक्त कर सकता है, लेकिन लेखन का अपना स्तर है. यहाँ पाठक की प्रतिक्रिया तुरंत मिलती है और दूसरी तरफ साहित्य में ऐसा नहीं है. ब्लॉगिंग में हर कोई टिप्पणी करने की लालसा रखता है, लेकिन साहित्य में ऐसा प्रयास कोई-कोई ही करता है, और वहां की गयी समीक्षा निश्चित  रूप से बहुत उतरदायी भरा कार्य होता है. शैली की रोचकता निश्चित रूप से लेखक के व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करती है और ब्लॉगिंग में ब्लॉगर की अंतरात्मा उसकी पोस्ट के माध्यम से अभिव्यक्त होती है. ब्लॉगिंग का स्वभाव ही है स्पष्ट, त्वरित और उन्मुक्त अभिव्यक्ति और निश्चित रूप से इस आधार पर देखें तो ब्लॉगिंग की शैली भिन्न होनी ही स्वाभाविक है. 

ब्लॉगिंग का अद्भुत संसार विविधताओं भरा है. किसी भी अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं. मैंने एक छोटा सा प्रयास किया अपनी समझ के आधार पर...आपकी सकारात्मक टिप्पणियाँ और प्रोत्साहन इस दिशा में और गंभीरता से सोचने को प्रेरित करेगा...!

24 टिप्‍पणियां:

  1. यहां बहुत से लोगों के अपने अपने एजेंडें हैं. जहां तक भाषा की बात है जिसके थाली में जितना है, जीम कर चला जाता है

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  2. यही पूरी श्रृंखला सभी के लिए उपयोगी रही है .... सार्थक चिंतन प्रस्तुत करती पोस्ट....

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  3. जरुरी जानकारी से परिपूर्ण |
    आभार ||

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  4. बहुत अच्छा लिख रहे हो केवल राम जी ...
    शुभकामनायें आपको !

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  5. बहुत बढ़िया सार्थक चिंतन योग्य प्रस्तुति,के लिए बधाई,......

    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...

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  6. उपयोगी बाते ! सार्थक प्रयास....

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  7. लेकिन भाषा , विज्ञान से भी आगे की चीज है , विज्ञान से भी दो कदम आगे का आविष्कार है
    बिलकुल सही कहा.
    बहुत अच्छी रही यह पोस्ट भी .काफी पॉइंट नोट कर लिए हैं.

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  8. ब्लाग सृजन में आपकी ये पोस्टें काफी कुछ सीखा गयी... सभी पोस्ट बहुत ही उपयोगी एवं जानकारीयुक्त रहीं... सुंदर प्रस्तुति.

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  9. सबके लिये बार बार पठनीय..

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  10. ब्लोगिंग के बारे में इस जानकारी का लाभ सभी को मिलेगा अगर वो इमानदारी से इसे पढेंगे ... सार्थक चिंतन ...

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  11. बहुत ही उपयोगी एवं सार्थकता लिए हुए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ..

    कल 14/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
    आपके सुझावों का स्वागत है .. धन्यवाद!


    सार्थक ब्‍लॉगिंग की ओर ...

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  12. बहुत ही बेहतरीन रचना....

    मेरे ब्लॉग
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  13. बेहतर ब्लॉग लेखन के लिए आवश्यक सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर बहुत अच्छे ढंग से प्रकाश डाला है आपने. नए और पुराने सभी ब्लॉग लेखकों के लिए उपयोगी मार्गदर्शक सिद्ध होगी आपकी यह सम्पूर्ण श्रंखला...बहुत अच्छा और सराहनीय प्रयास... सार्थक आलेख के लिए आभार और शुभकामनायें

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  14. ब्लॉगिंग के अद्भुत संसार के नायाब हीरे की कलम से निकली.. अनमोल आलेख..

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  15. ब्लॉगिंग से सम्बंधित हर विषय पर विस्तार से लिखा आपने ...
    उपयोगी श्रृंखला !

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  16. बढ़िया चर्चा केवल जी. थोड़े उदहारण के साथ चर्चा करेंगे तो अच्छा रहेगा...

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  17. उपयोगी जानकारी .
    सुंदर प्रस्तुति

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  18. बहुत अच्छी प्रस्तुति!

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  19. सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...

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  20. कालजयी सृजन निश्चित रूप से विषय के प्रति स्पष्टता का ही परिणाम होता है . पूर्वाग्रहों और पक्षपातों से भरा सृजन कभी भी कालजयी नहीं हो सकता . ऐसा सृजन थोड़ी देर के लिए चर्चा का विषय तो बन सकता है .लेकिन एक सच्चे और समझदार पाठक के लिए उसके कोई मायने नहीं ....
    सार्थक बात है...
    सार्थक ब्लोगिंग की श्रंखला बढ़िया रही एक दो लेख बीच में नहीं पढ़ सका हूँ.. लेकिन पढूंगा जरुर....

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.