18 फ़रवरी 2012

सार्थक ब्लॉगिंग की ओर...2

गतांक से आगे....जैसे ही सृजन का क्रम प्रारंभ हुआ वैसे ही उसे और बेहतर बनाने के लिए कुछ मूल बिंदु भी निर्धारित किये गए. यह आप किसी भी क्षेत्र में देख सकते हैं. संगीत, साहित्य, शिल्प, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष, विज्ञान, योग आदि  ना जाने कितने आयाम हैं सृजन के, सभी के अपने  नियम है और उन्हीं नियमों के तहत वह आगे बढ़ते हैं, और जो उन नियमों का अनुसरण करते हुए नव सृजन करता है. वह उस क्षेत्र का ज्ञाता माना जाता है. इस पोस्ट के पहले भाग पर टिप्पणी करते हुए आदरणीय राहुल सिंह जी ने टिप्पणी करते हुए लिखा है ‘ब्‍लागिंग का स्‍वभाव और प्रकृति की सीमा व्‍यापक है, निर्धारित करना कठिन जान पड़ता है’. काफी हद तक इनकी यह बात प्रासंगिक प्रतीत होती है. ब्लॉगिंग के स्वभाव और प्रकृति को समझना कठिन जरुर हो सकता है लेकिन असंभव नहीं और ऐसा कुछ भी नहीं जो हमारी समझ से बाहर हो, क्योँकि किसी नयी चीज को समझना मुश्किल हो सकता है.

लेकिन जब हम उससे प्रत्यक्ष ताल्लुक रखना शुरू करते हैं तो निश्चित रूप से हम उसके प्रति संवेदनशील
होते हैं और वहीँ से हमारी समझ विकसित होना शुरू होती है, और अगर हम अनमने ढंग से जुड़े हैं या कहीं पर हमारा स्वार्थ जुड़ा है तो हम उस स्वार्थ की पूर्ति करने में सफल तो हो सकते हैं लेकिन सार्थकता का जहाँ तक सवाल है वह नहीं हो सकता. इसे यूँ भी समझाया जा सकता है. जैसे कि टिप्पणी या लगातार लिखना किसी के लिए महत्वपूर्ण है तो कुछ भी लिखकर वह टिप्पणी हासिल कर सकता/सकती है. टिप्पणी के लिहाज से तो उसने सफलता प्राप्त कर ली लेकिन उस लिखे हुए की सार्थकता कितनी है यह बात बहुत महत्वपूर्ण है (मात्र संकेत किया है कृपया अन्यथा न लें) सफलता और सार्थकता में अंतर जान पड़ता है और उस अंतर को समझे बिना हम किसी दिशा में आगे नहीं बढ़ सकते. भाव और कर्म के दृष्टिकोण से सफलता के अनेक बिंदु हो सकते हैं. सफलता के मानक व्यष्टिगत और समष्टिगत दोनों होते हैं, लेकिन सार्थकता के मानक हमेशा समष्टिगत रहे हैं. सफलता के मानक निरपेक्ष और सापेक्ष दोनों हो सकते हैं लेकिन सार्थकता के मानक सापेक्ष ही रहे हैं. सफलता और सार्थकता पर ऐसी बहुत सी विचारणीय बाते कही जा सकती हैं लेकिन यहाँ सिर्फ संकेत रूप में कहूँ तो बेहतर है. सफल और सार्थक ब्लॉगिंग के लिए कुछ बिंदु हो सकते हैं, अगर हम उन्हें ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं तो निश्चित रूप से हम काफी हद तक बेहतर योगदान कर सकते हैं. हालाँकि यह सभी  बिन्दु मेरा एक दृष्टिकोण हैं....और इसे आगे बढाने में आप अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं :-

सृजन की प्राथमिकता : सृजन मानवीय स्वभाव है. लेकिन सृजन करते वक़्त सर्जक को यह सोचना अवश्यम्भावी हो जाता है कि वह जिस दिशा या विधा में आगे बढ़ रहा है वह समाज और देश के लिए कितनी सार्थक है. उसकी दृष्टि क्या? उसका दृष्टिकोण क्या है? उसे क्या नया करना है? किस चीज को आगे बढ़ाना है. उस विधा में क्या सार्थक है और समय के साथ-साथ उसे उसमें क्या निरर्थक लगता है? ऐसे बहुत से प्रश्न है जो सृजन से पहले सर्जक के मन में कौंधने चाहिए. दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि क्या सच में वह-वह करना चाहता है जिसके विषय में वह सोच रहा है. निश्चित है व्यक्ति किसी काम को करने से पहले अपना लाभ भी सोचता है. यह व्यक्ति का स्वभाव है. उसे उस सृजन से क्या लाभ होने वाला है यह भी विचारणीय है. यह सब कुछ सोचने के बाद उसे अपनी सक्षमता पर भी ध्यान देना होगा. क्या जो कुछ वह सोच रहा है उसे कर पाने में वह सक्षम है या नहीं, उसकी व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक आदि स्थितियां उसे यह सब कुछ करने के लिए सहायक हैं या नहीं. हालाँकि सृजन इन सबका मोहताज नहीं होता लेकिन ऐसा सर्जक भी तो कोई-कोई ही होता है जो सब कुछ दावं पर लगाकर सिर्फ और सिर्फ सृजन के लिए जीता है. सृजन ही उसका ‘धर्म’ बन जाता है. लेकिन बहुतर ऐसा नहीं होता इसलिए इन स्थितियों पर भी ध्यान दिया जाये तो बेहतर है.

सृजन का एक पहलू यह भी है कि हम किस विधा को अपनाना चाहते हैं, और उस विधा में हम कितना जानते हैं पूर्ववर्तियों के बारे में जो हमसे पहले इस दिशा में अग्रसर हैं. उनकी क्या उपलब्धियां हैं, क्या कुछ उन्होंने किया है. जब हम किसी दिशा में कदम बढ़ाते हैं तो यह सब जानकारी हमारे लिए अपेक्षित हो जाती है. अगर हम थोडा सा इस बिंदु पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं तो निश्चित रूप से हम अपनी एक महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं और उस विधा में नव सृजन के द्वारा उसके किसी महत्वपूर्ण पक्ष को आगे बढ़ा सकते हैं. जिस निश्चित विधा की तरफ आप बढ़ रहे हैं उस विधा के भी अपने कई आयाम हैं और उनमें से आप किसी एक का चुनाव करके भी सार्थकता को लेकर आगे बढ़ते हैं तो आपका योगदान निश्चित रूप से रेखांकित करने योग्य हो जाता है. इतिहास में जिन व्यक्तियों का नाम आज दर्ज है उनके व्यक्तित्व में यह विशिष्ट गुण देखने को मिलता है. भाव के स्तर पर भी कई आयाम देखे जाते हैं जिनको आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण होता है. लेकिन यह सब कुछ करने से पहले आपको सृजन की प्राथमिकता को तय करना होगा और जैसे ही आप यह तय करने में सक्षम हो जाते हैं आपके सामने सृजन के नए आयाम खुलते जाते हैं और फिर आप निर्बाध गति से आगे बढ़ते हुए ऊँचाइयों को प्राप्त करते हैं. लेकिन सृजन के बदले किसी पुरस्कार की कामना या किसी चर्चा में आने के लिए सृजन करना एक निम्न पहलू है. आपके सृजन का पहला और अंतिम पुरस्कार आपके वह प्रशंसक हैं जिन्हें आपसे व्यक्तिगत रूप से कोई लेना देना नहीं लेकिन फिर भी वह आपके लिए दिल में सम्मान रखते हैं. अब हमें यह निर्धारित करना होगा कि हमारा सृजन का मुख्य पहलू क्या है??? मात्र और मात्र सार्थक सृजन, चर्चा के लिए सृजन या पुरस्कार के लिए सृजन? या फिर सृजन ही मेरा धर्म है. जैसे कहा जाता है कि कला-कला के लिए, कला जीवन के लिए. शेष अगले अंक में...!!!

35 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक लेख...
    टिप्पणियां पाने से खुशी तो मिलती है...मानव स्वभाव है...
    मगर हम स्वयं आपने आलोचक बने तो रचनात्मकता निश्चित ही बनी रहेगी..

    सादर..

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  2. अब हमें यह निर्धारित करना होगा कि हमारा सृजन का मुख्य पहलू क्या है ??? मात्र और मात्र सार्थक सृजन , चर्चा के लिए सृजन या पुरस्कार के लिए सृजन ? या फिर सृजन ही मेरा धर्म है . जैसे कहा जाता है कि कला कला के लिए , कला जीवन के लिए .

    सही बात कही केवल राम ……………ये तो निर्धारित करना ही होगा ।

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  3. बहुत ही सही बात बताई है आपने
    सार्थक प्रस्तुति:-)

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  4. मात्र सृजन को ही धर्म मान कर चलने वाले लेखक आज के जमाने में मिलने मुश्किल है...सृजन के पीछे कोई न कोई उद्देश्य जरुर होता ही है!...देखना यह है कि उद्देश्य लेखक को किसी भी तरह का लाभ पहुंचाने के बावजूद भी पाठक गण को भी लाभकारक सिद्ध हो!...बहुत सुन्दर विषय!...धन्यवाद!

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  5. आपके सृजन का पहला और अंतिम पुरस्कार आपके वह प्रशंसक हैं जिन्हें आपसे व्यक्तिगत रूप से कोई लेना देना नहीं लेकिन फिर भी वह आपके लिए दिल में सम्मान रखते हैं .
    मेरे ख़याल से यही मुख्य बात है.

    टिप्पणियों पर बहस बहुत हो चुकी है.वह सार्थक लेखन की गारंटी नहीं - सहमत.
    परन्तु लेखन के लिए हौसलाफजाई का माध्यम अवश्य ही हैं.
    अंत में - ब्लॉग्गिंग को ब्लॉग्गिंग ही रहने दो .....:)
    कुल मिलाकर बहुत अच्छा विश्लेषण और सार्थक लेखन.

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  6. आपकी बातों से सहमत, सबके लिये पठनीय

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  7. sahi disha ko prerit karata lekh ....bahut hi prabhavshli....abhar keval ji .

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  8. बहुत सही कहा है आपने .. सार्थक व सटीक लेखन ...।

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  9. सार्थक ब्लोगिंग को उठाने का सार्थक प्रयास

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  10. छोटी सी उम्र में इतनी गहरी सोच रखते हैं आप ।
    शानदार !

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  11. यह विश्लेषण बहुत मूल्यवान और शोधपरक है। जारी रखिए।

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  12. सार्थक बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,पठनीय आलेख....

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  13. अवधारणा और विवरणमूलक चर्चा के साथ बिंदुवार और भी स्‍पष्‍ट किया जाना आवश्‍यक है. दूसरे शब्‍दों में ब्‍लागिंग और ब्‍लागेतर लेखन में क्‍या कोई खास, साफ और ठोस फर्क बताया जा सकता है.

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  14. ब्लागिंग तो रचनाकार को विधा और शैली चुनने के साथ साथ मकसद का विस्तार भी देताहै। यह तो क्षितिज है :)

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  15. यदि विकास्काल में ही उसके कायदे निर्धारित हो जाएँ तो विकास सही दिशा में होता है अन्यथा दिशाहीन विकास रचनात्मकता खो बैठता है और कुछ समय पश्चात ही निरर्थक लगने लगता है.

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  16. वो वाली कहानी याद आ गयी...कि ' कालिदास ' तो हर गली ,मुहल्ले या नुक्कड़ में है.. या सब अपने आप को कालिदास से कम समझना ही नहीं चाहते.. अच्छा लिखा है..

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  17. सुन्दर, सार्थक व बेहतरीन लेख.
    लिखते रहिये--चलते-चलते .

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  18. सबके लिए मंथन करने योग्य बातें....... आपकी कही बाते पूरी तरह सही हैं.....

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  19. सार्थक लिखा है ... मन का और मन के भाव का विश्लेषण किया है ... पर हमेशा मन की प्रवृति एक सी नहीं रहती ... पर ये जरूरी है की लंबे समय तक रहने के लिया स्राजनात्मकता जरूरी है ...

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  20. आपके सृजन का पहला और अंतिम पुरस्कार आपके वह प्रशंसक हैं जिन्हें आपसे व्यक्तिगत रूप से कोई लेना देना नहीं लेकिन फिर भी वह आपके लिए दिल में सम्मान रखते हैं .

    शुक्रिया .....
    हमें यही बात ध्यान में रखनी चाहिए ................

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  21. सार्थक पोस्ट, आभार.
    मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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  22. bahut hi sarthak baat likhi hai aapne bahut hi achha laga ye post------
    poonam

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  23. सार्थक श्रृंखला ...सीखने और सोचने के लिये काफी कुछ है शुक्रिया

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  24. बेनामी22/2/12 9:02 am

    check this http://drivingwithpen.blogspot.in/2012/02/another-award.html

    an award for you

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  25. मात्र और मात्र सार्थक सृजन , किसी भी चर्चा के लिए सृजन या पुरस्कार के लिए सृजन नहीं ... सृजन ही हमारा धर्म है .
    " कला - कला के लिए , कला जीवन के लिए "
    सार्थक विश्लेषण के लिए आभार... सहमत हूँ

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  26. मैनेजमेंट की शुरुआती पढ़ाई में एक चैप्टर ’एफ़िशियेंट’ और ’इफ़ैक्टिव’ पर हुआ करता था, वैसा ही कुछ ’सफ़ल’ और ’सार्थक’ के बारे में समझा जा सकता है। प्राथमिकताएं सबकी अपनी अपनी होती हैं।
    अच्छा लगा पढ़ना।

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  27. सार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  28. चलते चलते ही अपनी रिसर्च के महत्वपूर्ण पक्ष की जानकारी हमे भी कराते जा रहे हैं आप,केवल राम जी.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  29. बेशक टिप्पणियां किसी भी रचना को आयाम देते हैं किन्तु सिर्फ टिप्पणियों की संख्या के आधार पर रचना का मुल्यांकन नहीं किया जा सकता है.....
    सुंदर प्रस्तुति...... स:परिवार होली की भी हार्दिक शुभकामनाएं.....

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  30. मात्र और मात्र सार्थक सृजन , चर्चा के लिए सृजन या पुरस्कार के लिए सृजन ? या फिर सृजन ही मेरा धर्म है . जैसे कहा जाता है कि कला - कला के लिए , कला जीवन के लिए . ....


    इन सब से हट कर बस एक ही बात ...सृजन ...कभी नहीं रुकता...उसे सबके सामने आना ही हैं...किसी का पहले या किसी का बाद में ...बिना किसी उम्मीद के ...बिना किसी इच्छा के .....

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  31. मात्र और मात्र सार्थक सृजन , चर्चा के लिए सृजन या पुरस्कार के लिए सृजन ? या फिर सृजन ही मेरा धर्म है . जैसे कहा जाता है कि कला - कला के लिए , कला जीवन के लिए . ....


    इन सब से हट कर बस एक ही बात ...सृजन ...कभी नहीं रुकता...उसे सबके सामने आना ही हैं...किसी का पहले या किसी का बाद में ...बिना किसी उम्मीद के ...बिना किसी इच्छा के .....

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.