06 दिसंबर 2011

चतुर्वर्ग फल प्राप्ति और वर्तमान मानव जीवन...3

गत अंक से आगे....हमारी तृष्णा जीर्ण नहीं हो रही है बल्कि हम ही जीर्ण होते जा रहे हैं. लेकिन मानवीय स्वभाव है कि वह इस बात को महसूस ही नहीं कर पाता और जीवन भर अपने मन की इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए तरसता रहता है. मानव को पहले तो अपनी इच्छा और आवश्यकता में अंतर महसूस होना चाहिएकि उसकी इच्छा क्या हैऔर आवश्यकता क्या हैआवश्यकता की पूर्ति के लिए दिन रात प्रयास जरुरी हैंलेकिन इच्छा?? यह किसी भी स्तर पर पूरी होने वाली नहीं है यह तो बढती ही जाती है और एक दिन ऐसा होता है जब हम इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने जीवन से भी हाथ धो बैठते हैं. अर्थ तो हमारे जीवन का आधार है, लेकिन उसी सीमा तक जहाँ तक वह हमारे लिए सुखदायी है. वर्ना अर्थ-अनर्थ करने में देर नहीं लगाताकबीर साहब ने सुन्दर शब्दों में कहा है ‘माया महाठगिनी हम जानीतिरगुन फांसी लिए बोले माधुरी वानी’ लेकिन यहाँ ‘माया’ शब्द बहुत व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है. तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अर्थ बेशक हमारे जीवन का आधार है लेकिन सिर्फ उसी सीमा तक जहाँ तक वह हमारी मानसिक शान्ति में बाधक नहीं बनता. इसलिए हमारे संत यही कहते हैं कि साईं इतना दीजिये जामें कुटुम्ब समाय’ और यही अर्थ का सही मंतव्य है. नहीं तो अनुभव के आधार पर सिकंदर ने भी कहा था कि ‘मेरे दोनों हाथ मेरी अर्थी से बाहर रखें जाएँ, ताकि दुनिया यह जान सके कि विश्व विजेता सिकंदर आज खाली हाथ जा रहा है’. तो यह है अर्थ??? बाकी मंतव्य अपना-अपना सोच अपनी-अपनी.
जीवन के चतुर्वर्ग में काम को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. हमारे जीवन दर्शन में काम की महता का वर्णन बहुत व्यापक तरीके से किया गया है. अगर इसे जीवन सम्बन्धों और सृष्टि का आधार कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. आचार्य चाणक्य ने ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र  में धर्मअर्थ और काम का स्मरण इन शब्दों में किया है ‘धर्मार्थकामेभ्यो नमः’ (1) अर्थात मैं धर्मअर्थ और काम को नमस्कार करता हूँ. काम क्या हैयह एक विचारणीय प्रश्न हैआज तक इस बात पर गहनता से विचार होता आया है. आचार्य वात्सयायन को काम विषयक ग्रन्थ की रचना के कारण संसार में बहुत ख्याति प्राप्त हैअपने ग्रन्थ कामसूत्र के विषय में वह कहते हैं:
   रक्षन्धर्मार्थकामानां स्थितिं स्वां लोकवर्तिनीम।    
अस्य शास्त्रस्य तत्वज्ञो भवत्येव जितेन्द्रियः।।
इस शास्त्र के अनुसार काम तत्व का ज्ञाता व्यक्ति धर्मअर्थकाम और लोकाचार को जानने वाला बनता है तथा अपनी इन्द्रियों पर संयम प्राप्त कर लेता है. इस शास्त्र को जानने वाला कभी व्यभिचारी नहीं हो सकता. यह सही मन्तव्य है उनके ग्रन्थ का लेकिन हम कितना समझ पाए हैं उनके मंतव्य को? भारतीय मनीषयों ने काम को एक महती शक्ति के रूप में माना है जो दो रूपों में प्रकट होती है पहली बाह्य रूप में ‘भौतिक कार्यों के रूप में प्रकट होने वाली’ और दूसरी ‘आन्तरिक रूप में अंतःकरण की क्रियाओं द्वारा प्रकट होने वाली चैतन्य शक्ति’. अथर्ववेद में काम को सर्वप्रथम देवोंपितरों तथा मनुष्यों से पूर्व उत्पन्न होने वाला माना गया है. ‘कामस्तदग्रे समवर्तत’ (1) काम वास्तव में चितयंत्र को चलाने वाली मन की अद्भुत शक्ति है और जो व्यक्ति इसे सही परिप्रेक्ष्य में जीता है. वह वास्तव में जीवन की सार्थकता सिद्ध कर लेता है. लेकिन दिन रात काम विषयक चिंतन करने वाला व्यक्ति कभी भी जीवन में सफल नहीं हो सकता. ऋषियों ने हजारों वर्षों के बाद काम विषयक चिंतन करने वाले व्यक्तियों के लिए यह निष्कर्ष निकाला कि ‘न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति अर्थात यदि वर्षों तक काम का उपभोग किया जाए तो भी काम शांत नहीं होता. अग्नि में आहुति डालने से वह बुझती तो नहीं किन्तु अधिकाधिक प्रज्वलित जरुर होती है. इसलिए काम का चिंतन और उसकी तरफ प्रवृत रहने वाला हमेशा अधोगति को प्राप्त होता है. हालाँकि यह भी एक अनुभूत सत्य है कि काम का आनंद ब्रह्म आनंद के सामान हैबेशक क्षणिक ही सही लेकिन आनंद तो प्राप्त होता ही है. लेकिन यह आनंद तब ही प्राप्त होता है जब दो विपरीत लिंगी मनवचनभावना और शरीर से एक दुसरे को समर्पित होते हैं. काम का मंतव्य सृष्टि का निर्माण है ना कि भोग. भोग और वासना के रूप में काम जीवन के लिए कष्टकारी है. यानि इसके परिणाम बेहतर नहीं हैऔर जीवन और सृष्टि के आधार के रूप में काम से बढकर कोई आनंद नहीं है. 
लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्थिति बहुत दयनीय है. आये दिन मानव की करतूतों का जिक्र होता रहता है. एक बात तो हम समझ लें कि जो मनुष्य जीवन की मूल इन्द्रियों को दबाने का ढोंग करता है उससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं हो सकता. हाँ उन पर नियंत्रण जरुर किया जा सकता है और यह आवशयक भी है. हम सांस लेना कैसे छोड़ सकते हैं? फूलों को देखकर किसका मन हर्षित नहीं होता. इसलिए किसी नर-नारी के एक दूसरे के आमने-सामने आने पर आकर्षण स्वाभाविक है और यह प्राकृतिक प्रक्रिया है. हमें जीवन सन्दर्भों को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की आवशयकता है और जो जीवन का आधार हैं, उसे सही ढंग से क्रियान्वित करने की जरुरत है. यही काम की महता है.
मोक्ष के विषय में क्या कहूँ? यहाँ इतने विचारइतनी मान्यताएं है कि किसी का भी अंत नहीं है. लेकिन जहाँ तक मैंने अनुभव किया है मोक्ष जीवन की सहजता का नाम है. हम मोक्ष को जीवन से परे मानते हैं. लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है. जीव शरीर में रहते हुए ही मोक्ष का अनुभव कर सकता हैजीवन से परे नहींजीवन रहते हुए हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं, जीवन के बाद नहींतो फिर हम कैसे कहते हैं कि जीवन के बाद मोक्ष है. गीता में स्पष्ट उल्लेख है कि:
      वासांसि जीर्णानि यथा विहायनवानि गृह्णाति नरो ऽपराणि।             
         तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।  (2/22/72) 
अर्थात जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता हैउसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ शरीरों को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करती है. इससे यह स्पष्ट होता है कि एक शरीर को छोड़ने के बाद आत्मा नया शरीर धारण करती है. यह उल्लेख लगभग सभी धर्म ग्रंथों में मिल जाता है, और हमें इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि जीवन से परे मोक्ष नहीं है और मोक्ष का मतलब है, आवागमन के चक्कर से मुक्त होना और आवागमन के चक्कर से कैसे मुक्त हुआ जा सकता है?? यह विचारणीय है. जब तक आत्मा शरीरों में है तब तक वह बंधन में है और जैसे ही शरीरों का बंधन टूटा आत्मा की मुक्ति हुईलेकिन आत्मा जब तक परमात्मा में विलीन नहीं हुई तब तक मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकती. इसलिए इस जीवन का लक्ष्य अगर कहीं बताया गया है तो वह है परमात्मा की प्राप्ति करते हुए आत्मा की मुक्ति. उसे बंधन रहित करना है, जैसे ही आत्मा के बंधन कटे उसे मोक्ष मिल गया.
लेकिन आज यह धारणा भी कहीं पर बदलती जा रही हैहम धर्म और अध्यात्म को ही नहीं समझ पाए. पूजा और कर्मकांड में अंतर नहीं कर पाए और जीवन को बिना लक्ष्य के जी रहे हैं. हमें गहरे आत्मविश्लेषण की आवश्यकता है, और जब हम सभी मंतव्यों को सामने रखकर जीवन जीयेंगे तो निश्चित रूप से इनसान खुदा का प्रतिबिम्ब तो है ही उसमें वह गुण भी प्रकट हो जायेंगे और इस सुन्दर सी धरती पर रहने वाला खुदा का रूप इनसान खुद खुदा से कम नहीं होगा. किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है:
                                           आदम खुदा नहीं,
                                           लेकिन खुदा के नूर से आदम जुदा नहीं।
आज जरूरत है खुद को पहचानने कीहमारे सामने जो हमारे जीवन के मानक है उन्हें क्रियान्वित करने की. हालंकि ऐसे विषयों पर चिरकाल से लिखा जाता रहा है और जितना लिखेंगे यह विस्तृत होता जाएगा. लेकिन अब यह विषय समाप्त. फिर कभी किसी रूप में चर्चा करेंगे. प्रेरक प्रतिक्रियाओं के लिए आपका आभार. 

35 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत प्रस्तुति ||
    बहुत बहुत बधाई ||

    terahsatrah.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर लेख..
    बहुत भारी है बाबा..

    सार्थक जानकारी, अच्छी पोस्ट

    जवाब देंहटाएं
  3. केवल जी बहुत ही गहन अध्ययन किया है और लाजवाब विश्लेषण बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. लक्ष्य समझ में आने से सारे रास्ते स्वयं दिखने लखते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. Kewal ram ji namskaar
    Bahut hi sukshm vishleshan kiya hai aapne apne is lekh mein.

    Bahut aabhaar. . . !!

    जवाब देंहटाएं
  6. जब तक भीतर के विवेक को किसी भी प्रक्रिया से जगाया नहीं जाता है तब तक हम मूर्छा में होते है , जिसमे किया गया कर्म भी पाप के समान ही होता है . होशपूर्ण होने पर बुद्धि सजग होने लगती है फिर मन भी एकाग्र होने लगता है.आगे की व्याख्या तो आपने कर ही दिया है जो बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है .बधाई आपको .

    जवाब देंहटाएं
  7. इतने गंभीर विषय पर क्या टिप्पणी करू.. पढ़ कर जागृत सा हो रहा हूं...

    जवाब देंहटाएं
  8. चलते-चलते आपने अर्थ,काम और धर्म के अर्थ को अपनी इस प्रवाष्टि में बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है जिसमें आपके गहन अध्यन की झलक साफ नज़र आती है

    जवाब देंहटाएं
  9. माया का करिश्मा सभी ओर व्याप्त है... उत्तर प्रदेश में भी :)

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर सार्थक जानकारी देता अति उत्तम पोस्ट,...
    मेरे नए पोस्ट पर आइये इंतजार है

    जवाब देंहटाएं
  11. राम जी आप तो भगवान राम बनने पर तुले हैं .....
    इतना ज्ञान प्रवचन .....!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  12. भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में ऐसे आलेख कुछ प्रश्नों को सुलझाते हैं, कुछ विचारों को समझाते हैं .... बहुत सुंदर चिंतन आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. काम का अर्थ सृजन से था, सृष्टि में जीवन का अस्तित्व बना रहे, शायद यही. किन्तु मनुष्यों ने उसे अपने अनुसार परिभाषित किया है... और कुछ को तो धरती पर आने का अर्थ ही यही लगता है कि वे इन्दिर्यों के सुख के लिए ही, भोगों को प्राप्त करने के लिए ही मनुष्य जन्म में है. यह नहीं तो कुछ नहीं........ एक विचारोत्तेजक लेख. आभार !
    मेरे ब्लॉग में कुछ problem आ गयी है, खुल ही नहीं पा रहा है, इसलिए लाचार हूँ. खैर !

    जवाब देंहटाएं
  14. माया मरी न मन मरा
    मर मर गए शरीर।
    आशा तृष्णा न मरी
    कह गए दास कबीर॥

    जवाब देंहटाएं
  15. इतने गहन अध्यन पर ...किसी भी तरह की टिप्पणी ...अर्थवहिन हैं ....सब कुछ तो लिख दिया आपने ...ज्ञान की गंगा है ये लेख तो ...

    जवाब देंहटाएं
  16. bahut hi sunder prastuti .....aapne sab hi kah diya aaj mujhe samiksha ke liye shabd nahi mil rahe . hardik badhai

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत सारगर्भित और सार्थक विश्लेषण...

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सुंदर व्याख्या बढ़िया पोस्ट .....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
    सपने में कभी न सोचा था,जन नेता ऐसा होता है
    चुन कर भेजो संसद में, कुर्सी में बैठ कर सोता है,
    जनता की बदहाली का, इनको कोई ज्ञान नहीं
    ये चलते फिरते मुर्दे है, इन्हें राष्ट्र का मान नहीं,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलिमे click करे

    जवाब देंहटाएं
  19. सुंदर सार्थक जानकारी देता अति उत्तम प्रस्तुति|बधाई

    जवाब देंहटाएं
  20. "आज जरूरत है खुद को पहचानने की , हमारे सामने जो हमारे जीवन के मानक है उन्हें क्रियान्वित करने की . "

    अगर इंसान इतना ही कर ले जाए तो सभी की जिन्दगी बेहतर हो जायेगी !

    लेकिन क्या करे वो भी...नज़रें हमेशा दूसरे पर ही रहती हैं....!!

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत ही जीवनोपयोगी एवं ज्ञानवर्धक लेख...

    जवाब देंहटाएं
  22. आपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  23. मुझे तो लगता है आपके साथ साथ हम भी
    'केवल' राम ही हो जाने वाले हैं.क्यूंकि
    आप हमारे ज्ञान चक्षु जिस प्रकार से खोल
    रहें हैं उससे तो हम अपने शुद्ध 'मैं'यानि राम
    तक पहुँचने में एक दिन अवश्य सक्षम
    हो जायेंगें,केवल राम जी.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार आपका.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.कुछ व्याख्या हनुमान जी की करने की कोशिश की है.

    जवाब देंहटाएं
  24. गहन विषय पर लाजवाब विश्लेषण....सार्थक जानकारी, अच्छी पोस्ट. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  25. यह सब समझने के लिए तो अभी और पढना होगा हमें.

    जवाब देंहटाएं
  26. बहत उपयोगी विमर्श है, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  27. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट उपेंद्र नाथ अश्क पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, सुंदर लेख..

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत गहन विचारों से ओतप्रोत लेख|
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  30. अति उत्तम व्याख्या की है …………शानदार्।

    जवाब देंहटाएं
  31. रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  32. सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना,.....
    नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

    जवाब देंहटाएं

जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.