23 अगस्त 2011

आजादी से मुक्ति की ओर .. 2 ..


गतांक से आगे ..........!
आज भी जब इंसान को इंसान की तरफ तलवार, गोला बारूद , और भी ना जाने क्या -क्या  लिए देखता हूँ तो आँखें चुंधिया जाती हैं . कोई धर्म को लेकर लड़ रहा है तो कोई जाति को लेकर , किसी का राम बड़ा है, तो किसी का अल्लाह , किसी को मस्जिद चाहिए तो, किसी को मंदिर . ना जाने कितनी  बिडम्बनाएँ आज हमारे सामने हैं , और फिर भी हम आजादी की बात करते हैं . हमने कभी "आजादी"  शब्द को विचारा ही नहीं, कि क्या सच में हम आजाद हैं ? अगर थोडा सा भी विचार किया होता तो आज ना तो कश्मीर का मुद्दा होता और ना अयोध्या का . लेकिन हमने क्या किया  , "जीवन क्या जिया बहुत - बहुत ज्यादा लिया , दिया बहुत बहुत कम , मर गया देश , अरे जीवित रह गए तुम"   ( मुक्तिबोध ) . हमारा  जीवित रहना और देश का मरना कहाँ की आजादी है , किस तरह की आजादी है . जबकि इस आजादी को प्राप्त करने के लिए हमारे देश के लाखों वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी . क्या सच में हम उनकी कुर्बानियों की कद्र कर पाए . किसी भी हालत में नहीं , अगर की होती तो आज हमारे सामने यह स्थितियां पैदा नहीं होती .हम आजादी का जश्न मनाते हैं बस एक औपचारिकता को निभाते हैं .

आजादी शब्द पर गहराई से विचार करें तो आजादी का मतलब है "बंधन रहित होना" अब यहाँ बंधन कितनी तरह के हैं . हमें किन बन्धनों से आजाद होने की जरुरत है  . यह विचारना जरुरी है . जब तक हम यह नहीं विचार पाएंगे आजादी के सही मायने नहीं समझ पायेंगे . जब हमारे सामने कोई  बंधन ही नहीं है तो फिर कहाँ की विसंगतियां हैं और कौन सी बिडम्बनाएँ , फिर तो हमारे सामने एक उन्मुक्त आकाश है जहाँ हम विचर सकते हैं अपनी मस्ती में, कर सकते हैं सभी के हितों का ख्याल, लगता है सामने वाला भी अपना ही प्रतिरूप , अगर यह आभास होता है तो फिर तो आजादी है , फिर तो जीवन को नैसर्गिक रूप से जिया जा रहा है , जैसा हमें खुदा ने बख्शा था वैसे ही जीवन हम जी रहे हैं और पूरी कायनात के लिए हम वरदान साबित हो रहे हैं . लेकिन ऐसा दिखता नहीं , बस यही अफ़सोस है और यही दुःख !!

जीवन में सबसे पहले हमें आजाद होने की जरुरत है , अगर यह नहीं हो पाता तो फिर वही बात " भोजन, भोग , निद्रा, भय यह सब पशु पुरख सामान " तो फिर हमारी हालत पशु से अलग नहीं है . अगर हम कहीं अलग हैं तो हमारी समझ के कारण और अगर हममें यह समझ है तो फिर तो हम आजाद हैं . ना हमें कोई हिन्दू नजर आता है , ना कोई मुसलमान , ना कोई सिक्ख  है , ना कोई ईसाई, ना कोई देश है , ना कोई सरहद है , ना कोई दीवार है , ना कोई भ्रम . बस अगर है तो एक ऐसा उदात दृष्टिकोण जहाँ पर सब अपने नजर आते हैं . " एक पिता एक्स के हम बारक " फिर कहाँ भिन्नताएं  हैं  . और यह सच में जीवन में आजादी है , जीवन को जीने का आनंद ही अलग है . थोडा सा समय मनुष्य रूप में  हमें इस धरती पर रहने को मिला है और इस समय का हम पूरा सदुपयोग कर रहे हैं . मतलब हम आजाद है , हर पल , हमारे लिए कोई एक दिन आजादी का नहीं बल्कि हर पल आजादी  है .
अब हमें आजादी  से मुक्ति की और बढ़ना है . हमारे धर्म ग्रंथों में मुक्ति को जीवन का साध्य माना गया है . और ज्ञान को मुक्ति तक पहुँचने का साधन ....ज्ञान को समझ कहा गया है और समझ भीतर की वस्तु  है , ह्रदय का प्रकाश है . हमारे धर्म ग्रंथों में जो जीवन के चार वर्ग ( धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष ) निर्धारित किये गए हैं , उनमें से मोक्ष भी एक है . हमें जीवन रहते  इसे प्राप्त करना हैअब हमें शरीरों से के बंधन से मुक्त होना है . "मानुष जन्म आखिरी पौड़ी , तिलक गया ते बारी गयी" यानि मनुष्य जन्म आखिरी जन्म है, अगर इस जन्म में हम अपनी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज पाए तो फिर जीवन व्यर्थ चला गया , फिर हमें चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़ना पड़ेगा . और फिर वही हालत . हम मोक्ष या मुक्ति के मामले में काल्पनिक बने रहते हैं , कि जीवन के बाद  कहीं मोक्ष है लेकिन वास्तविकता इससे कहीं दूर है . वास्तविकता में मोक्ष या मुक्ति आत्मा से परमात्मा से मिलन है , आत्मा जब परमात्मा से मिल जायेगी तो मुक्ति संभव है . दुसरे शब्दों  में हम इसे बैकुंठ भी कहते हैं , और बैकुंठ का मतलब है जहाँ कोई कुंठा नहीं , जहाँ कोई चिंता नहीं बस आनंद ही आनंद है . और यही आजादी  भी है . काश हम जीवन को नैसर्गिक रूप से जीते , आत्मिक स्तर से सोचते आजादी मनाते , मुक्ति पाते ....और सही मायनों में  इंसान कहलाते ...!!!

40 टिप्‍पणियां:

  1. आत्मिक स्तर से सोचते आजादी मनाते , मुक्ति पाते ....और सही मायनों में इंसान कहलाते ...!
    --
    बहुत प्रेरक आलेख लिखा है आपने!

    जवाब देंहटाएं
  2. चिन्तन को उन्मुक्ख करता आलेख.... बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. केवल राम जी लेख पढकर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया, सही मायने में हम आजादी को जी नहीं रहे हैं ! कभी कभी तो सोचता हूँ कि क्या ये वही आजादी है जिसके लिए हमारे अनेकों वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति तक दे डाली थी,क्या उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था ? कि आने वाली पीढियां उनके इस कार्य के लिए उनको भूल जायेगी ! पर शायद विशाल हृदय वाले मनुष्य इस सारे संसार को अपनी तरह ही समझते रहे और हमारे लिए एक ऐसा संसार देकर गए जहां हम सवच्छ सांस ले सकें, परंतु आज हमें उनके उस बलिदान की यह कीमत चुकाई है कि हर कोई एक दुसरे को मारने के लिए काटने के लिए रिल्वाल्वर , या तलवार उठाये दौड रहा है ! पर खैर एक सुन्दर व विचरणीय पोस्ट के लिए आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  4. मुक्ति कैसे संभव है यह भी विचारणीय प्रश्न है. संसार में लिप्त रहते हुए भी मुक्ति का प्रयास करना ही श्रेष्टकर है..........
    आत्म चेतना को जाग्रत करता एक सुन्दर आलेख. आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सही लिखा है आपने
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  6. केवल जी नमस्कार
    सार्थक प्रस्तुति और विश्लेषण
    बहुत ही सुन्दर लेख है..... बधाई स्वीकार करें
    जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  7. चलते चलते 'मुक्ति' की ओर पहुँचा दिया है आपने केवल भाई.
    आपने स्वनाम को सार्थक कर दिया है.
    आनंद और पूर्ण आराम पाना हो तो बस 'केवल राम' ही के साथ चलते चलिए.

    जवाब देंहटाएं
  8. लगता है ...आज़ादी एक बहुत वापक अर्थ को संजोये हुए है

    जवाब देंहटाएं
  9. काश हम जीवन को नैसर्गिक रूप से जीते , आत्मिक स्तर से सोचते आजादी मनाते , मुक्ति पाते ....और सही मायनों में इंसान कहलाते ...

    सही लिखा है आपने...काश,ऐसा ही होता...

    जवाब देंहटाएं
  10. आज़ादी और मुक्ति में तो अन्तर है ... मुक्ति मोक्ष का ध्यान दिलाती है .. आध्यात्म से जुड़ा हुआ है मुक्ति का ख़याल ... गंभीर चिंतन

    जवाब देंहटाएं
  11. गहरा चिंतन है ... पर केवल जी इतना मुक्त हो जाना किसी विरले इंसान के बस में ही होता है ... वैसे कभी कभी हालात देख कर लगता है क्या इतना मुख होना भी चाहिए ...

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सार्थक लेख /वाकई आजादी के बाद भी हम कहाँ आजाद हुए हैं /बहुत कुछ सोचने को मजबूर कराती हुई शानदार प्रस्तुति /बधाई आपको /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद /मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /आभार /

    जवाब देंहटाएं
  13. जहाँ आत्मिक मिलन हो जाये आत्मा और परमात्मा का भेद ना रहे वो ही जीते जी मुक्ति है , वो ही बैकुण्ठ है।

    जवाब देंहटाएं
  14. इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा.... बातें है बातों का क्याऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहद ज्ञानवर्धक आलेख ...आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  16. मृत्युलोक से गोलोक तक का सफ़र

    जवाब देंहटाएं
  17. , अगर इस जन्म में हम अपनी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज पाए तो फिर जीवन व्यर्थ चला गया , फिर हमें चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़ना पड़ेगा .

    sahee Ramji.kah! hum sabhi is janm me apne nij swaroop ko pahchankar desh aur samaj ke hit ke bare me sochahtejisase sampoorna pranijagat ka kalyan hota.kyunkihar aatma me parmatma ka vas hai.prerak lekh ke lie aapka shukriya.

    जवाब देंहटाएं
  18. आद.केवल राम जी

    आपका हर आलेख कुछ न कुछ संदेश लिये हुये होती है

    जवाब देंहटाएं
  19. sunder sochne pr majboor karta lekh
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  20. भौतिक जीवन का हस्ताक्षरित अभिलेख ,अध्यात्म का पहला पायदान होता है ,सुनिश्चित करता है ग्रह्यता को , स्पंदन को रश्मियों को ,जो अनन्त लोक में आत्मा को ढूंढ़नाहै परमात्मा से मिलन का ,अगर मानव बन गए तो आजाद हैं , फिर आजाद हैं समस्त बंधनों से , व्यतिरेकी मन ,जीवन कभी मुक्त नहीं ......./ शुक्रिया जी

    जवाब देंहटाएं
  21. विषय को बहुत ही सशक्त रूप से अभिव्यक्त किया आपने, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  22. सच है आत्मिक स्तर पर स्वतंत्र होंगें तभी तो सही मायने में इंसानियत को समझ पायेंगें..... सुंदर की चिंतन लिए पोस्ट

    जवाब देंहटाएं
  23. . " एक पिता एक्स के हम बारक " फिर कहाँ भिन्नताएं हैं . और यह सच में जीवन में आजादी है , जीवन को जीने का आनंद ही अलग है . थोडा सा समय मनुष्य रूप में हमें इस धरती पर रहने को मिला है और इस समय का हम पूरा सदुपयोग कर रहे हैं . मतलब हम आजाद है , हर पल , हमारे लिए कोई एक दिन आजादी का नहीं बल्कि हर पल आजादी है .



    केवल जी ....आपका लेख पढ़ा और अच्छा लगा ...
    इस जिन्दगी में आज़ादी का मतलब ...हर किसी के लिए उसके मन मुताबिक है
    अगर अपने मन की होती रहे तो आज़ादी ..और अगर कभी कुछ भी रोकटोक ...तो वहां मन बंदिश महसूस करता है ...सोच अपनी अपनी
    मन अपना अपना ...........आभार

    जवाब देंहटाएं
  24. "जीवन क्या जिया , बहुत - बहुत ज्यादा लिया , दिया बहुत बहुत कम , मर गया देश , अरे जीवित रह गए तुम" ( मुक्तिबोध ) . हमारा जीवित रहना और देश का मरना कहाँ की आजादी है , किस तरह की आजादी है . जबकि इस आजादी को प्राप्त करने के लिए हमारे देश के लाखों वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी
    bahut hi prabhavshali aur prerak aalekh likha hai , hum jaante bahut hai magar karte kam hai ,hamare dayre simit ho gaye hai .ati sundar .

    जवाब देंहटाएं
  25. बेहद तार्किक सोच. विभिन्न आयामों को तलाशता सुंदर आलेख.

    जवाब देंहटाएं
  26. "मानुष जन्म आखिरी पौड़ी , तिलक गया ते बारी गयी" यानि मनुष्य जन्म आखिरी जन्म है, अगर इस जन्म में हम अपनी मुक्ति का मार्ग नहीं खोज पाए तो फिर जीवन व्यर्थ चला गया...

    आत्म चेतना को जाग्रत करता, जीवन रहते हुए मोक्ष की राह दिखाता एक सुन्दर आलेख. आभार... बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  27. सबके अपने आसमान, पर सत्य का सूर्य तो एक ही रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  28. काश हम जीवन को नैसर्गिक रूप से जीते , आत्मिक स्तर से सोचते आजादी मनाते , मुक्ति पाते ....और सही मायनों में इंसान कहलाते ...

    Bahut sateek chintan !

    .

    जवाब देंहटाएं
  29. काश हम जीवन को नैसर्गिक रूप से जीते , आत्मिक स्तर से सोचते आजादी मनाते , मुक्ति पाते ....और सही मायनों में इंसान कहलाते ...!!!
    केवल जी आपने बहुत ही अच्छा लिखा है ......

    जवाब देंहटाएं
  30. आपके इस आलेख पर चिन्तन चल रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  31. Hi I really liked your blog.
    Hi, I liked the articles in your facebook Notes.
    I own a website. Which is a global platform for all the artists, whether they are poets, writers, or painters etc.
    We publish the best Content, under the writers name.
    I really liked the quality of your content. and we would love to publish your content as well. All of your content would be published under your name, so that you can get all the credit

    for the content. This is totally free of cost, and all the copy rights will remain with you. For better understanding,
    You can Check the Hindi Corner, literature and editorial section of our website and the content shared by different writers and poets. Kindly Reply if you are intersted in it.

    http://www.catchmypost.com

    and kindly reply on mypost@catchmypost.com

    जवाब देंहटाएं
  32. प्रेरक पोस्‍ट।
    हमेशा की तरह आपकी पोस्‍ट ने संदेश दिया।
    शुभकामनाएं............

    जवाब देंहटाएं
  33. आजादी इहलौकिक स्वतंत्रता है, जबकि मुक्ति या मोक्ष का अर्थ अनंत उर्जा में विलय होना है।

    आत्म चिंतन के लिए प्रेरित करता बढ़िया आलेख।

    जवाब देंहटाएं
  34. दोनो आलेख मे राजनैतिक दर्शन को आध्यात्म से जोड़कर बढ़िया विवेचन प्रस्तुत किया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  35. सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  36. बेनामी29/8/11 12:19 pm

    सार्थक प्रस्तुति और विश्लेषण
    बहुत ही सुन्दर लेख है..... बधाई
    पी. एस. भाकुनी

    जवाब देंहटाएं

जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.