27 नवंबर 2010

अच्छा लगता है

62 टिप्‍पणियां:

कुछ को दोस्त , कुछ को दुश्मन बनाना अच्छा लगता है
मुझे तो रिश्ता -ए-इंसानियत निभाना अच्छा लगता है ।

सिर्फ लफ्जों से वयां न हो
, कि अच्छे हैं हम
मुझे सोच में
, कर्म का कमाना अच्छा लगता है ।

दुनियां में दर्द -ए -दहशत फेलाने वाले हैं हर मोड़ पर
मुझे प्यार कि एक दुनिया बसाना अच्छा लगता है ।

तू खुद से बेखबर है , कि तू अंश "खुदा" का है
मुझे इंसान को "भगवान" समझना अच्छा लगता है ।

आज मंजिल -ए-महफूज का सहारा बन जाते हैं सब
मुझे तो गिरतों को उठाना अच्छा लगता है ।

राज -ए- हकीकत का क्या कहूँ , किस तरह
बस तन्हाई में गुनगुनाना अच्छा लगता है ।

दुनिया की शान -ए -शोकत की नहीं परवाह मुझे
"केवल" इंसानियत के लिए मिट जाना अच्छा लगता है ।

23 नवंबर 2010

रोहतक (तिलयार) में ब्लॉगर सम्मलेन : कुछ अविस्मरणीय पल

40 टिप्‍पणियां:
21 नवम्बर 2010 को हिंदी ब्लॉगजगत के ब्लॉगरों  ने रोहतक की तिलयार झील पर हिंदी ब्लॉगिंग के विविध पहलूओं पर विचार विमर्श किया ....इस सम्मलेन का श्रेय राज भाटिया जी को जाता है ....बाकी बातें बाद में .....पेश हैं ....कुछ आविस्मरणीय पलों की खास तस्वीरें ..चलो सिलसिला शुरू करते है ......


बाएं से दायें (अजय कुमार झा जी ,संजय भास्करजी ,योगेन्द्र मौदगिल जी ,( ठीक पीछे ..खुशदीप जी ) राज भाटिया जी ,शाहनवाज जी , ललित जी और में (केवल राम )



ललित जी और सक्सेना जी फोटोग्राफी करते रहे
मानो कि दोनों में एक दुसरे से आगे बढ़ने कि होड़ लगी हो , जो सामने आया उसका फोटो खींच दिया , कमाल के व्यक्ति हैं दोनों ......आत्मीय , स्नेही और खुशमिजाज...यह है इनका अंदाज

( ललित शर्मा जी)       ( सतीश सक्सेना जी)











पहले सत्र के बाद हमने थोड़ी मस्ती की, और यूँ जमा रंग ....आइसक्रीम के संग.... ललित जी और अंतर सोहेल जी के साथ की मैंने भी खूब मस्ती......
बाएं से दायें ...अंतर सोहेल जी केवल राम और ललित जी)

इधर हम मस्ती करते रहे और दूसरी तरफ ब्लोगिंग के लिए समर्पित खुशदीप जी और अजय कुमार झा जी ने लाइव् रिपोर्टिंग करते हुए सम्मलेन की पहली पोस्ट लिख दी.... (खुशदीप जी और अजय कुमार झा जी)



बाएं से दायें ...जो खड़े हैं .. सक्सेना जी ,कपूर जी , केवल राम , राज भाटिया जी , ललित जी ,संजय भास्कर जी, खुशदीप जी, अजय कुमार झा जी ,तनेजा जी
बाएं से दायें .......जो बेठे हैं ..................... डॉ अरुणा कपूर जी , निर्मला कपिला जी , संगीता पूरी जी, योगेन्द्र मौदगिल जी
अलबेला खत्री जी का इन्तजार सब को था..आने के बाद वो काफी देर तक आँखमिचोनी करते रहे ...कोई कह रहा था नहा रहे हैं ..कोई कह रहा था अभी पहुँचने वाले हैं ...अरे जब खत्री जी आये तो ..माहोल रंगीन होने की वजाय गमगीन हो गया ...कुछ गलत नहीं हुआ ...बस सब जाने वाले थे .......खत्री जी के आग्रह पर सभी रुके और ...फिर तो खत्री जी ने खूब समां बंधा ...... इनके आने से पहले योगेन्द्र मौदगिल जी भी अपनी रचनाओं के माध्यम से खूब समां बंधा....!

11 नवंबर 2010

अजीब हैं यारो

46 टिप्‍पणियां:
दीवानों की दासताएँ बड़ी अजीब हैं यारो
दुनियां में कुछ हबीब , कुछ रकीब हैं यारो ।

उनकी जिन्दगी ही होगी सफल इस जहाँ में
जिन्हें उनके चाहने वाले करीब हैं यारो ।

अपनों को भला कौन कहता होगा पराया
मुकम्मल दिल से मिलने वाले , खुशनसीब हैं यारो ।


जिसने पाया अपनी मुशक्कत से हर ख़ुशी को
ऐसे लोगों के फसाने, बड़े अजीब हैं यारो ।

 

सब कुछ होते हुए भी, कुछ ना दे सके किसी को
इस जहाँ में ऐसे लोग , बड़े गरीब हैं यारो ।

बहुतों ने ठुकराया , पर अपनाया जिन्होंने
केवल हम उनके खास अजीज हैं यारो

07 नवंबर 2010

अस्तित्व

21 टिप्‍पणियां:
जब भी देखता हूँ
आकाश की तरफ
मेरी कल्पना की सीमा से परे ....!
मेरे सपनों का संसार
चाँद तारों में नजर आता है ।

चमकते चाँद में
जीवन का सार,
उभर आता है ..निखर आता है
तारों की टिमटिमाहट में
ख्वाबों की बुनाबट में
एक तारा टूटते , मेरा घर लूटते हुए ,
यादों के मंजर में
अपनों का संसार
बिखर जाता है , टूट जाता है ।


चाँद भी आकाश में
सदा नहीं चमकता ,
कभी पूर्ण प्रकाश , कभी नहीं दिखता...!

जिन्दगी के इस खेल में
अपने- परायों के मेल ,
अजनबी सा अपनापन
कुछ ठहरा सा खालीपन
यादों की उलझन .....!
सब कुछ सोचने के बाद
कुछ पाने -कुछ खोने के बाद
मुझे मेरा अस्तित्व याद आता है ।