27 अगस्त 2010

चाँद से चेहरे को...............केवल राम

चाँद से चेहरे को आँचल में छुपाये रखना
मेरी तस्वीर को सीने से लगाये रखना

तेरी जुल्फों की हवा लगती है सबको भली
अपने दामन को जमाने से बचाए रखना

फिर याद आएगी मोहब्बत मेरी इक रोज तुझे
अपनी पलकों को मेरी राहों में बिछाये रखना

इश्क बदनाम न हो जाये ज़माने में कहीं
हर शहरी से मेरा नाम छुपाये रखना

सपना है ' केवल' प्यार यहाँ बेहद दर्द है
कहे लाख जमाना , तुम मुझे अपनाये रखना

हार के फिर जिता दी है बाजी तुमने मेरी
प्यार के इस खेल में, मुझे खिलाडी बनाये रखना

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लेखन चल रहा है। चंबा की खूबसूरती आपके जीवन को मधुरता दे...बाहरी आबोहवा छू भी न पाए..यही दुआ है।

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  2. वाह! क्या बात है, आप बहुत ही अच्छा लिखते है....आज पहली बार आप के ब्लॉग पर आने का अवसर मिला ,काफी कुछ पढ़ा ,सब के बारे में अलग से तो नहीं कह पाऊँगी,आप की कवितायेँ,ग़ज़लें विशेष पसंद आई , बधाई स्वीकारें ....

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  3. क्या बात है ..प्यार के इस मौसम में प्यारे एहसास और सुन्दर रचना.बहुत खूब.

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  4. ओह! चंदा को चंबा लिखा बैठा हूँ!

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.